कहते हैं कि गांधीजी ने अहिंसक आंदोलन का उपयोग करके अंग्रेजो पर विजय प्राप्त की, उन्हें इस देश से खदेड़ दिया. कहते हैं कि गांधीजी का विचार था कि अहिंसा का उपयोग करना है अपने शत्रु को नैतिक रूप से निर्बल कर देना. यह एक ऐसा उपाय है जिससे आपके आक्रांता के पास कोई नैतिक आधार नहीं रह जाता आक्रमण का.
अगर अहिंसक आंदोलन को ही अंग्रेजो के भारत से जाने का इकलौता कारण माने तो यह आजादी जिसे हम अपनी जीत कहते हैं, जीत हमारी नहीं अंग्रेजो की हुई जिन्होंने अपने समाज को इतने ऊंचे नैतिक मूल्यों तक उठा लिया कि उन्हें निर्बलों/निरीहों पर अत्याचार, और उनके शोषण पर शर्म आई, और उन्होंने हमें अपने हाल पर छोड़ देना श्रेयस्कर समझा, हमारी अहिंसा का फायदा उठाकर बड़े स्तर पर genocide करने की जगह.
लेकिन यह बात तब विश्वास योग्य नहीं लगती जब हम देखते हैं कि उन्हीं अंग्रेजो ने साउथ अफ्रीका में शासन और शोषण जारी रखा, और फिर नोर्थ अमेरिका में पिछड़े रेड इंडियन्स का बड़े स्तर पर नरसंहार (genocide) किया. इतना कि कभी नोर्थ अमेरिका में बहुसंख्यक रेड इंडियन वहां के बफैलो की ही तरह अब विलुप्त हैं.
तो निश्चय ही यह अपेक्षा करना मुश्किल है कि अंग्रेज एक पूर्ण रूप से अहिंसक आंदोलन के नैतिक प्रभाव से घबराकर हमें आजादी देने पर मजबूर हुये. हो सकता है कि यह भी एक कारक हो, लेकिन यह इकलौता कारक नहीं हो सकता. जरूर और भी लोग या आंदोलन होंगे जिन्हें इस आजादी का कुछ और श्रेय दिये जानी की जरुरत है.
बहुधा देखा गया है कि आक्रांता वर्ग अक्रांतित वर्ग की कमजोरी, या अहिंस प्रवृत्ति का फायदा उठाता है, न कि उस पर दया करके छोड़ देता है. जैसे क्या अपेक्षा की जाये की अगर मुहम्मद घोरी या चंगेज खान के आक्रमण के वक्त उसका स्वागत दियों और मालाओं से किया जाता तो वह जनसंहार और लूट की बजाय टीका लगवाकर वापस चले जाते? अगर ऐसा होता तो यह उपाय कमजोर वर्ग बहुत पहले ही इस्तेमाल कर लेता और इतिहास में जो वीभत्स नर-नारी संहार हुये हैं, वो नहीं होते.
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आतंकवादी अहिंसकों पर ही हमला करते हैं. क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें विरोध का सामना करना नहीं पड़ेगा. अगर इन बम विस्फोट करने वालों को तैयारी करनी पड़ती की इस कार्यवाही में मृत्यु भी हो सकती है, तो उनमें से अधिसंख्य जामिया में पढ़ाई जारी रखना ही बेहतर समझते.
वो कोई आंदोलन या नैतिक मूल्य रखने वाले महान क्रांतिकारी नहीं थे. वो तो बहकाये हुये thrill seekers थे, जो अपनी चालाकी से बेहद खुश थे.
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गांधीजी और लाल-बहादुर शास्त्री के जन्म दिन पर यह सवाल पूछना कठिन काम है कि इस समय वो कितने relevant हैं.
-- ओसामा को अगर शांती संदेश भेंजें तो शांती के लिये उसकी शर्तें क्या होंगी?
-- अगर सभी फिलस्तीनी हथियार छोड़कर इस्राइल में जुलूस निकालें तो क्या इस्राइली settlers घर लौट जायेंगे?
-- अगर कश्मीर से फौजें चलीं जायें तो क्या वहां 'भारत-माता की जय' के नारे लगने लगेंगें?
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अहिंसा का असर उन्हीं पर होता है जिनके नैतिक मूल्य बहुत मजबूत हों. जहां नैतिक मूल्य का अभाव हो, वहां इस अहिंसा का फायदा बहुत आसानी से उठा लिया जाता है.
शेर का शिकार करने में डर लगता है. कबूतर अगर हाथ चढ़ जाये तो बच्चा भी मार लेता है.
लेकिन हिंसा का जवाब हिंसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि उससे सिर्फ और हिंसा का जन्म होगा. सही जवाब क्या है यह तो मुझे नहीं पता, लेकिन यह पता है कि गलत जवाब क्या होगा.
गलत जवाब होगा एक कमजोर समाज जो कायर आतंकवादियों से सहम कर घर में छुप जाये, या उकसकर सड़कों पर निकल आये.
हिंसा का जवाब हिंसा नहीं और हिंसा का जवाब अहिंसा भी नहीं. हिंसा मत करो मगर मुकाबले से न डरो.
ReplyDeleteबहुत ही सही प्रश्न उठाया है आपने!!
ReplyDeleteभारत सहित कई देशों की आजादी का श्रेय हिटलर को दिया जाना चाहिये। हिटलर ही द्वितीय विश्व युद्ध का प्रमुख कारण था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ब्रिटेन की आर्थिक हालत अत्यन्त पतली हो गयी। इसके बाद ही उन्हें उपनिवेशों को सम्भालना असम्भव सा लगने लगा। और...
विश्व जी अहिंसा का कुछ ज्यादा ही सरलीकरण कर लिया आपने. अहिंसा नामक जिस कंसेप्ट का उपयोग महात्मा गाँधी ने किया था और जिस उद्देश्य के लिए किया था उसे सही तरीके से समझे जाने की जरुरत है कभी मौका मिला तो अहिंसा के बारे में आपसे विस्तार से चर्चा होगी
ReplyDeleteपर एक चीज यहाँ याद दिला देना प्रासंगिक होगा कि अंग्रेजों के कहने के बावजूद महात्मा गाँधी ने १९४२ में हो रही हिंसा की आलोचना नही की थी. क्यों नही की थी इस जवाब में ही है उनका अहिंसा दर्शन
अनुनाद जी भी एक बड़े सरलीकरण के मोह से नही बच पायें हैं
फिलहाल कभी आप लोगों से इस विषय पर चर्चा करना हमारा सौभाग्य होगा
शठे शाठ्यं समचारेत
ReplyDeleteभईया कुल मिलाकर अहिंसा को गलत अर्थ में न लीजिए । वैसे हिंसा जा जवाब अहिंसा नहीं है यह बात सही है पर क्या आप अहिंसा को गलत साबित कर सकते हैं। आपके लेख की कुछ बाते अकाट्य है पर मैं सब बातों से सहमत नहीं हूँ । अच्छा लिखा आपने
ReplyDeletebilkul theek likha hai, agar bhagat sigh, ajad, rajguru, batukeshwar datt, subhash jaise lal n hote to aaj bhi ham log ahinsa japte aur angrej ham par raaj karte, yah baat alag hai ki kaalon ki jagar gore hote.
ReplyDeletebahut sahi sawal aur bahut achcha likha hai.....
ReplyDeleteसबसे सही नीति है: जैसे को तैसा. टिट फॉर टैट. जो जैसी भाषा समझे उसे उसी भाषा में जवाब दिया जाए. प्रेम के बदले दुगना प्रेम और थप्पड़ के बदले दो थप्पड़.
ReplyDeleteयहाँ हिंसा-अहिंसा की बहस में वक्त ज़ाया किया जा रहा है, उधर लालू-अर्जुन जैसे नेता देश की वाट लगाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं… सचमुच शर्म आती है कि कैसे कैसे सेकुलर पाल रखे हैं हमने अपनी आस्तीनों में…
ReplyDeleteआप सभी की टिप्पणियों का शुक्रिया. अहिंसा क्योंकि परम धर्म है, इसलिये उसे समझने की हर कोशिश का स्वागत है.
ReplyDeleteमहान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन ने खा था की भविष्य की पीढियां शायद विश्वास नहीं करेंगी की धरती पर ऐसा भी कोई हाड़ मांस का प्राणी पैदा हुआ था..
ReplyDeleteवो बात आज आपने सत्य कर दी.. वैसे यह साश्वत सत्य है अहिंसा सर्वोतम है.. हाँ आपके प्रश्नों के उत्तर शायद मेरी अल्पविकसित बुद्धि न दे पाए... क्योंकि शयद आप समझना ही न चाहें....
हे राम!