जुमे की नमाज़ के दिन लाहौर के अहमदिया मुसलमान (जिन्हें पाकिस्तान में कुत्ते से भी बदतर औकात नसीब है) खुदा में भरोसा रखने वाले हर मुसलमान की तरह मस्ज़िद गये, लेकिन उन्हें इल्म नही था कि वह दिन खुदा की इबादत का नहीं, अजाब का होगा. इस्लामाबाद कि दो मस्ज़िदों पर गोली-बारूद, आधुनिक रायफलों, मशीनगनों व ग्रेनेडों से लैस सुन्नी आतंकियों पर हमला बोल दिया और न जाने कितने ही बेकसूर अहमदिया मुसलमानों को हलाक किया.
एक वक्त तो यह था कि इन सुन्नी आतंकियों के कब्जे में 2000 से ज्यादा अहमदिया मुसलमान थे जिनकी जान की कीमत उन आतंकियों के लिये कुर्बानी के बकरों से भी कम होगी. बहुत सारे बेकसूर अहमदियों के हलाक हो जाने के बाद पाकिस्तानी मशीनरी हरकत में आई और आतंकियों को रोका, लेकिन तब तक कितने ही घर बरबाद हो चुके थे.
असल में पूरी दुनिया में जो सुन्नी मुसलमान हैं उनकी अंध धार्मिकता ने ज़हर फैला रखा है. ज्यादातर आतंकी घटनायें सुन्नियों के गुट करवाते रहे हैं चाहे वो हिन्दुस्तान पर हमले हों या अमेरिका में. ये लोग न तो शियाओं को मुसलमान मानते हैं, और अहमदियों को तो इन्सान भी नहीं मानते. इनके मुल्क पाकिस्तान में अहमदियों को कागज़ी तौर पर इस्लाम से अलग किया जा चुका है. ये लोग सूफी मुसलमानों को भी दिन रात बेइज़्ज़त करते हैं और उनके गीत-संगीत पर जोर देने के कारण हिकारत की दृष्टी से देखते है.
अपने भारत देश में अहमदिया मुसलमान इज़्ज़त की ज़िंदगी जी रहे हैं और उन्हें मुसलमान होने का पूरा दर्जा हासिल है.
अपने देश में भी चाहे वंदे-मातरम हो, या आतंकियों की तरफदारी भरी बातें, या बेवकूफी भरे फतवे, यह सब करने वाले सुन्नी मुसलमान ही हैं. इस्लाम के सारे अवगुण जैसे ज्यादा बच्चे पैदा करना, औरतों पर अत्याचार की ज़िद यह सब भी सुन्नियों में ज्यादा मिलेगी.
वैसे तो शिया भी निर्दोष नहीं हैं. शियाओं के सबसे बड़े मुल्क ईरान में वहीं पैदा हुये बहाई धर्म का जिस निर्ममता से गला घोंटा गया वह दिल कंपकंपा देता है. बहाइयों के गुरुओं को कैद किया गया, उनपे अत्याचार किये और बहाइयों को मारा गय. कुछ जान बचा कर भागे और उन्हें हिन्दुस्तान ने ही आश्रय दिया, और अपना पूजा स्थल बनाने की जगह भी – दिल्ली में लोटस टैंपल बहाई पूजा स्थल ही है.
यह सब बताने का सार यह है कि सुन्नी मुसलमानों में असहिष्णुता हिंसा का जो रूप ले रही है वह हर मुसलमान देश की माइनोरिटी के लिये दर्दनाक है, फिर चाहे वो अरब देश हों, इराक हो, मलेशिया हो, इंडोनेशिया हो, बांग्लादेश हो या और कोई भी मुसलमान देश, हर देश में माइनोरिटी पर अत्याचार के इतने किस्से खून से लिखे गये हैं कि दुनिया का कागज़ खत्म हो जाये पर कहानियां खत्म न हों.
शिया, अहमदिया, सूफी व अन्य मुसलमान वर्गों को सुन्नियों का पुरजोर विरोध शुरु करना चाहिये जो पूरी मुस्लिम कौम को अतिवादी का तमगा दिला चुके हैं.
फिर भी यह हिन्दुस्तान है जहां इस देश की माइनोरिटी मुसलमान सुरक्षित हैं, और हमारे देश के प्रधानमंत्री ने जैसा कहा कि देश के संसाधनों पर हक भी रखते है, तो भी उन्हें एक बार नारा देकर यह कहने में हिचक क्यों होती है कि जय हिंद!
क्या दूसरों के कत्ल को प्रेरित करने वाले धर्मों से नास्तिक होना बेहतर नहीं है?
आज ही नास्तिक बनिये, धर्म से अपना पिंड छुड़ायें, इन्सानियत अपनायें.