Thursday, February 12, 2009

किसी भी घटिया हरकत का जवाब, वैसी ही घटिया हरकत से दिया जाये, तो अच्छा है. है न?

मुतालिक ने एक घटिया काम किया तो फिर इसका जायज जवाब तो वैसा ही घटिया काम करके दिया जा सकता है न? और कोई तरीका तो हमारे लोकतांत्रिक देश में है ही नहीं. तो चलिये मुतालिक को अंतर्वस्त्र ही भेज दें. यकीनन इससे मुतालिक को शर्म आयेगी और जिस तरह का घटिया काम उसने किया, वो आगे नहीं करेगा. है न?

indian womenDo they support the cause?
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Do they?

ये भी सही समाधान है. चड्डियां भेज कर विश्व की कुछ और समस्याओं का भी लगे हाथों समाधान कर लें तो सही रहेगा. तो निशा सुजन से पूछना चाहिये कि तालिबान को किस पते पर चड्डियां भेजें (जो स्कूल जाने पर लड़कियों को पीट रहे हैं). पोप को किस पते पर चड्डियां भेजें (जो अभी भी ननों को थोथी शुचिता और विर्जिनिटी के नियमों में बांध के रख रहा है), और किस पते पर भेजें चड्डियां उन सबको जिनकी वजह से स्त्रियां त्रस्त हैं. या इन पर चड्डियों का असर नहीं होगा? सूजन, तुम्हारी indignation इतनी partial क्यों है.

मुतालिक और आगे का घटनाक्रम उस प्रकार है जैसे कि एक सुअर ने कूड़े का डब्बा फैलाकर गंद मचाया, और पीछे-पीछे चार सुअर और आये उसमें लोट लगाने.

न तो मुतालिक हिन्दू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है, और न निशा सूजन किसी भी प्रोग्रेसिव औरत का. मैंने अपनी बीवी से पूछा (जो अच्छी खासी प्रोग्रेसिव है, महानगर की पैदाइश भी है, और पढ़ी-लिखी भी) तो उसने यही कहा कि निशा सूजन की हरकत घटिया है और इस बहाने उसने उन बहुत सारी स्त्रियों को शर्मसार किया है, जिन्हें वो रिप्रेसेन्ट बिलकुल नहीं करती.

एक लेख में लिखा था कि अंतर्वस्त्र प्राइवेट स्पेस है, तो फिर मुतालिक ने जिस तरह अपनी घटिया-लोगों की सेना   का औरतों के खिलाफ जिस तरह इस्तेमाल किया उसी तरह निशा सूजन ने भी यकीनन अपना घटिया एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये प्राइवेट स्पेस को पब्लिक स्पेस बना डाला.

और यह गांधीगिरी भी नहीं. गांधीगिरी सिखाती है फूल देना जो कि सिम्बल है नेचर, ब्यूटी, प्योरिटी, और इनोसेंस के. यह तो गंदगिरी है, गंदगिरी और इसका सिंबल भी कुछ और ही रिप्रेसेंट करता है.

यह सिबल क्या रिप्रेसेंट करता है इसे जानना कुछ मुश्किल नहीं. कुछ ही दिन अगर अमेरिकी चैनल और फिल्में अगर देख ली जायें तो चड्डियों के reference और significance आपको समझ आयेगी.

असल में यह भी एक कारनामा है हमारे पोस्ट-मोर्डन और स्यूडो मोर्डन समाज के उस हिस्से का जिसने घटियापन  का ओवरडोज़ लेकर उसे आधुनिकता समझ लिया है. और इसलिये यह निंदा योग्य है.

और हां इसकी निंदा का तरीका कंडोम भेजना नहीं है, यह तो सब रिएक्शनरी कार्य होगा. इसका सही तरीका क्या है, थोड़ा सोचिए. और मुझे भी बताइये!

3 comments:

  1. kya aapke paas koi behtar idea hai? nahi to fir jo koi is kaam ko kar raha hai usakee taang mat kheenchiye. agar aapke paas koi behtar idea hai to use amal me laaiye ya is abhiyan se jude logon tak pahunchaiye.

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  2. Agar behtar idea na ho to ghatiyapan jayaz ho jaata hai? Jinme chaddiya bhejne ki creativity hai, woh thoda constructive dimaag ladaye to shayad unhe hi behtar idea aa jaaye.

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  3. गंदगी को धोकर साफ किया जाता है न कि और गंदगी लपेटकर. सूसन अफगान,ईरान जाकर देखें, वहां भी उनकी आवश्यकता है.

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