माओ इतने सालों तक चीन के सर्वोच्च पद पर रहे. इतने बड़े देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे लोगों से अपेक्षा यह तो है ही कि उनमें ‘common sense’ नाम की uncommon चीज थोड़ी मिले, लेकिन विश्व के बाकी देशों से चीन अपवाद क्यों बने. अपने देश समेत हर देश में सनकी, गैर जिम्मेदार, और नाकाबिल लोग ही सर्वोच्च पदों पर ज्यादा पहुंचते हैं. खैर बात उनकी नहीं माओ की हो रही है. तो आज याद करते हैं माओ कि कुछ ऐसी मसखरियों को जिनकी कीमत चीन के लोगों ने गहरी चुकाई. सचमुच माओ ने कुछ ऐसे अजीब फैसले लिये जिन्हें भीषण अदूरदर्शिता और सनक ही मान सकते हैं. देखिये तो जरा: -
1. चिड़ीमार माओ
माओ को सब लोग विश्व के पूंजीपतियों के दुश्मन के रूप में जानते हैं (यह वही ‘महान’ नेता हैं जिन्होंने स्तालिन को विश्वास दिलाया था कि वो पूंजीपति देशों के विनाश के लिये 30 करोड़ चीनीयों को कुर्बान करने से पीछे नहीं हटेंगे.) लेकिन कितने लोग यह जनते हैं कि प्यारे कम्युनिस्ट माओ चिड़ियों के भी कट्टर दुश्मन थे.
भैया पांच चिड़िया मार दीं, अभी और कित्ती मार के माओ अंकल खुश होंगे?
1958 में उन्हें पता चला कि चीन के चावल चिडियां खा रहीं है इसलिये चीनी भूखें हैं. तो उन्होंने हुक्म पारित करा दिया – ‘मार चिड़िया’. चीन के किसानों, पदाधिकारियों को कहा गया कि चिड़िया उड़ाओ, चिड़िया के घोसले ढूंढ़-ढूंढ़ के तोड़ो, अंडे फोड़ दो, गुलेल से मार दो. तो लोग लग गये और चीन में लाखों चिड़ियाओं ने अपनी जानें गंवा दीं.
तो क्या चीन के चावल चिड़ियों से बच गये? लोग भूखे नहीं रहे?
नहीं भाई, बाद में बात खुली कि जितने चावल चीन की चिडि़या खातीं थीं उससे ज्यादा तो वे उन कीड़ों को खाती थी जो फसल बर्बाद करते थे. चिडि़यां मरीं तो कीड़ों की ऐश हो गयी. चिड़िया रहित चीन में टिड्डियों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई और इस हद तक बढ़ोतरी हुई कि फसलें टिड्डियों के पेट में गईं और चीन में अकाल पड़ा.
चीन के चावल टिड्डियां खा गईं.
2. गरीबमार माओ
माओ के धत्करम चिड़ियां मार कर ही रुक जाते तो क्या गनीमत होती, इन्होंने तो अपने देश के बाशिंदों को भी नहीं बख्शा. माओ को नारे गढ़ने का शौक था, चीनी भाषा में खूब आऊं-माऊं नारे गढ़े उन्होंने, उसमें से एक था ‘The great leap forward’ मैं इसका अनुवाद करूंगे ‘जेsss लंबी छलांग’.
हमाला प्याला चेअलमैन माओ अंकल हमें छलांग लगवा लहे हैं
तो पहले माओ ने चीन को चलाया, फिर कुदवाया और तब भी दिल नहीं भरा तो ‘जेsss लंबी छलांग’ लगवायी.
इस जेsss लंबी छलांग में माओ ने चीन की कहानी कुछ यूं कर दी
1) स्वाधीन खेती के पर कतर दिये और किसानों को मजबूर किया कि वो झुंड के झुंड में पब्लिक खेती पर काम करे. इसके लिये उन्हें मजबूर किया गया कैद करके.
2) किसानों से सस्ते दरों में अनाज खरीद कर महंगे में बेचा, किसानों को सिर्फ सरकार को ही अनाज बेचने की इजाजत थी
3) घर-घर में गांव वालों को मजबूर किया गया कि वो लोहा बनाने के लिये भट्टी लगवायें और उन्हें लोहा बनाने का टार्गेट दिया गया. इस काम में लोग सब तरफ लकड़ी काटते डोलते रहे और टार्गेट पूरा करने के लिये लाखों ने अपने घर के बर्तन-भांडे गला डाले. नहीं करते तो माओ क्या करते वो हम बताना पड़ेगा आपको?
तो किसान को किसानी नहीं करनी दी, दे दनादन बेगार कराई (जिससे बचाने के लिये सत्ता में आये थे अपने कम्युनिस्ट शोषक). इसका असर यह हुआ कि खेत में अनाज पड़ा का पड़ा रह गया. लोगों को पार्टी के गुंडो ने परेशान किया (जैसा आजकल बंगाल में कर रहे हैं सीख कर) और गिनिये 1, 2, 3, नहीं पूरे 4.3 करोड़ लोग उस अकाल में मर गये जो इस सब नौटंकी के कारण पड़ा. कहते हैं उस बार चीन की 55 प्रतिशत भूमी अकाल ने चपेट डाली.
माओ की चंपू सरकार ने कितने ही लोगों को इस सब अत्याचार के बारे में खबर लीक करने के अपराध में मौत के घाट उतार दिया.
भाइ अगर हिन्दुस्तान में ऐसा होता तो इतना तो है कि सरकार गिर जाती, लेकिन अपने कम्युनिस्ट एक बार काबिज होते हैं तो हटते हैं कहीं? उन्हें तो उखाड़ना पड़ता है.
3) यारमार माओ
इत्ता सब माओ ने करवा डाला तो कहीं से विरोध तो होना था? कुछ लोगों में तो होती है इतनी दम कि मृत्यु की कीमत पर भी गलत बात का विरोध किया जाये, तो ऐसे लोग उभरने लगे जो माओ की गलतियों के बारे में खुलकर बात करने लगे. आखिरकार जब माओ ने देख लिया कि सबको वो नहीं मार सकता तो माओ सत्ता के केंद्र से उतर गया और नाम का सत्ता अध्यक्ष हो गया, लेकिन माओ को क्या यह स्वीकार्य होता कि डेंग ज़ियाओपिंग और लिउ शाउकि देश को चला पायें.
तोड़ो, मारो, पीटो, खसोटो, अपना इतिहास बच न जाये
तो जब यह लोग सत्ता के केंद्र में आये तो माओ ने अपने इन पुराने दोस्तों की जड़ें खोखली करने का प्लान बनाय. उसने एक ‘सांस्कृतिक क्रांति’ करवाने के नाम पर नौजवान पीढ़ी को उकसाया, उन्हें गुटबंदित किया और एक नयी शक्ति बनाई जिसे नाम दिया गया ‘लाल रक्षक’ (The Red Guard).
तो क्या रक्षा की होगी इस ‘लाल सेना’ ने? इन लोगों ने क्रांति के नाम पर चीन के इतिहास को मिटा डालने में कसर नहीं छोड़ी. इन्होंने मूर्तियां तोड़ दीं, पुरातन इमारते ध्वस्त कर दीं, पुरानी बहुमूल्य किताबें जला दीं, यहां तक की परिवारों तक के लिखित इतिहास को मिटा दिया. ये था माओ का सांस्कृतिक कार्यक्रम.
ये इस हद तक हुआ कि जब यह लाल रक्षक चीन के ऐतिहासिक नगर ‘फोर्बिडन सिटी’ की तरफ बढ़ने लगे तो इस धरोहर के भी नष्ट हो जाने के डर से डेन्ग ज़ियाओपिंग ने शहर के दरवाजे बन्द करवा कर सेना तैनात करवा दी.
इस सेना ने के लोगों ने जासूसी कर के बहुत सारे लोगों को ‘क्रांति विरोधी’ करार देकर मौत के घाट उतरवाया. चाहे सरकार के उच्च अधिकारी हो, या निचले स्तर के, हर कोई डर में जीता था कि कब किसी भी बात पर उसे क्रांति विरोधी का नाम देकर टपका देंगे.
आखिरकार ये लाल सेना खुद ही गुटों में बंट गई और चीन की आधिकारिक सेना के हथियार आदी छीन कर जब उन्होंने आपस में लड़ना शुरु किया तो सरकार हरकत में आई और इस नालायकी का अंत किया.
तो माओ कि कुछ ऐसी दास्तानें आपने सुन ली जो ‘ईमानदार’ (या ईनामदार) कम्युनिस्ट लेखक आपको नहीं बताते. कम्युनिस्ट कारनामें और भी हैं, क्या-क्या कहें, क्या-क्या सुनायें.