पहले मैं मुम्बई को लेकर परेशान था, इतना की जब भी अपने देश की हालत बारे में सोचता था तो सिर में कहीं दर्द सा हो रहा था. फिर मूझे इस परेशानी का सही हल सूझा, तो आपसे भी शेयर कर रहा हूं.
मैंने न्य़ुज़ देखना छोड़ दिया, अखबार नहीं पढ़ रहा हूं, आसपास जब भी कोई इस बारे में बात करना शुरु करता है मैं फौरन दोनों हाथ कान पर रख कर चिल्लाना शुरु करता हूं - "वां-वां-वां-वां, वां-वां-वां-वां" तो सामने वाला घबराकर दूर हट जाता है.
तो आप भी यही करो. जैसे ही कुछ भी ऐसा सुनने को मिले जिससे आपके अन्दर के हिन्दुस्तानी को कष्ट पहुंचे तो दोनों हाथ कान पर रख के चीखो -- 'वां-वां-वां-वां'
मुझे नहीं सुनना कितने लोग मरे
मुझे नहीं सुनना कितने लोग छूटे
मुझे नहीं सुनना कितनी आग लगी
मुझे नहीं सुनना कितनी गोलियां चलीं
मुझे नहीं सुनना कितने बम फूटे
मुझे नहीं सुनना घायलों की चीख, घबराहट
मुझे नहीं सुननी सायरनों की आवाज़
मुझे नहीं सुनना मरने वालों के परिवार का विलाप
मुझे नहीं सुनना राजनेताओं की भोथरी बातें
मुझे नहीं सुनना न्य़ुज़ एंकरों की भड़काऊ रिपोर्टिंग
मुझे नहीं देखनी भड़कती हुई आग
मुझे नहीं देखना स्टेशन पर बहता खून
मुझे नहीं देखने हत्यारों के भोले मगर दहशतनाक चेहरे
मुझे नहीं देखने कमरों से हाथ हिलाते हुये मजबूर लोग
मुझे नहीं देखना होटल से आते हुये स्ट्रेचर
मुझे नहीं देखना जान के जोखम पर बिल्डिंग में जाते जवान
मुझे नहीं देखने विस्पोटों की आवाज़ सुनकर डर से उछलते एंकर
मुझे नहीं देखना सड़क पर गोलियां बरसातीं जीपें
तो इसलिये कानों पर हाथों के साथ आंखे भी जोर से मींच ली हैं
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वा
"जग में जो बुरा है, हम देखें न सुनें,
कांटो को हटा के, फूलों को हम चुनें"
http://www.youtube.com/watch?v=NStDcbAx02w
वां-वां-वां-वां वां-वां-वां-वां
ReplyDeleteवां-वां-वां-वां वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां वां-वां-वां-वां
वां-वां-वां-वां वां-वां-वां-वां
आंखे मुंह कान बन्द कर लो, आंख मूंद कर वोट डालो, धर्मनिरपेक्षता की जय बोलो.
ReplyDeleteआपने कभी सोचा है की अमेरिका पे दुबारा हमला करने की हिम्मत क्यों नही हुई इनकी ?अगर सिर्फ़ वही करे जो कल मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा है तो काफ़ी है.....अगर करे तो....
ReplyDeleteफेडरल एजेंसी जिसका काम सिर्फ़ आतंकवादी गतिविधियों को देखना ....टेक्निकली सक्षम लोगो को साथ लाना .रक्षा विशेषग से जुड़े महतवपूर्ण व्यक्तियों को इकठा करना ....ओर उन्हें जिम्मेदारी बांटना ....सिर्फ़ प्रधान मंत्री को रिपोर्ट करना ,उनके काम में कोई अड़चन न डाले कोई नेता ,कोई दल .......
कानून में बदलाव ओर सख्ती की जरुरत .....
किसी नेता ,दल या कोई धार्मिक संघठन अगर कही किसी रूप में आतंकवादियों के समर्थन में कोई ब्यान जारीकर्ता है या गतिविधियों में सलंगन पाया जाए उसे फ़ौरन निरस्त करा जाए ,उस राजनैतिक पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए .उनके साथ देश के दुश्मनों सा बर्ताव किया जाये .......इस वाट हम देशवासियों को संयम एकजुटता ओर अपने गुस्से को बरक्ररार रखना है .इस घटना को भूलना नही है....ताकि आम जनता एकजुट होकर देश के दुश्मनों को सबक सिखाये ओर शासन में बैठे लोगो को भी जिम्मेदारी याद दिलाये ....उम्मीद करता हूँ की अब सब नपुंसक नेता अपने दडबो से बाहर निकल कर अपनी जबान बंद रखेगे ....
मैं क्या करूँ? नहीं पता.
ReplyDeleteकाश ऐसा हो पाता.
ReplyDeleteयह शोक का दिन नहीं,
ReplyDeleteयह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे