कितनी विरोधाभासी बात है न. विश्वास (Faith) तो धर्म तो वो नींव है जिस पर धार्मिकता की कमजोर इमारत खड़ी है. यहां तो सब कुछ विश्वास भरोसे चल रहा है, तो फिर कैसे यह विश्वास ही धर्म का सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है?
धर्म कि कुछ बातें ऐसी हैं, जो सभी जानते हैं कि कोरी गप्प हैं
पुष्पक विमान के उड़ने की बात, मोसेस के समुद्र फाड़ने की बात, जीसस के पुनर्जीवन की बात, पुल सुरात, हूरें, जिन्नात. ये सारी बकवास अलग-अलग नामों के साथ हर धर्म का हिस्सा हैं. जब कोई पादरी, पंडा या मौलवी इन पर विश्वास करने को कहता है तो किसी समझदार आदमी का दिल कैसे न करे की थप्पड़ बजा दें? लेकिन फिर भी इन गप्पों को सुनना पड़ता है.
कुछ भोले-बकस इन बातों पर यकीं कर भी लेतें हैं, लेकिन उनको भी विश्वास डांवाडोल ही रहता है, वरना जिस तरह इब्राहिम ने खुदा पर विश्वास करके अपने बेटे की बलि दी, उस तरह सभी पूरे ईमान वाले लोग कर सकते थे. यहां राजा बलि भी डाल सकते हैं.
फिर भी इन गप्पों को सच मानने का स्वांग क्यों?
जो बेवकूफियां समाज में न सिर्फ स्वीकार्य हों, बल्कि प्रोत्साहित भी हों, उनको करने में कैसा डर. कुछ समाज में अपनी छवि के लिये, कुछ इस डर से कि 'कहीं ऐसा हो ही न' लोग धार्मिक कथाओं पर विश्वास दिखलाते हैं. यहां वो कहानी सटीक है जिसमें एक आदमी नाक कटने पर स्वांग करने लगता है कि उसे प्रभु दिख गये, और इस चक्कर में पूरे शहर की नाक कटवा डालता है.
धर्म की हानी इसी में है कि उसकी कोशिश हर सवाल का जवाब बनने की है
इन्सान को पहले नहीं मालूम था की पृथ्वी गोल है कि चौकोर, सृ्र्य के चारों और घूमती है, या सूर्य उसके चारों और, उत्पत्ति कैसे हुई. तो जब ये सारे गुनाहों का गुनाहगार कोई न मिला तो खुदा के सर मढ़ दिये. की ले हर बात का तू ही जवाबदेह.
इन सारे सवालों का जवाब ढूढ़ने जब चिलम सुलगाकर अपने धार्मिक मसीहा बैठे तो कल्पना की उड़ानें बहुत दूर तक निकल गईं. तो धर्म-ग्रंथों में पृथ्वी चौकोर हो कर हाथियों पर सवार हो गई, जो खुद एक बड़े कछुये पे सवार थे. फिर तो एक सवाल का जवाब क्या सुझा, गुरुजनों ने हर सवाल के लिये कछुये टाइप के explanation निकाल लिये.
आजकल पादरी, मौलवी, पंडे इन बातों का ज्यादा जिक्र नहीं करते, क्योंकि उन्हें पता है कि पब्लिक हंसेगी. लेकिन शान से कहते हैं कि भगवान बहुत बड़ा है. बेशक यह भी उन्होंने उसी किताब से सीखा है जहां लिखा है की सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है.
जिस दिन लोग समझ जायेंगे की जिन अकाट्य धर्म-ग्रंथों की एक बात झूठ हो सकती है, उसकी सभी बातें झूठ हो सकती हैं, उस दिन इन पंडो-मौलवियों की दुकान उठ लेगी.
ज्यादातर लोगों को स्वीकार नहीं धर्म के हिसाब से जिंदगी चलाना
बड़ी अजीब बात है, जो लोग खुदा को मानते हैं वो शरियत को नकार देते हैं. मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने वाले जनेऊ नहीं पहनते और पंडिज्जी की पालागी भी नहीं करते. वो व्रत नहीं करते, जाति में शादी नहीं करते, अपने वर्ण के अनुसार काम नहीं करते. ईश भक्त चर्च नहीं जाते, और भी न जाने-जाने किस-किस तरह से अपनी जिंदगी जीते हैं जो परमेश्वर को बिल्कुल पसंद नहीं.
ये सब इसलिये क्योंकि लोग समझने लगें हैं कि यह पसंद परमेश्वर की नहीं, धार्मिक गुरुओं की नौटंकी थी जो समाज को बांधे रखने के लिये बनाई गयी थी. अब खुदा के दलालों की वह इज्जत नहीं जो कभी होती थी. हां अब भी कुछ मूढ़ जरूर उनके हिसाब से चलकर अपनी जिंदगी दागदार कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर लोग उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते, और ये बात अब इन धर्म के ठेकेदारों को भी समझ आने लगी है.
इसलिये अब धर्म होता रहेगा अप्रासंगिक
राबर्ट हैनलिन अमेरिका के बहुत मशहूर और बेहद विवादास्पद उपन्यासकार रहे हैं, क्योंकि उन्होंने आज से कई साल पहले समाज की बहुत सारी रूढ़ियों को अपनी कहानियों में चुनौती दी थी. उनकी संकल्पनाओं में से एक है वो समाज जहां इश्वर के लिये कोई स्थान नहीं. लगभग हर मनुष्य नास्तिक है, और जो व्यक्ति ईश्वर उपासक है उसे उसी प्रकार विस्मय से देखा जाता है जिस प्रकार आज नास्तिक व्यक्ति को.
यह बात थोड़ी wishful thinking के समान लगेगी. लेकिन धर्म और धार्मिक लोगों ने जितनी मुश्किलें इस दुनिया के लिये पैदा की है, उनकी वजह से कोई आश्चर्य नहीं अगर सुधी-जनों का धर्म से विमोह जारी रहे और यह दिन भी आ जाये.
लेकिन चाहे ऐसा हो-न-हो, यह तो होना ही चाहिये कि धर्म के दलालों की सुनवाई बंद हो.
दलाल के नाम पर तो हमें न जाने क्यों अमर सिंह याद आ जाता है
ReplyDeleteboss ek post do din baad publish karoonga, aapke article ke taartamya men, mujhe aapka article achcha laga aur maine post likh di
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा धर्म अप्रासंगिक हो चला है।
ReplyDeleteजहाँ धर्म अप्रासंगिक हो रहा है तो इधर कट्टरपंथी भी बढ़ रहे हैं. अभी तक तो विभिन्न धर्मावलंबियों में युद्ध होता रहा था, आगे बारी नास्तिकों और आस्तिकों के बीच होगी...
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