Wednesday, February 4, 2009

बद और बद, और फिर बदतर

hiding अंग्रेजी में वैसे तो कई कहावते हैं, लेकिन जो मौजूं है उसको थोड़ा उलट-पलट कर कहना चाहता हूं कि -- before it can get bad, it will get worse. मतलब अब जो बद होना है, उसे पहले बदतर भी होना होगा. अगर आप बात का ओर-छोर नहीं पकड़ पा रहे, तो बता दुं कि मैं बात कर रहा हूं विश्व (मेरी नहीं, दुनिया की) के माली हालात की.

अभी थोड़ी देर पहले हंसते-मुस्कराते आॉस्कर फर्नांडीज को टीवी पर अपने सालिम दांतों की सलामी देते हुये देखा. मुद्दआ था कि 5 लाख लोगों की नौकरी पिछले साल के आखिरी तीन महीनों में चली गई, और इस साल मार्च तक 5 लाख और लोग बे-जॉब होने वाले हैं. आॉस्कर ने कह दिया की छ: महीनों की पगार में साल भर काम चला कर नये सिरे से ट्रेनिंग लेकर लोग तैयार हो जायेंगे नयी नौकरी के लिये. मुझे आॉस्कर की मुस्कराहट का राज समझ आ गया. आखिर चुनाव आने वाले हैं, नौकरी तो उनकी भी जाने वाली है. शायद उन्हें मालुम है कि कांग्रेस सरकार रहे या जाये, ये मुसीबत तो अब किसी और के ठीये ही पड़ेगी. तो इसलिये 10 लाख लोगों कि चिंता उन्हें नहीं सालती और वो इस मंदी में मुस्करा लेते हैं जहां हमारे-आपके नौकरी बजा लाने वाले लोगों के चेहरे घबराहट से सूख रहे हैं.

मंदी में पेंच बहुतेरे हैं, जो कंपनियां कुछ साल पहले 50% से ऊपर का महा-मार्जिन कमा रहीं थीं, वो आज आहत हैं कि उनका प्रोफिट मार्जिन सिर्फ 25% रह गया है (आज यह पार्श्वनाथ बिल्डर के बारे में एक लेख में पढ़ा). मतलब मौके की सारी जमीन पर कब्जा कर के जबरिया घर-आफिसों के दाम उछाल कर आपको ज्यादा चूना न लगा पाने का गम इन्हें साल रहा है. तो अब यह करोड़पति खड़ें हैं सरकार के सामने कटोरा लेकर और सरकार दरियादिली से इनके अंधे कटोरे में करोड़ों रुपये झोंकती जा रही है.

कहने को तो यह सब हो रहा है मंदी की मार रोकने के लिये, लेकिन असल में बाज लोगों ने मंदी में भी मलाई मारने के तरीके निकाल लिये हैं. जरा ठहर कर सोचिये कि इन सब प्रोपर्टी कंपनियों और पूंजी वालों का नुक्सान कम करने की इस कवायद में आपकी हिस्सेदारी कितनी है, जिसे इस मंदी का असली नुक्सान पहुंचा है.

उधर अमेरिका की वाट लगी हुई है, ओबामा ने राष्ट्रपति पद तो संभाल लिया, लेकिन इतने बड़े पद पर होने के बाद भी बड़े उद्योगों की लॉबिइंग के आगे मजबूर नजर आते हैं. इसलिये मंदी के समय पर अपने उच्च ओहदेदारों को 18 बिलियन डॉलर का बोनस देने वाले बड़ें उद्योगों पर सिर्फ चिंघाड़ के रह गये.

अपनी सरकार कहती है की कुछ महीनों में हालात सुधरेंगे. सही है... सुधरना अच्छा सा सापेक्ष शब्द है. कोई अवारा-गुंडा लड़का जिसे बात-बात पर हाथ-पांव चलाने की आदत हो अगर गाली देकर ही काम चला ले तो कहते हैं सुधर रहा है.

इसलिये कह रहा हूं कि बाबू यह इंडिया है... यहां हालात बद थे, अब बदतर होंगे और फिर जब दोबारा बद होंगे तो हम चैन कि सांस ले लेंगे.

2 comments:

  1. यही तो असल मुद्दा है, मन्दी इसलिये है कि कम्पनियां अभी तक खून चूस रही थीं, अब दूध से काम चलाना पड़ रहा है.

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  2. बात सही कह दी, चुप रहते हुए.

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