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Wednesday, March 10, 2010

अबु आजमी ने कितने आतंकवादियों को बचाया? शहजाद, जुनैद… या कुछ और भी हैं?

अभी-अभी टीवी पर खुलासा हो रहा है कि मुम्बई के सपा नेता अबु आजमी बाटला हाउस के आतंकी शहजाद और जुनैद से मिला और उन्हें पैसा दिया कि वो छुप के रहें. चौरसिया और अजमानी मिलकर अबु आजमी से फोन पर बात कर रहे हैं, और कम से कम पहली बार चौरसिया के मुंह से कठिन सवाल सुनने को मिल रहे हैं

1. अबु आजमी दाउद की महफिल में शामिल रह चुका है.
2. अबु आजमी 1993 के विस्फोट के मामले में गिरफ्तार होकर जेल में रह चुका है.
3. अबु आजमी बार-बार आतंकवादी मामलों में संदिग्ध रहा है.
4. अबु आजमी ने खुद स्वीकार किया की शहजाद के बाप से उसके संबंध रहे और शहजाद का बाप उसके यहां आता जाता रहता है.

abuazmideshdrohi

बाटला हाउस में शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के कातिलों में शामिल शहजाद को पैसे दिये और छुपने में मदद की... ठीक है.

लेकिन अभी-अभी मुझे याद आ रहा है कि मुंबई में ताज पर हमले में अबु आजमी गोलियों और हमलों के बीच में घुस कर कार लेकर आता है, और दो-तीन लोगों को बचाकर ले जाता है. बाद में बयान देता है कि वो सऊदी अरब के कुछ सम्माननीय लोग थे.

शहजाद का तो पता चला.. लेकिन अबु आजमी, कौन थे वो लोग जिन्हें तूने ताज होटल से निकाला था.

चौरसिया ने अभी अभी अबु आजमी से कहा
"आप इतने भोले भी नहीं है अबु आजमी की दाउद के घर में शादी में शामिल हों और आपका पता नहीं हो किसके घर में हैं"

अबु आजमी कह रहा है कि मैं भोला हूं... बिल्कुल भोला हूं.

"मैं मुसलमान हूं, मैं भगवान की नहीं अल्ला की कसम खा कर कहता हूं कि मैंने शहजाद को पैसे नहीं दिये और मैं उससे मिला भी नहीं हूं."

चौरसिया, क्या इस सवाल का जवाब निकलवा सकते हो कि इसने ताज होटल में किसको बचाया था.. कहीं कुछ और आतंकवादियों को तो नहीं निकाल ले गया? पुरानी फुटेज होगी न तुम्हारे पास?

लंदन भाग गया है अबु आजमी 5 तारीख को. ठीक उसी दिन जिस दिन दिल्ली पुलिस ने उससे पूछताछ की.

मनसे वालों तुमने हिंदी के नाम पर इसको झापड़ लगाया, क्या इस बात के लिये खुदा कसम इसको एक जबर्दस्त नहीं लगाना चाहिये?

और इधर कांग्रेस का एक पूर्व विधायक कांग्रेस की सरकार में हुये दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर जिसमें एक बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर शहीद हुआ के बारे में कह रहा है कि ‘सारी दुनिया जानती है कि बाटला एनकाउंटर झूठ था’…

इस अब्दुस सलाम को लाफा कौन लगायेगा?

Saturday, February 6, 2010

'बेगुनाहों' ने मार दिया बाटला अभियुक्त को गिरफ्तार कराने वाले मास्टर को

दिल्ली के बाटला कांड के 'बेगुनाह' अब भी जेल में सड़ रहे हैं और उनके सुराग देने पर दिल्ली पुलिस की एटीएस आजमगढ़ जाकर शहजाद को पकड़ लाई. वही शहजाद जिसने कबूल किया कि उसने भी वीर शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा (जिसके परिवार की सुरक्षा दिल्ली सरकार ने वापस ले ली अभी-अभी) पर गोली चलाई थी.

शहजाद को पकड़ने में एटीएस की मदद एक स्थानीय स्कूल के प्रबंधक ने की थी. उसने एटीएस के लोगों को रुकने का स्थान मुहैया कराया और एटीएस को शहजाद के बारे में महत्वपूर्ण सुराग दिये. इनका नाम श्री दिनेश यादव था, जिन्हें अब मार दिया गया है. इस कांड में स्कूल का एक आदमी और भी मारे गये. 

सबसे पहले तो नमन उस शहीद दिनेश यादव को जिसने भेड़ियों के शहर में रहते हुये भी देश का साथ न छोड़ा, और फिर धिक्कार उस दिगविजय सिंह को जिसने अभी-अभी आजमगढ़ की यात्रा कर बाटला कार्यवाही पर सवाल उठाने वालों को यह भरोसा दिलाया कि वह जांच मे 'पूरा सच' निकलवायेंगे.

क्या है पूरा सच दिग्विजय सिंह?

  • क्या मोहनचंद्र कि हत्या आतंकियों ने नहीं की?

हमें भी बताओ तुम्हें किस चीज़ पर शक है.

दिग्विजय सिंह क्या तुम एक बार और जाओगे आजमगढ़ उस शहीद की अंतिम यात्रा में जिसने देशद्रोही आतंकियों के खिलाफ मुहिम में अपनी जान कुर्बान की? या फिर तुम सत्ता के भूखे भेड़िये की तरह सिर्फ वोट खसोटने के लिये ही यात्रायें करते हो?

अब भी जिन्हें बाटला कांड की सत्यता और श्री मोहन चंद्र शर्मा की शहीदी पर शक हो उन्हें शर्म से डूब मरना चाहिये. लेकिन अगर यह शर्म का मामला होता तो डूब भी मरते, यह तो साफ-साफ देशद्रोहियों की साजिश है.

बिहार में चुनाव होते हैं तो मुम्बई में हाहाकर मचता है, और मुंबई में चुनाव होने होते हैं तो बिहार में रेल स्टेशन जल जाता है. सत्ता हथियाने के लिये जो न करना पड़े वो कम है़.

जब देश जल रहा होगा तब सत्ताधारी उसके हाल पर रोयेंगे या नीरों की तरह चैन से बंसी बजायेंगे?

खबर: नईदुनिया के हवाले से.

Tuesday, October 27, 2009

बिकोज़ छत्रधर महतो इस ए गुड मैन

अपनी एक ट्रेन माओवादी आतंकवादियों के कब्जे में है. कई सौ यात्री हैं उस ट्रेन में उन सब की जिंदगी दांव पर है, और सौदा करने वाले हैं हमारे देश के नेता. माओवादी भी तैयार है सौदे के लिये, 1 के बदले 400. बोलो क्या कहती हो दिल्ली सरकार? छत्रधर महतो को छोड़ेंगे?

कंधार के नाम पर भाजपा सरकार को पानी पी-पीकर कोसने वाले यतींद्रनाथ के बदले एक सौदा पहले भी कर चुके हैं. माओवादी इमानदार साबित हुए. POW को छोड़ दिया. दोनों तरफ से अच्छी डील हुई, दोनों सौदागर इत्मीनान में है, पार्टी रिलायबल है, डील चलती रहे.

इसलिये माओवादियों की तरफ से ताजी आफर इतनी जल्दी आ गई, पहले 1 के बदले 10 थे, अब 500 के बदले सिर्फ एक – छत्रधर महतो. क्या अपनी सरकार को सौदा बुरा लगेगा?

{कंधार-कंधार-कंधार} बार-बार मुझे याद आता है कंधार. अब सरकार उन्हीं की है जिन्होंने कंधार का इतना गहन विश्लेषण किया. लेकिन फैसला दूसरा होगा इसकी अपेक्षा व्यर्थ है क्योंकि यतीन्द्रनाथ के मामले में एक उत्साहवर्धक precedent दिया जा चुका है.

मीडिया का गेम भी चालू हो चुका है. ट्रेन तक पुलिस/आर्मी पहुंचे न पहुंचे, कुछ चुनिंदा चैनलों के नुमाईंदे पहुंच गये. ऐसा लगता है जैसे तैयार बैठे थे.

कंधार में देश का हाथ मरोड़ा जा रहा था अजहर मसूद को छुड़ाने के लिये. वो तो एक आतंकवादी था. अब जो सामने है उसके गुट को कोई आतंकवादी नहीं कहता. देश का एक खास  कुबुद्धिजीवी वर्ग तो सिर्फ इनके दर्द में जीता, दर्द में मरता है. ये लोग गरीबों के मसीहा, सर्वहारा वर्ग को जिताने वाले, व दुखियों के हमदर्द हैं. तो भाई जब अजहर मसूद जैसे शैतान को छोड़ सकते हैं तो फिर छत्रधर महतो को क्यों नहीं, खासकर तब जब ‘ही इज़ ए गुड मैन’ जैसा कि एनडीटीवी में लगातार दिखाया जा रहा है.

थू ! थू sss

ताजा समाचार है कि छ्त्रधर के लोगों ने ट्रेन छोड़ दी. मतलब डील जमी नहीं, या यह सब एक जबर्दस्त पब्लिसिटी स्टंट था?

माओवादियों के पीछे आखिर बुद्धीजीवी दिमाग है न.

Wednesday, May 20, 2009

अमर सिंह की कांग्रेस को धमकी

खबर के अंदर की खबर पढ़ना भी एक कला है. अब राजनीति से दो-चार होते कई साल बीत चुके हैं तो राजनेताओं की चालों का अंदाजा लगाना भी अब कुछ-कुछ समझ में आने लगा है. amarsinghnishanchiबात है अमर सिंह की. ये पुराने चालबाज हैं. इनके पत्ते सधे होते हैं और अपने काम निकालने के लिये यह हर प्रपंच कर लेते हैं. इसी कला में निपुण होने के चलते यह मुलायम के लिये अपरिहार्य हो गये. भाई अब तो हालात यूं है कि आजम खान ने भी इनसे पंगा लिया तो उनकी चला-चली हो गई.

तो बात है अमर सिंह के कल के बयान की. विश्वास मत के इतने दिनों बाद, चुनाव के भी बाद अब अमर सिंह के अंदर का ईमान जाग गया और उन्होंने खुलासा कर ही डाला की सोमनाथ चटर्जी ने उनसे कांग्रेस समर्थन को कहा था.

क्यों? अब कैसे इन पुरानी बातों को याद कर लिया? क्या दुश्मनी हो गयी ताजी-ताजी सोमनाथ से? बुढऊ की मिट्टी क्यों खराब करने पर तुले हैं?

यह सोमनाथ से दुश्मनी नहीं है, सोमनाथ तो घुन है जो पिस गया क्योंकि अमर सिंह अपनी रोटियां सेंकने के लिये आटा बनाने में लगे हैं.

यह गूढ़ बात है. चेतावनी है अमर सिंह कि कांग्रेस को. अगर तुमने हमें लपेटा तो बर्रों के छत्ते को खोल डालूंगा. राजफाश कर दुंगा. पर्दानशीं रहस्यों को बेपर्दा कर दूंगा.

सोमनाथ को लपेट कर उन्होंने सैम्पल दिखाया है कि असल माल पोटली में बंद है, बोलो तो खोलूं.

अमर सिंह कांग्रेस के लिये नोट बांट रहे थे विश्वास मत के दौरान (आइबिएन ने छुपाते-छुपाते भी दिखा डाली). किसके कहने पर?

इतने राज दफन हैं अमर सिंह के सीने में कि जो खुल जायें तो ऐसी पिक्चर का मसाला तैयार हो जाये जिसे हिट कराने के लिये बड़े भैया अमिताभ की भी जरुरत न रहे.

और आप क्या सोच रहे थे? सोमनाथ को बेफालतू में निपटा दिया अमर सिंह ने? नहीं यह निशान्ची अब सारे गुर सीख चुका है, अब यह प्यादों पर वक्त बर्बाद नहीं करता, सीधे वज़ीर का शिकार करता है.

Sunday, April 12, 2009

समाजवादियों का मेनिफेस्टो… हंसी के गुलगुले

लोग सपा के मेनिफेस्टो पर हंस रहे हैं बहुतों का कहना है कि ऐसी बेवकूफी पहले नहीं देखी. इन्टरनेट पर जिस भी जगह मेनिफेस्टो के बारे में पढ़ा तो उस टिप्पणी करने वालों ने गुस्सा नहीं हंसी का इजहार किया. सचमुच अमिताभ के छोटे भाई, अनिल अंबानी के दोस्त ने जो गुल खिलाया है उससे गुलगुली होती है.

लेकिन भाई जरा टेक्स्ट का सबटेक्स्ट पढ़ना सीखो. इस मेनिफेस्टो की अपील कहीं और ही है. जरा इसके प्रस्तावों पर गौर करते हैं. होली की भांग का नशा, चढ़ा हुआ है अब तक. बेचारे


होरी की भांग अब तक
ना उतरी भैया
  1. अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा बंद करेंगे. (यह देशभाषा प्यार है?)
    तालिबान ने भी अफगानिस्तान में अंग्रेजी शिक्षा बंद करा दी थी हम करा देंगे तो अपन को कुछ खास वोट तो मिलेंगे.

  2. सारे आफिसों में से अंग्रेजी गायब करा देंगे.
    क्या चलायेंगे जनाब? उर्दू या हिंदी यह भी बता देते.

  3. सारे कम्पयुटरों को आफिसों और शिक्षा स्थलों से गायब कर देंगे
    वैसे भी ज्यादातर मदरसे कम्प्युटर क उपयोग नहीं करते (सिवाय उनके जहां समझदार लोग हैं).

  4. सारे कृषि उपकरण बंद करा देंगे. ट्रेक्टर की जगह बैल चलायेंगे
    बहुत अच्छे, इन बुलों से बुलशिट लेकर देश में बांटने में आसानी होगी

  5. शेयर बाजार बंद कर देंगे
    फिर अनिल अंबानी का क्या होगा? छोटा भाई नाराज हो जायेगा.

  6. बड़े-बड़े वेतन पाने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे
    भाई देश में बस एक ही अमर अर्रे… अमीर आदमी चलेगा… और कौन अपने अमीर सिंह (भैया 7 मिलियन डालर की मिल्कियत वाला तो खुद को खुल्ले में कहते हैं अमीर सिंह जी)

  7. मालें बंद करा देंगे
    शुरुआत सहारा माल से कराओगे चाचा या बत्ती दे रहे हो?

  8. सारी प्राइवेट कम्पनी में कम से कम मजदूरों के स्तर का वेतनमान करा देंगे
    सही है इनकी सरकार बनी तो वैसे भी पूरे देश को यही वेतनमान नसीब होगा.

  9. सारी महंगी शिक्षा बंद करा देंगे
    वैसे भी देश में इंजीनियर, वैज्ञानिक, डाक्टर ज्यादा हो गये हैं.

  10. पाकिस्तान और बांग्लादेश से दोस्ती बढ़ायेंगे
    हमारे भविष्य के वोटर वहीं से तो आने हैं. है न अमीर सिंह जी?

  11. सांप्रादायिक ताकतों पर वार कर आतंक को जड़ से मिटा देंगे
    देश के सारे हिंदुओं को नष्ट कर दिया जाये तो किसके खिलाफ होगा आतंक?

  12. बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देंगे
    रोजगार देने से ज्यादा आसान है.

  13. वकीलों और व्यापारियों के लिये योजनायें बनायेंगे
    वकीलों कि तो जरुरत पड़ेगी अगर यह सब कर दिया भैया, और व्यापारी जब आप उनका भरता बना दोगे तो भत्ता देना होगा न.

  14. किसानों की समस्याओं पर ध्यान देंगे
    देना, ध्यान देना बहुत समस्यायें मिलेंगी जब उनके ट्रेक्टर छीन कर, उनके कृषी उपकरण हथिया कर आप उन्हें आदिम युग में धकेल दोगे.

Friday, April 10, 2009

कश्मीर पाकिस्तान का मर्ज नहीं, उसका लक्षण भर है… तो आखिर असली बीमारी क्या है?

पश्चिम में कुछ लोगों को लगता है कि पाकिस्तान की समस्या कश्मीर है, और अगर कश्मीर हल हो जाये तो पाकिस्तान कि सारी मुसीबतें मिट जायेंगीं. वहां अचानक शांति कि आमद हो जायेगी, और फटाफत सारे आतंकवादी हथियार रख के हल-हंसिया थाम लेंगे.

पश्चिम सारे विश्व को अपने अमेरिकी चश्मे से देख रहे हैं बिना समझे की जिस तरह आतंकवादी सोचता है, उस तरह से एक सामान्य नागरिक नहीं सोच सकता.

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खेल भी तो किस चीज से?…

इसलिए वो आशा करते हैं कि पाकिस्तान के जनमानस में स्वात में लड़की की पिटाई के लिये स्वत: स्फुट सहानुभूती के ऐसे स्वर उठेंगे की तालिबान भी बह जायेगा. शायद उनके दिमाग में यह विचार भी नहीं आया होगा कि बहुत सारे पाकिस्तानियों के लिये यह शर्म नहीं गर्व की अनुभूति लेकर आयी घटना है. गर्व अपनी शरिया और शूरा के अक्षरश: पालन करवा पाने का.

लेकिन अमेरिकि लिबरलों के लिये यह समझ पाना मुश्किल है, इसलिये जब अमेरिकि दूत हिलब्रूक ने कहा कि वो भारत पर कश्मीर की समस्या के बारे में बात करने के लिये जोर नहीं डालेंगे तो अमेरिका में ही इसके विरोध के स्वर गूंजने लगे. अचानक आवाजें आने लगीं कि अगर कश्मीर पाकिस्तान की शांति का रास्ता है.

उन्हें लगता है कि कश्मीर न पाने की बेबसी और बांग्लादेश के कट जाने का दर्द पाकिस्तानी जनमानस को खाये जा रहा है, और यही कारण है पाकिस्तानी युवाओं का आतंकवाद की तरफ जाने का. उन्हें लगता है कि कश्मीर हल हो जाये तो यह बिगड़ैल लड़के घर लौट जायेंगे और धीरे-धीरे आयेगी… शांति...

काश अगर ऐसा होता तो कश्मीर देकर भी देख लेते. आखिर विश्व शांति से बड़ा क्या होगा यह अत्यंत महंगा जमीन का टुकड़ा जो हर साल भारत के कई सौ करोड़ खा रहा है.

काश ऐसा होता…

असल में पाकिस्तान की समस्या कश्मीर या बांग्लादेश भी नहीँ. पाकिस्तान की समस्या है सांप्रादायिकता. वहां पर रहने वाले लोगों में इस्लामिक साम्प्रादायिकता इस हद तक है कि उन्हें इस्लामिक धर्म, इस्लामिक विचार, इस्लामिक जीवनशैली (जो शरिया के अनुसार है) के अलावा कुछ स्वीकार्य ही नहीं.

हर वाक्य में इंशा-अल्लाह कहकर अल्लाह का अपमान करने वाले कठमुल्लों को जाने क्यों भरोसा है कि जिसे इस्लाम पर भरोसा नहीं, उस पर अल्लाह का करम नहीं. उनका निर्णय एक ही है, उनका लक्ष्य एक ही है. सारे विश्व में एकक्षत्र उनका मनमाना फतवेगिरी का कानून, कश्मीर का एजेंडा वक्ती है. सिर्फ इसलिये ताकी जिन लोगों कि भावनायें धर्म नहीं भड़का पाता, उन्हें राष्ट्र के नाम पर भड़का दिया जाये.

थोड़ा सोचकर देखें की पाकिस्तान के हाथ कश्मीर लग जाये तो क्या होगा.

बताईये

1 क्या पाकिस्तान की औकात है कि कश्मीरियों को जिस सुविधाओं की आदत है वह उसके लिये खर्च कर पाये?

2 जो आतंकवादी पाकिस्तान ने पाल पोस कर बड़े किये हैं, वो बेरोजगारी में क्या करेंगे?

3 पाकिस्तान के जिस तबके को उसने इतने दिन भारत के खिलाफ नफरत का जहर पिला-पिला कर पैदा किया, वो कश्मीर के बाद क्या मांगेगा?

पाकिस्तान में मशहूर जोकर है जिसका नाम है जायद हमदी. इसने पहले ब्रासटेक्स नाम के प्रोग्राम में मुंबई विस्फोट के बाद उल्टे सीधे बयान दिये थे. इसने थोड़े दिन पहले भारत के भरत वर्मा से कहा कि ‘फिर हम पानीपत में मिलेंगे’

जायद हमदी इतिहास में इतना पीछे चला गया, लेकिन हालिया इतिहास भूल गया. भारत से युद्धों में करारी हार और भारतियों की दया पर छूटने वाले करगिल के घुसपैठियों का सबक यह भूल गया.

अब भी नये घुसपैठिये आ चुके हैं और हमारे सैनिक सीमाओं पर लड़ रहे हैं. पूरे गांव के गांव कश्मीर में खाली करा दिये गये हैं. चुनाव का मौसम है, इसलिए आप इस बारे में कम सुन रहे हैं. लेकिन हालात गंभीर हैं.

पाकिस्तान की दुश्मनी कश्मीर के लिये नहीं. पाकिस्तान की दुश्मनी देश या राष्ट्र के लिये नहीं. पाकिस्तान की दुश्मनी इससे भी गहरी है. पाकिस्तान की दुश्मनी धर्मांध है, उनकी दुश्मनी उनके विधर्मियों के साथ है जिनका यह वजूद मिटा देना चाहते हैं. इसलिये पाकिस्तान का दुश्मन हर वो देश है जहां उसके धर्म से इतर लोगों का शासन है, और इसलिये वह हर उस देश में आतंकवाद का निर्यात कर रहा है.

जब तक आप यह स्वीकार नहीं करते, तब तक आप पाकिस्तान के आतंकवाद का न कारण समझेंगे, न उसके निवारण का रास्ता ढूंढ़ पायेंगे.


जाते-जाते:

दिग्विजय सिंह (वहीं जिन्होंने 10 साल तक म.प्र. का ऐसा विकास किया कि जहां बिजली-पानी आता भी था, बंद हो गया) ने कहा कि स्विस असोशियेशन और आडवाणी, दोनों के द्वारा बताये गयीं भारतियों कि स्विस बैंकों में जमा राशी गलत हैं.

सही है, दिग्विजय के सोर्स ज्यादा भरोसेमंद हैं, उन्हें जरूर पता है कि कितना-कितना पैसा जमा है… आखिर पैसा भी तो पिछले 60 सालों में उन्हीं….

Saturday, February 14, 2009

देश को अपने काम कि हफ्तावार रपट देना… क्या कोई हिन्दुस्तानी नेता ऐसा करेगा?

प्रेसिडेन्ट ओबामा ने बदलाव (Change) का वादा किया था, और धीरे-धीरे इस बात के चिन्ह दिखने लगे हैं कि बद्लाव हो रहा है. सबसे पहला और सबसे जरुरी बद्लाव जो दिख रहा हे, वह है पारदर्शिता.

ओबामा ने कई पहल की हैं जिनसे लगता  है कि लक्ष्य जनता को मूढ़ मान कर जानकारी से दूर रखना नहीं, बल्कि जानकारी को उसके नजदीक लाना है.

obama

कुछ ही हफ्तों पहले ओबामा ने एक नई शुरुआत की. Youtube पर White house के Channel पर उन्होंने देश को इस बात की हफ्तावार रपट देने शुरु किया है कि पूरे हफ्ते में उन्होंने क्या किया, किस तरह कि दिक्कतें उन्हें आईं, और क्या समाधान उन्होंने ढूंढ़े. अगर कोई नया कानून या कदम उन्होंने लिया तो उसका ज़िक्र भी वो वहां करते हैं. और देश में क्या गलत हो रहा है, उसके खिलाफ आवाज भी वो उठाते हैं (उसे पर्दे के पीछे छुपाने की कोशिश करने के बजाय).

तो उन्होंने अमेरिकी जनता को बताया कि किस प्रकार वो देश में आये आर्थिक संकट से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों को संकट से लड़ने कि प्रेरणा भी दी, और उन कदमों से अवगत कराया जो वो ले रहे हैं. और साथ ही उन्होंने उन वाल-स्ट्रीट कि कंपनियों को चेतावनी भी दी जिन्होंने अपने उच्च-पद के लोगों को इस संकट काल में करोड़ों डालर बोनस के रूप में दिये. उन्होंने कहा कि अमेरिका को इस तरह का ‘लालच’ बर्दाश्त नहीं.

ओबामा ने अभी-अभी अमेरिकी कांग्रेस से 700+ बिलियन डालरों को आर्थिक संकट से जूझने के लिये पारित करवाया है. और उन्होंने इन रुपयों के खर्च के ब्योरा देने के लिये एक वेबसाइट की घोषणा की जहां लोग देख पायेंगे की पैसा कहां खर्च हुआ और इस खर्चे पर अपने विचार भी रख पायेंगे. इसका इस्तेमाल यकीनन इस बात को निश्चित करने में होगा की पैसा इमानदारी से खर्च हो, क्योंकि खर्च और उसका प्रभाव सब देख रहे हैं.

अब कुछ सवाल

1. क्यों नहीं हिन्दुस्तान में उच्च पदाधिकारी अपने काम का ब्यौरा अपने डिपार्टमेन्ट की वेबसाइट द्वारा लोगों को दें. यह तो एक वेबकैम से संभव है.

2. क्यों न सभी कल्याणकारी योजनाओं कि एक वेबसाइट हो जहां यह जानकारी विस्तार में हो कि पैसा कहां खर्च हुआ (वाउचर स्कैनिंग, व पाने वालों के नाम सहित). और यहां लोगों की शिकायत के लिये जगह भी हो.

इस सब में खर्च बहुत ज्यादा नहीं होने वाला, और अगर ऐसा हो पाये तो जितना पैसा बेईमान लोगों द्वारा डकारे जाने से बचकर आयेगा, उससे भरपाई हो जायेगी.

Better transparency will lead to better governance.

और ओबामा को इस तरह की कोशिश के लिये मुबारकबाद.

आप भी ओबामा की हफ्तावार रपट जरूर देखें. और जोर दें की हमारे यहां भी बदलाव आये.