1957 में अमेरिका में कोई काला व्यक्ती राषट्रपति नहीं था. वह दौर था जब अमेरिका ने रंगभेद से उस शिद्दत से नफरत करना नहीं सीखा था जैसे वह आज करता है. उस दौर और आज के दौर में बहुत फर्क है, लेकिन यह बदलाव आया हर बदलाव कि तरह धीरे-धीरे.
इसी बदलाव की एक कड़ी थी डोरोथी काउन्ट. यह काली अमेरिका के हैरी हार्डिंग हाई स्कूल में पढ़ने वाले पहले काले विद्यार्थियों में से एक थी. 15 साल की उम्र में सितम्बर 1957 में काउन्ट को इस स्कूल में प्रवेश मिला, जो कि सरकार की रंगभेद मिटाने के लिये उठायी गई नीति में एक कदम था.
उस काली लड़की का गोरे लोगों के स्कूल जाना बहुत लोगों को पसंद नहीं था. उनमें से ही एक थी जाँन वारलिक्थ की बीवी जिसने स्कूल के गोरे लड़कों से कहा, 'इसे बाहर रखो', ओर स्कूल की लड़कियों से कहा, 'थूको इस पर लड़्कियों, थूको'.
काउन्ट उस चीखती, गरियाती, थूकती, धमकियां देती भीड़ में चुपचाप चलती रही और स्कूल गई. दूसरे दिन उसके खाने में कूड़ा फेंका गया, टीचरों के सामने. तीसरे दिन जिन दो गोरी लड़कियों से उसने दोस्ती करने की कोशिश की, उन्हें भी डरा कर हटा दिया गया. और उसके परिवार को धमकी भरे फोन काल आने लगे. उसके परिवार की कार का शीशा तोड़ दिया गया और स्कूल में उसके लॉकर को लूट लिया गया.
चार दिन बाद डोरोथी के पिता ने उसे स्कूल से हटा लिया.
डोरोथी दूसरे स्कूल गई, पेन्सिलवैनिया में. वहां गोरे और काले बच्चे साथ-साथ पढ़ते थे.
कुछ क्रांतियां एक-एक कदम चल कर, लम्बी दूरी तय कर भी लाई जाती हैं. ऐसी ही एक क्रांती की जरुरत भारत को है. हमें भी बदलाव चाहिये जाति के खिलाफ. जातियां हमारी पहचान नहीं हमारी बेड़ियां हैं जो हमें एक बॉक्स में बंद कर देती हैं.
आप इस बदलाव में क्या योगदान दे सकते हैं?
काश डा०अम्बेडकर की बात मान लेते गांधी जी.
ReplyDeleteऐसी ही एक क्रांती की जरुरत भारत को है. -सही कहा!!!
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