Friday, June 11, 2010

भारत की सरकार न्यौत चुकी है भोपाल से भी बड़ा जीनोसाइड... भारत क्या तुम इसके लिये तैयार हो?

भोपाल की टीस फैसले के बाद उभर चुकी है. मुनाफे के वहशी भेड़ियों के द्वारा किया गया वह कत्ले-आम बाहर वालों के लिये सिर्फ चंद तस्वीरें बन कर रह गया है लेकिन भोपाल वालों के सीने में अब भी धधक रहा है.

20,000 लोगों की मौत पर मारा गया $470 मिलियन का तमाचा, आज़ाद घूमते वो बड़े पद वाले जिन्होंने भोपाल में हर नियम की धज्जियां उड़ाईं और सस्ते में छूट चुके छोटे अफसर भारत के शर्मनाक हद तक गिर चुकी न्याय व्यवस्था की कहानी बयां कर रही हैं.

भारत कभी उस दर्दनाक हादसे को भूले न भूले आपके सरकारी हुक्मरान उसे दफना चुके हैं और इसलिये वह तैयारी कर रहे हैं भोपाल से भी बड़े हादसे की. बात हो रही है भारत-अमेरिका के बीच होने वाले न्युक्लियर करार की जो आपके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आंखों का वो सपना है जिसे पूरा करने के लिये वो कुर्सी गंवाने की हद तक जाने को तैयार थे.

भूलियेगा नहीं किस तरह आपके ही एक साथी ब्लागर अमर सिंह ने सांसदो को पैसे देकर मनमोहन की सरकार बचवाई (ऐसा IBN पर देखा था).

2039942949_586125a39c

आपको इस न्युक्लियर करार के बारे में पता है? यह वह करार है जो भारत को विश्व शक्ति का दर्जा दिलवा सकता है. वह करार जो भारत को एकलौता ऐसा देश बनायेगा जो संयुक्त राष्ट्र का परमानेन्ट सदस्य न होकर भी मुक्त रूप से परमाणू ऊर्जा के व्यापार में हिस्सा ले सकेगा.

जिसके बाद आयेंगी अमेरिकी परमाणू कम्पनियां भारत में और पैसे लेकर लगायेंगी वह संयंत्र जिसमें परमाणू ऊर्जा से बिजली बन पाये.

लेकिन यह करार सिर्फ पैसे के बदले मिलता तो कीमत छौटी थी. इसकी कीमत हम बहुत बड़ी चुकानी को तैयार हैं. इसकी कीमत हम देने को तैयार है लांखों जानों से. जो इस करार को करने के लिये भोपाल को भुला चुके हैं वो चेर्नोबिल याद कर लें. वहां भी था एक परमाणू संयंत्र जहां पर हुई दुर्घटना के प्रभाव से 100,000 (एक लाख) से ज्यादा जानें कैन्सर से गईं और 10,000,000 (दस लाख) से ज्यादा लोग कैंसर ग्रस्त हुये. यह कह रही है ग्रीनपीस की ताज़ा रपट.

कामन सेन्स कहता है कि किसी भी दुर्घटना को रोकना हो तो ऐसे कठोर नियम बनाने चाहिए जिसमें गलती की कोई जगह न हो. और उन नियमों का पालन न करने वालों को सख्त से सख्त सज़ा देनी चाहिये ताकी कोई कोताही न करे... लेकिन भारत की कांग्रेस सरकार ने कह दिया है कि आप इस देश में आयेंगे तो आपको हम पूरा लाइसेंस देंगे देश में लाखों जानों से खेलने का और अगर आपने दुर्घटना कर दी तो आपको हम पूरी मदद करेंगे बिना किसी जवाबदारी के साफ बच कर जाने को.

भोपाल के नरसंहार के बाद हमारी सरकारी मशीनरी तुरत-फुरत हरकत में आयी... काबिले-तारीफ थी वह तेज़ी, लेकिन तेज़ी थी क्योंकि यूनियन कार्बाइड के दोषियों को बचाना था. इसलिये कानून ताक पर रखे गये, नियम भुलाये गये और ऊपर-ऊपर और ऊपर से आदेश आते रहे दोषियों को बचाने के लिये.

लेकिन इस बार सरकार ने और भी तेज़ी दिखाई है. दोषियों को बचाने के लिये दुर्घटना होने का इंतज़ार तक नहीं किया... पहले ही सर्टिफिकेट दे दिया कि आप चाहें जितनों को मारें हम आपका पीछा नहीं करेंगे. फिर हम मांग लेंगे आपसे चिड़ियों का चुग्गा और डाल देंगे अपनी भिखारी जनता के सामने. और फिर आपको पूरा मौका देंगे निकल जाने का. यही हिस्सा है उस करार का जो भारत सरकार अमेरिका के साथ कर रही है.

युनियन कार्बाइड के 470 मिलिअन तो उसने खुद भी नहीं चुकाये, यह तो उसके इंश्योरेंस की रकम ही थी. इस बार भी अगर कोई न्युक्लियर दुर्घटना होती है तो मिल जायेगी आपको 460 मिलियन डालरों की भीख क्योंकि यही सबसे बड़ी वह कीमत है जो अमेरिकी कंपनियां चुकाने को बाध्य होंगी अगर कोई दुर्घटना घटी! और यह कीमत तय की है आपकी सरकार ने. अभी-अभी आपकी सरकार ने आपके देश वालों की जान की कीमत 10 मिलियन डालर घटा दी.

आपको कैसा लग रहा है मुद्रास्फीती के इस गिराव पर?

अमेरिकी जानें इस से कई गुना महंगी हैं वहां पर अगर कोई न्युक्लियर दुर्घटना होती है तो कंपनियां देंगी 10 बिलियन डालर तक. मतलब हर अमेरिकी आपके जैसे 20 के बराबर है. अब तो आपको अपने देशवालों की औकात का सही अंदाज़ा भी हो गया होगा.

वही अमेरिका जो अपने देश की कंपनियो के लिये इतना सस्ता सौदा तलाश रहा है अपने देश में होने वाले तेल के रिसाव पर एक ब्रिटिश तेल कंपनी (BP) पर 10 बिलियन डालरों का जुरमाना ठोकने की तैयारी कर रहा है जिससे वह कंपनी तबाह और बरबाद हो जायेगी.

भारत, क्यों न यह सौदा ऐसे देशों से हों जो दूसरों की जान की कीमत भी समझें? रूस बढ़ा हुआ मुआवज़ा देने को तैयार है. और जर्मनी में तो मुआवज़े की कोई सीमा ही नहीं निर्धारित की जा सकती. तो क्यों इस देश के US रिटर्न प्रधानमंत्री बेताब हैं अपने देशवासियों की जानों का इतना सस्ता सौदा करने के लिये?

Wednesday, June 2, 2010

शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार नहीं चाहती की आपका बिजली का बिल घटे – DERC को कीमतें घटाने से रोका

सबसे पहले एक पहेली – पिछले साल दिल्ली की दो निजी बिजली कंपनियों ने कितना मुनाफा कमाया? पहली ने करीब 450 करोड़ रुपये, और दूसरे ने करीब 468 करोड़ रुपये. लेकिन दिल्ली सरकार को लगता है की निजी कंपनियां का मुनाफा बढ़ना चाहिये आम आदमी की कीमत पर इसलिये अप्रेल में उन्होंने बिजली की कीमतें बढ़ाने के लिये पूरी तैयारी कर ली थी. यहां तक की दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बयान भी दिया था कि दिल्ली वालों को बढ़ी हुई बिजली की दरों के लिये तैयार रहना चाहिये
जबकी दिल्ली में बिजली की कीमतों का निर्धारण दिल्ली सरकार का मामला ही नहीं है. यह का है DERC का जो की दिल्ली सरकार के आधीन नहीं है.
तो फिर क्या बात है कि शीला दीक्षित बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिये इतनी मेहनत कर रही हैं
DERC ने पिछले साल बिजली की दरें बढ़ने से रोकीं और इस साल वह दरें घटाना चाहती है और शीला दीक्षित बढाना, जब दिल्ली सरकार का DERC के कामकाज में दखल बढ़ा तो खुद सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम को आगे आकर बयान देना पड़ा और दिल्ली सरकार को उसके काम में दखल देने से रोका.
अभी अभी DERC ने कहा है कि बिजली कंपनियों के मुनाफे को देखते हुये कोई कारण नहीं है कि दरें ऐसे ही बढ़ीं रहें इसलिये उन्होंने दरों को 20% तक कम करने की वकालत की है़. लेकिन दिल्ली सरकार ने फिर बयान दे दिया कि दरें नहीं घटनी चाहिये क्योंकि डिश्ट्रिब्युशन कंपनियों को नुक्सान न हो वरना वो DERC को नयी दरें लागू करने की इजाजत नहीं देगी!

DERC ने तो इस बारे में तीनों निजी कंपनियों को पत्र भेज दिया है कि दरे कम करिये लेकिन मई 4 को दिल्ली सरकार ने अपने बनाये गये कानून Delhi Electricity Act का सहारा लेते हुये नई दरों पर रोक लगा दी. DERC का कहना है कि यह रोक गलत है क्योंकि अगर यही दरें रहीं तो इस साल के अंत तक दिल्ली की पावर कंपनियों के पास कुल 4000 करोड़ का सरप्लस आ जायेगा जो की बहुत ज्यादा है!
कैसी है यह दिल्ली सरकार?
आपने वोट दिया थ इसको?

  1. यह है निजी कंपनियों के साथ जिन्होंने पिछले साल 900 करोड़ का मुनाफा कमाकर भी अपना पेट नहीं भरा.
  2. यह रोकता है एक इमानदार संस्था को लोगों के लिये काम करने से.
  3. इसका मुख्यमंत्री बयान देता है कि दिल्ली के लोगों को बिजली के लिये ज्यादा पैसे देने को तैयार रहना चाहिये.
  4. यह बनाती है एक ऐसा एक्ट जिसके जरिये यह DERC को बिजली की दरें घटाने रोक सके.
  5. यह देती है बयान कि DERC का बिजली कंपनी के हितों के विरुद्ध काम करना ठीक नहीं.
क्या हैं वो हित… जानिये --
  • 2004-2005 में NDPL नाम की बिजली कंपनी का मुनाफा था 169.60 करोड़. 2009-2010 में यह बढ़ कर 468.82 करोड़ हो गया. फिर भी दिल्ली सरकार ने इनकी गुहार मानी कि इनका मुनाफा कम है.
  • BSES Yamuna Power का मुनाफा 2007-2008 में 16.89 करोड़ से बढ़कर 2009-2010 में 157.33 करोड़ हो गया. फिर भी दिल्ली सरकार चाहती है कि इन्हें और पैसा मिले.
  • दिल्ली की तीनों बिजली कंपनियों ने अपनी आडिटेड फाइनेन्शियल रिपोर्ट में 2010 में रिकार्ड मुनाफा (अब तक सबसे ज्यादा) दर्ज किया.

दिल्ली की सरकार की मंशा क्या है?
उसकी जिम्मेदारी किसके प्रति है?
क्या दिल्ली सरकार, इसके पदाधिकारी भी ए.राजा की राह पर चल निकले हैं कि देश और जनता की कीमत पर निजी व्यवसायों को करोड़ों का फायदा पहुंचाना है?

बड़ी बात यह है कि DERC के इमानदार अफसरों  में बहुतों का कार्यकाल जल्द ही खतम होने वाला है. अगले साल बृजेन्द्र सिंह DERC के चैयरमैन अपने पद से रिटायर हो जायेंगे और दिल्ली सरकार इस फिराक में है कि इसके पदों पर उन लोगों को लाया जाये जो इसके हिसाब से चलें और जो वह चाहे होने दें. क्या इसको ऐसा करने से रोका जा सकेगा?

कतई नहीं रोका जा सकेगा.
अगले साल और उससे अगले साल अपने बिजली के बिल में दुगुनी तक बढत के लिये तैयार रहिये. 

sheiladikshit
यह क्यों  चाहतीं हैं कि दिल्ली वाले अपना पेट काटकर बिजली कंपनियों का घड़ा भरते रहें?