जिस अर्थव्यवस्था को छोटे व्यापारियों और उनके कर्मचारियों ने खून पसीना मिलाकर विश्व स्तरीय बनाया, उसका दोहन ठीक ताजा-ताजा ब्याही भैंस की तरह कर लिये पी. चिदंमबरम ने. सारा दूध काढ़कर बाल्टी में अलग रख लिया, और बछड़े को इतना भी न मिला की वो जिंदा रह सके.
तो अब जब industrial growth rate रेट 11% से घटकर 1.3% रह गयी तो कमलनाथ इतना बौखला गये की आंकड़े बदलने की बात कर डाली. अरे मूर्खों पिछले पांच साल में तुमने इस फसल के सारे फल सूत लिये, अब तो बीज के लिये भी कुछ नहीं बचा.
छोटे व्यापारियों पर तो गिन-गिन कर सितम हुये हैं. उनके लिये अब रोजगार चलाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होने लगा.
1. सर्विस टैक्स
पहले जिन सुविधाओं पर बिल्कुल टैक्स नहीं लगता था, उनपर 5 सालों में 12% टैक्स हो गया. यहां तक की ट्रांसपोर्ट जैसी मूल-भूत सुविधाओं को भी बख्शा नहीं गया. आपके यहां जो दाल-चावल की महंगाई बढ़ी, उसके लिये बहुत हद तक जिम्मेदारी इसी सर्विस टैक्स की है.
असल में चिदंमबरम का उद्देश्य हर तरीके से सरकारी खजाना भरना रहा, लेकिन इस पैसे का उद्देश्य जन-कल्याण के लिये नहीं हो रहा है. अभी भी भारत की शिक्षा और स्वास्थ पर खर्च प्रति व्यक्ति न्यून स्तर पर है.
2. बिल्डर लाबी को बेतहाशा छूट
कांग्रेस और उसकी दोस्त पार्टियां बिल्डरों पर खासा मेहरबान रहीं. जहां-तहां बड़े-बड़े भूमिखंड कभी SEZ, कभी housing projects के नाम पर औने-पौने दामों में बांटे. वहां जो SEZ बन रहे हैं उनमें छोटे उद्योगों के लिये कोई जगह नहीं, असल में वह सिर्फ land prices के speculation का जरिया भर बने.
लेकिन अब उन सारे चोरों को सबक आ रहा है. सब की सब बर्बादी की कगार पर हैं, और उन्हें होना भी चाहिये बर्बाद.
3. मार्केट बंद, मॉल चालू
भारत में मार्केटों का चलन रहा है जहां छोटे-छोटे दुकानदार सस्ता माल लाकर भारत के बहुत बड़े मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को उपलब्ध कराते रहे हैं. जब मॉल भारत में खुले तो मार्केटों से टक्कर लेना मुश्किल हो गया. लोग मॉल देखने गये, और खाने-पीने, लेकिन खरीदने वही मार्केट में. तो सरकार ने भारत भर में मॉल स्वामियों के दबाव में मार्केट बंद करने की छुपी मुहिम चालू कर दी. कभी किसी, तो कभी किसी कानून का सहारा लेकर मार्केटों और छोटे दुकानदारों पर दबाव बनाना चालू रहा.
4. खुले बाजार के नाम पर विदेशी निवेशकों को बाजार का पटरा करने दिया
बाजार को निवेश के लिये खोलने का बहाना बनाकर विदेशी निवेशकों को न्योता. उन्होंने बड़ी पूंजी के बल पर शेयरों को मन-माफिक उठाने-गिराने का खेल किया और छोटे निवेशकों को फुटबाल की तरह कभी इस पाले तो कभी उस पाले उछाला.
5. FBT, Deposit Tax आदि कानून
पहले कर्मचारियों पर जिन खर्चों पर पूरी टैक्स छूट मिलती थी, उस पर भी कर लगा दिया. मतलब अब व्यापार के लिये फोन और यात्रा पर भी टैक्स देना होगा. इस घटिया कानून के चलते कंपनियों ने कर्मचारियों को दी गई छूटों में कटौती की.
साथ ही यह भी भूलने की बात नहीं की जितने ज्यादा टैक्स जोड़े जाते हैं, उतना ही परेशानी व्यापारियों को झेलनी पड़ती है. उनके लिये आज मुश्किल यह है कि व्यापार के लिये समय लगायें, या टैक्स के झमेलों से निपटने के लिये.
बैंक में जमा खुद की राशी को निकालना पर भी सरकार को टैक्स देना पड़ रहा है. यह तो सिर्फ एक मजाक ही है.
6. विदेशों कंपनियों को सुविधायें, देशी को पेनल्टी
अगर आप विदेशी उद्योग, या बड़े उद्योग के मालिक हैं तो सरकार आपके लिये खास सुविधायें बनायेगी. कानूनों में रद्दोबदल करेगी, और कई जगह तो कानून तोड़ने में मदद भी करेगी. लेकिन छोटे उद्योंगों और व्यापारों को शुरु करने की सरकारी खानापूर्ती ही बहुत सारे उद्योंगों को शुरु होने से पहले ही खत्म कर देती है.
मैकडानल्ड में खाद्य निरीक्षक सलाम बजाने जाता है, और कोने के रेस्तरां को परेशान करने. यही फर्क है बड़े पैसे का.
7. 20 की जगह 10 कर्मचारियों पर PPF
पहले 20 या उससे ऊपर के कर्मचारियों वाली संस्थाओं को ही PPF की सुविधा देनी पड़ती थी, लेकिन इसे 10 कर दिया गया. PPF देने की परेशानी तो छोटी है, बड़ी मुश्किल हैं PPF के रजिस्टर और द्स्तावेजों को बनाना. फिर उन मुफ्तखोर सरकारी अफसरों को झेलना तो और भी मुश्किल है जिन्हें काम नहीं अपने हफ्ते से मतलब है.
इसलिये छोटे उद्योगों के लिये अब भर्ती और कर्मचारियों की छंटनी और भी मुश्किल है.
8. नाना प्रकार के रजिस्ट्रेशन
अगर आप दुकानदार है तों म्युनिसिपाल्टी में रजिस्ट्रेशन कराइये, सेल्स टैक्स में कराइये, सर्विस टैक्स में कराइये, और भी दस जगह दौड़ते रहिये, फिर इन सब जगहों की कागजी खानापूर्ती में साल बीत जायेगा.
पिछले कुछ सालों में इन तरहों की परेशानियों में कमी नहीं, इजाफा हुआ है. इसलिये अब छोटे-छोटे व्यापारियों के लिये राह कठिन होती जा रही है.
9. हर महीने कर का भुगतान
सरकार ने मध्यम स्तर के व्यापारों के लिये बहुत सारे करों का हर महीने भुगतान का प्रावाधान रखा है, और कुछ का quarterly. इन करों का भुगतान करने से पहले बहुत सारी reports का निर्माण करना पड़ता है कि कहीं कमी न छूट जाये. किसी भी व्यापारी के लिये इन सारी reports का निर्माण और analysis का समय अपने व्यापार से निकालना मुश्किल है. महीनावार कर तो बड़ी परेशानी है.
aaj bhi wakeel, vyapari, neta, bade officer, doctor is desh ko loot rahe hain
ReplyDeleteबहुत सही विश्लेषण. पूरी तरह सहमत हूँ.
ReplyDeleteआपने ब्लॉग पर जो फॉलोवर्स की संख्या लगा रखी है (वर्तमान में शून्य दिखा रहा है) वह भ्रामक है. अपने पढने वालों का सही अंदाजा लगाने के लिए आप फीड बर्नर का प्रयोग क्यों नहीं करते? वास्तव में काफी सारे लोग आपको पढ़ रहे होंगे.
प्रभावशाली. जारी रहें. आवाजें कभी न कभी सुन ही ली जाती हैं.
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