Friday, January 23, 2009

क्या आतंकवादियों का जेहाद हिटलर की देन है?

मानव-हत्या और anti-semitism की जिस परिपाटी की नींव हिटलर ने डाली, उसे जेहाद के नाम पर कुछ कुत्सित और घृणित लोग सफलता से आगे बढ़ा रहे हैं. इनका तौर-तरीका एकदम वही है जो हिटलर का था.

-- भड़काऊ भाषण.
-- धर्म और नस्ल के नाम पर नफरत और बचपन से ही नफरत के जहर को नसों में भरना.
-- अपने लोगों को लगातार यह कहना कि हम दमित हैं.
-- दूसरे धर्म, नस्ल व जाति के लोगों को हेय कहना व अपनी धर्म व जाति को सबसे उच्च समझना.
-- सम्पूर्ण विश्व पर अपनी नस्ल, धर्म, व जाती का एकक्षत्र राज पाने की उत्कंठा.
-- पहले दोस्त बनाकर फायदा उठाना फिर भीतर-घात करना.
-- अपने समाज व राज्य की हर समस्या का कारण दूसरों को बताना.

कोई आश्चर्य नहीं कि इन्हें सफलता भी वैसी ही मिल रही है जैसी हिटलर को मिली. लेकिन पराभव और समूल नाश भी इन आतंकवादियों का भी ठीक वैसा ही होगा क्योंकि जिस प्रकार हिटलर के खिलाफ पहले हिचक-कर फिर बाद में डटकर सम्पूर्ण विश्व ने एक होकर मुकाबला किया, इनके भी खिलाफ सभी को एक होना है.

लेकिन हिटलर और इस्लामिक जेहादियों का सम्बन्ध सिर्फ काम करने के तौर-तरीकों तक ही नहीं है, इससे काफी गहरा है. सच्चाई तो यह है कि आज जिस जेहाद से विश्व प्रताड़ित है, वो हिटलर के नाज़िवाद से ही प्रभावित है, व उसका परिष्कृत रूप है.

इस्लामिक जेहाद के जनक मुफ्ती हज-मुहम्मद-अमीन-अल-हुसैनी और हिटलर

समान विचारधारा के दो लोग साथ

Mufti & Hitler in a meeting.

मुफ्ती हज-मुहम्मद-अमीन-अल-हुसैनी 1922 में जेरुसलम के grand mufti और सर्वोच्च मुस्लिम सभा (Supreme Muslim Council) के मुखिया बनाये गये और इन शक्तिशाली पदों को प्राप्त कर वो विश्व के मुसलमानों और अरबों के सबसे बड़े धार्मिक नेता बन गये. इनके धार्मिक विचार क्या थे यह इसी बात से जाना जा सकता है कि 1920 में इन्हें भीड़ को प्रार्थना कर रहे यहूदियों को मारने के लिये उकसाने पर जेल मिली थी.

अपनी जवानी में अपने साथ काम करने वाले एक यहूदी अब्बादी को फिलिस्तीन के बारे में यह कहा:

"याद रखो अब्बादी, यह अभी और हमेशा अरबों की भूमी थी, और रहेगी. हमें यहां के मूल निवासियों से कोई शिकायत नहीं, लेकिन उन बाहरी लोगों, यहूदियों के आखिरी आदमी को भी मार दिया जायेगा. हमें कोई विकास नहीं चाहिये. इस देश की किस्मत सिर्फ तलवार से लिखी जायेगी."

इसके बाद उन्होंने यहूदियों पर मस्जिदों को नापाक करने का इल्ज़ाम लगाया, और नारा दिया -- 'इज्बाह अल-यहूद' (यहूदियों को मारो). इसके बाद के सालों के घटनाक्रम में बहुत से यहूदियों की हत्या कर दी गई और मुफ्ती ने 1936-37 के दौरान नाजियों के तीसरे राइख का समर्थन कर उनसे यहूदियों के राष्ट्र को बनने से रोकने में मदद करने की अपील की (आखिर दोनों ही यहूदियों का विनाश चाहते थे). इसी दौरानु अरब आतंकवादियों द्वारा एक पुलिस IG की हत्या और बहुत सारे यहूदियों की हत्या से परेशान होकर ब्रिटिश सरकार ने मुफ्ती को पदच्युत कर सीरिया में देश निकाला दिया.

वहां नाजियों ने मुफ्ती को पैसे व हथियारों की मदद देकर फिलिस्तीन में 1936-39 के बीच विद्रोह की अग्नि सुलगाई. 1941 में उन्हें जर्मनी भागना पड़ा जहां उनकी मुलाकार स्वयं हिटलर से हुई. मुफ्ती ने इस मुलाकात में कहा की यहूदी उसके सबसे बड़े दुश्मन हैं. मुफ्ती ने हिटलर को 15 बार declarations की प्रति भेजी जो वो चाहते थे कि हिटलर दे. उनमें क्या था इससे साफ होगा...

"फिलिस्तीन में यहूदी तत्वों की समस्या को उसी तरह खत्म किया जाये जिस तरह Axis देशों में किया जा रहा है." वो तरीका क्या था, यह सब जानते हैं.

मुफ्ती ने नाजी तौर-तरीकों को अपनाया, व उन्हें अरबों को सिखाया. उन्होंने बोस्निया में मुसलमान नाजियों की एक फौज भी तैयार की जिसमें 25000 से ज्यादा सैनिक थे. युद्ध में हिटलर की हार के बाद मुफ्ती Egypt भाग गये जहां उन्होंने इज़राइल के खिलाफ जेहाद को जन्म दिया. उन्होंने कहा - "मैं जेहाद के ऐलान करता हूं, मेरे मुस्लिम भाइयों यहूदियों को मारो, हर यहूदी को मारो!"

यही मुफ्ती जेहादी इस्लामिक आतंकवाद के जनक थे. इन्होंने नाजीयों की सीख का इस्तेमाल अरबों में असंतोष व जेहाद को जन्म देने में किया, और नाजियों की ही तरह धर्म व नस्ल से जोड़कर और भी खतरनाक बना दिया. आज जो जेहादी आतंकवाद अरब राष्ट्रों में शुरु होकर पूरे विश्व में जहर बनकर फैल गया है, उसकी शुरुआत यहीं हुई.

PLO के मुखिया यासर आराफात मुफ्ती से बुरी तरह प्रभावित थे. उन्होंने 17 साल की उम्र में मुफ्ती के आतंकवादी गुट में कार्य शुरु किया. मुफ्ती का एक और रिश्तेदार फैसल-अल-हुसैनी भी PLO के वक्ता रहे और उनके परिवार का असर अरबों में दशकों तक रहा. मुफ्ती की मौत 1974 में हुई.

जिस आतंकवाद को सब कौमी आंदोलन समझ रहे हैं, वो भी नाजी सोच का दंश है, जिसे हमें न जाने कब तक झेलना होगा.

7 comments:

  1. संगठिततौर पर नाजीवाद 20 शदी में दिखाई दिया है,जबकि जेहाद से पूरा यूरोप और एशिया हजारों साल से त्रस्त है। नाजीवाद एक नश्ल की श्रेष्ठता की बात करता है,जबकि जेहाद एक मानसिकता है और धारा है। जेहाद में नश्लीय श्रेष्ठता नहीं है...अल्लाह के नाम पर पूरे विश्व को फतह करने का एक अंध जज्बा है,जबकि नाजीवाद नश्लीय श्रेष्ठता के आधार पर विश्व को अपने अनुरुप बनाने का एक संगठित अभियान है। जेहाद चाहने वालों को सिर्फ जेहाद से ही नियंत्रित किया जा सकता है,कोई मध्यम मार्ग नहीं है...प्रार्थना करने के दौरान भी ये लोग गर्दन काट ले जाएंगे...इससे बचने के लिए शांति के गीत लिखना बेकार है, इस पर चौतरफा हमला करना बेहतर होगा.... .दुश्मन का दुश्मन तात्कालिक दोस्त होता है, न कि सार्वकालिक...अंतिम बिंदु पर नाजीवादी और जेहादी भी एक दूसरे का सफाया करने में लग जाते, इसमें कोई संदेह तो दूर कर ले...

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  2. हिटलर ने जो भी किया वह और जेहाद के नाम पर जो भी किया जा रहा है, उसका समूल नाश होना चाहिये. परेशानी यह है कि मुस्लिमों में इन कट्टरपंथियों के विरुद्ध बोलने वाला कोई नहीं, जो बोलना भी चाहता है उसे जान के खौफ से चुप बैठना पड़ता है.

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  3. आँखे खोलने के लिए ऐसे लेख लिखे जाने चाहिए. जब अच्छा ई खामोश होती है, बूराई ज्यादा चीखती चिल्लाती है.

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  5. आलोक नन्दन जी, इसलाम के नाम पर लड़ाइयां तो पहले भी हुईं है, लेकिन आतंकवाद का नव स्वरूप और विस्तार इसको मुफ्ती ने ही दिया. पहले युद्ध होते थे, और अब भीतरघात.

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  6. आपने इस विश्व-व्यापी समस्या पर एक बिल्कुल अलग दृष्टिकोण से प्रकाश डाला है. बहुत-बहुत बधाई!

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  7. लोहे को लोहा काटता है, इन नाजियों का इलाज इन्ही की दावा से किया जाएगा. यहूदी जैसी तानाशाही से इनके छक्के छुड़ा रहे हैं और दम के साथ अमेरिका और यूरोप से समर्थन भी ले रहे हैं, बस यही हिन्दुओं को भी करना होगा. तभी स्थिति में कुछ सुधार होगा.

    क्या जेहाद से इस्राइली स्टाइल में लड़ने का माद्दा रखने वाला कोई नेतृत्व भारत में नज़र आता है? मोदीत्व के आलावा.......

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