Wednesday, March 17, 2010

क्योंकि हर सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं होता

1. हिन्दू शब्द कितना पुराना है?
इसकी जवाब जरूरी नहीं क्योंकि हिन्दू शब्द दूसरों द्वारा दिया गया है और हिन्दू संस्कृति से पुराना नहीं है. हिन्दूओं को क्योंकि बदलाव से परहेज नहीं, इसलिये अब वह उनकी पहचान है.

वैसे तो अल्लाह शब्द भी दूसरों का दिया हुआ है. मुहम्मद ने मूर्तिपूजक अरबों के कई भगवानों में से अल्लाह का नाम अपने ईश्वर को नाम देने के लिये किया. अल्लाह उनके ब्रह्मा के समान था (http://en.wikipedia.org/wiki/Allah).

1. अल्लाह शब्द कितना पुराना है?

2 क्या इस शब्द का अर्थ घृणित है?
शब्द का मतलब वही होता है जिसके लिए उसका इस्तेमाल किया जाता है. हिन्दू शब्द हिन्दुस्तानियों की पहचान है, और इसका अर्थ वही है. अगर अनर्थ निकालने कि जिद हो तो शब्द कई मिल जाते हैं.

2. ईस्लाम में ईश्वर के लिये जो शब्द है उसका अमेरिकि सैनिक किस मंतव्य में प्रयोग करते हैं?

3. यह शब्द किसी देशी ग्रन्थ का है?
बेशक इससे हिन्दओं को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इतना सद्भाव और खुलापन उनमें आ चुका है कि वह हर बात का प्रमाण किसी ग्रंथ में खोजना जरूरी नहीं समझते.

3. अल्लाह शब्द की उत्पत्ति किसने की?

4. या विदेशियों का बख्शा हुआ है?
बख्शा तो खैर क्या होगा? वैसे बख्शा तो बहुत कुछ गया था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद एक बहुत बड़ी रियासत बख्शी थी कुछ लालची अरबों ने एक गोरी विदेशी कौम के साथ मिलकर.

4. उस बख्शी गई रियासत का नाम क्या है.

5. हिन्दू शब्द का शब्दकोष में अर्थ क्या है?
कृपया न. 2 देखें.

5. सारी पश्चिमी सभ्यता के शब्दकोष में इस्लाम का अर्थ क्या है?

6. क्या किसी हिन्दू विद्वान ने इस नाम पर आपत्ति की है?
हिन्दूओं को धर्मान्धों कि आपत्ति से कोई फर्क नहीं पड़ता. किसी 'विद्वान' की फतवागिरी यहां नहीं चलती इसलिये आपत्ति कि बात हो न हो उसका कोई मतलब नहीं है.

6. उस कुरान के ज्ञानी विद्वान का नाम क्या है जिसका कलाम इतना सनसनीखेज है?

7. हिन्दुत्व क्या है?
हिन्दुत्व एक संस्कृति है, एक जीवनशैली है, एक पहचान है, एक विचार है, और भारत को जोड़ने वाला सबसे मजबूत सूत्र है. यह धर्म से आगे है,

7. एक खास धर्म में ऐसा क्या है जो उसको मानने वाले लोग इस कदर दीवाने हुये जाते हैं की इन्सान को इन्सान नहीं समझते?

8. इस शब्द को कब गढ़ा गया?
यह भी महत्वपूर्ण नहीं क्योंकि यह संस्कृति इसको दिये गये हर नाम से पुरानी है.

8. इस्लाम को पैगंबर ने कब अपनाया? इससे पहले वह किस धर्म को मानते थे?

9. इसकी परिभाषा क्या है?
एक ही सवाल बार-बार चोला बदल कर पूछा जाये तो क्या पूछने वाले के दिमागी संतुलन पर सवाल उठाया जा सकता है?

9. पूछने वाले को यह बेबात जिद क्यों है?

10. हिन्दुववादी के लक्षण और कार्य
हिन्दुव बहुत विशाल है. इसका कोई धार्मिक लक्षण नहीं. हिन्दुत्व अपने अन्दर सनातन धर्म, आर्यसमाज, बुद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, नास्तिकता और अगर चाहें तो इस्लाम और ईसाइयत को भी अपनाने की शक्ति रखता है. जो विशाल हृदय मानवता के लक्षण हैं वहीं हिन्दुत्व के लक्षण हैं.

10. क्या इन लक्षणों का अनुकरण करने के बारे में कभी सोचा है, या सिर्फ एक खास किताब में लिखे लक्षणों से ही इन्सान परिभाषित होता है?

11. क्या हिन्दुत्व किसी इश्वरीय ग्रन्थ पर आधारित है?
जब हिन्दुत्व धर्म के दायरे में नहीं आता तो उसके किसी ग्रन्थ पर आधारित होने का सवाल नहीं है. हां बहुत सारे ग्रन्थ हिन्दुत्व पर आधारित हैं. इनमें से कुछ सही हैं और कुछ गलत. यहां तक की हर ग्रन्थ में सही या गलत बातें मौजूद हो सकती हैं और हिन्दुत्व इस बात को स्वीकारता है और इन्हें सुधारता है.

11. क्या एक खास धर्म में लिखी किताब को अक्षरश: सही मान लेना बेवकूफाना नहीं है?

12. क्या हिन्दुत्व के सिद्धान्तो पर दुनिया में समाज है?
इस सवाल का जवाब सवाल से ही

12. जिन्हें भारतवर्ष दुनिया की सबसे पुराने सभ्यता (इस्लाम से भी पुरानी) नहीं दिखती उन्हें चश्मा बदलना चाहिये या नहीं?

13. इस नंबर का सवाल नहीं है.. क्या किसी खास धर्म में इस नंबर का प्रयोग वर्जित है? अगरा हां तो जरा वैज्ञानिक आधार बतायें.

14. महिलाओं के उत्थान के लिये हिन्दुत्व ने क्या किया?
800 साल के कुशासन और दमन के दौरान जो कमजोरियां हिन्दुत्व में आईं उन्हें लगातार दूर किया. पर्दा प्रथा हिन्दुओं में खत्म प्राय है. और इसी समाज की स्त्रियां एक खास धर्म की स्त्रियों से ज्यादा मुक्त, शिक्षित हैं. इसलिये अगर प्रतिशत में देखा जाये तो हिन्दू स्त्रियों की उपस्थिति सरकारी नौकरियों, प्राइवेट नौकरियों, बिजनेस में कहीं ज्यादा है. आज हिन्दू नारिया अपने हक के लिये पुरुषों की मोहताज नहीं है.

14. एक दूसरे धर्म में नारियों को अब तक कैद रखने की जिद क्यों है?

15. क्या हिन्दुत्व एक विश्वव्यापी अवधारणा है?
क्योंकि हिन्दुत्व की कुचेष्टा दूसरे धर्म के लोगों को बलात, या लालच देकर अपना धर्म बदलने की नहीं रही इसलिये इस धर्म के लोग धर्म परिवर्तन नहीं करते. वरन हिन्दू हर धर्म को अपना लेते हैं इसलिये हिन्दू घरों में गुरु नानक भी मिलेंगे, बुद्ध भी और जीसस भी.

15. क्या कोई दूसरा धर्म है ऐसा उदार?

16. या फिर क्षेत्रिय
जवाब 15 देखें.

16. एक दूसरे धर्म से अभी-अभी कौन सा क्षेत्र छीन कर एक तीसरे धर्म वालों ने कब्जा किया. नाम बतायें.

17. जो लोग हिन्दुत्व को नहीं मानते क्या हिन्दुत्व वादी उन्हें हीन समझते हैं?
हो सकता है कि पि़छली सदी में यह किसी हद तक सत्य हो लेकिन आज के दिन में कम से कम में यह बिना संशय के साथ कह सकता है कि हिन्दुत्व को मानने वाले सारी दुनिया के साथ कंधा मिलाकर चलते हैं न ऊपर न नीचे. हम हिन्दू सबकी तरह इन्सान है कोई और नस्ल नहीं.

17. क्यों एक खास धर्म को मानने वाले हमेशा अपने धर्म को ऊपर दिखलाने की जिद करते हैं? उनमें कौन से लाल लगे हैं?

18. हिन्दुत्व ने समरस और समानता के सिद्धान्त इस्लाम से लिये?
नहीं यह सिद्धान्त इन्सानियत से लिये. इस्लाम से इतर बिना धार्मिक सोच रखने वालों ने इन सिद्धांतों को जन्म दिया. इसका क्रेडिट लोकतांत्रिक मूल्यों के जनकों और एक हद तक मार्कसवादी मूल्यों के जनकों को जाना चाहिये न कि किसी धर्म को

18. क्यों एक खास धर्म के लिये सिर्फ वही बराबर हैं जो उस धर्म को मानते हैं और बाकी सब हेय?

19. यदि नहीं लिया तो किस वर्णवादी ग्रन्थ से लिये.
दूसरे धर्मों की तरह हिन्दु धर्म नयी सोच के लिये अपने ग्रन्थों का मोहताज नहीं. हम खुद भी सोच लेते हैं.

19. एक खास धर्म में हर व्याख्या किसी एक किताब के संदर्भ में ही क्यों करनी पड़ती है? क्या उनके पास खुद का दिमाग है?

20. वह वर्ण व्यवस्था की वापसी चाहता है या सफाया?
निश्चित ही सफाया. आज का हिन्दू पहले के हिन्दू के मुकाबले कम वर्णवादी है, और आगे और कम होगा. हम अच्छी शिक्षा से यह संभव बना रहे हैं. हम तो बदलेंगे ही.

20. क्यों एक खास धर्म बाकी सारे धर्मों का सफाया चाहता है?

21. तथाकथित वैदिक काल में शूद्रों आदी पर अत्याचार निंदनीय है?
बिलकुल है, किसी भी इन्सान या फिर जीवित जानवर पर अमानवीय अत्याचार निंदनीय है और हिन्दूत्व को जानने वाले यह कहते, मानते, करते हैं.

21. क्यों धीरे-धीरे गला रेत कर दर्दनाक मौत मारने को सबाब का काम समझा जाता है?

22. या प्रशंसनीय?
यह उसी सवाल का बेबात का एक्सटेंशन है. नहीं यह प्रशंसनीय भी नहीं है.

22. क्यों धीरे-धीरे गला रेत कर दर्दनाक मौत मारने को कुर्बानी कहकर प्रशंसा की जाती है?

23. पैगंबर हजरत... के अनुयायियों के द्वारा अविष्कृत सामान का लाभ हिन्दू उठाते हैं?
हिन्दूत्व को मानने वाले लोग धार्मिकता के कारण अंधाये नहीं है कि वो इन्सान और इन्सान के असबाब में धर्म के नाम पर फर्क करें. हिन्दुओं के भी बहुत सारे आविष्कार पैगंबर हजरत... के मानने वाले उपयोग करते रहे जैसे शून्य, गणित विद्या आदी. आज भी हिन्दू आविष्कारक और इन्जीनियर हिन्दुस्तान और उससे बाहर बहुत से ऐसे नये आविष्कार कर रहे हैं जिसका उपयोग पैंगबर हजरत... के मानने वाले करते हैं. यहां कि कम्पयुटर के आविष्कार में भी एक हिन्दू ने रोल निभाया (विनोद धाम)

23. क्या इस खास धर्म को मानने वाले दूसरे धर्मों के आविष्कारकों के द्वारा बनाये उपकरणों का उपयोग नहीं करते? आपको पता है कि अनिस्थिसिया का आविष्कार एक यहूदी ने किया, आइंस्टाइन यहूदी था, मानव खून की ग्रुपिंग यहूदी ने की, यहां तक की आज इस्लामिक देशों की पहली चाहत एटम बम का आविष्कार भी यहूदियों ने किया. यहुदियों ने ज्यादा आविष्कार किये या एक खास धर्म के मानने वालों ने? सूची तैयार करें.

24. या फिर उनके उन्मूलन की चिन्ता में घुलते हैं?
हिन्दुओं ने कभी उनका उन्मूलन नहीं चाहा. हिन्दूत्व को मानने वाले न धर्म परिवर्तन करते हैं न धार्मिकता कि यह अन्धी जिद फैला रहे हैं जिसमें उन्हें धर्म के आगे कुछ दिखाई न दे. वह चितिंत हैं तो अपनी पहचान और जीवनशैली की रक्षा के लिये.

24. जब भी एक खास धर्म का शासन रहा तो उनके शासन में हिन्दुओं का लोप और उन्मूलन क्यों हुआ?

25. ग्राहम स्टेन्स को जिन्दा... अपराध मानते हैं?
किसी की भी हत्या अपराध है और यह हर हिन्दू मानता है दोषी पर कार्यवाही के लिये कानून का उपयोग होना चाहिये जो ग्राहम स्टेन्स के हत्यारे पर हुआ और हिन्दुओं ने ही समर्थन किया.

25. क्यों एक खास धर्म में यह जिद है कि दूसरे धर्म वाले को मारना अपराध नहीं. या फिर उसके मानने वाले कहते हैं कि उनके धर्म को छोड़ने वाले को मारना अपराध नहीं?

26. या फिर अपना आदर्श और हीरो़?
हमारा आदर्श वो कातिल नहीं. हमारा आदर्श है डा. भाभा (एक पारसी), एपीजे कलाम (मुसलमान) और हर वह इन्सान हिन्दू या दूसरे धर्म का जो इन्सानियत पर भरोसा करता है.

26. 5000 लोगों को एक झटके में मारने वाला क्यों एक खास धर्म का हीरो है?

27. महात्मा गांधी के हत्यारे कि सराहना या निन्दा?
निश्चय ही निन्दा. महात्मा गांधी का सम्मान हिन्दुओं के भरोसे ही है वरना आजादी में उनका योगदान का कितना वर्णन हिन्दुस्तान से ही कटे पाकिस्तान और बांग्लादेश में मिलता है वह सर्वविदित है.

27. क्या आप 5000 लोगों के हत्यारे की निन्दा पर एक निब्ंध लिखोगे या यह लिखोगे कि हर मुस्लिम को वैसा बनना चाहिये? (जैसा लिख चुके हैं)

28. हनुमान जी को वे जीवित मानते हैं या मृत?
हनुमान जी को हिन्दू ईश्वर का अंश मानते हैं.

28. इश्वर है या नहीं?

29. मीर बाकी द्वारा हनुमान जी का मंदिर गिराया उचित या नहीं?
बिलकुल अनुचित आपको संशय?

29. गुस्साये हिन्दू भीड़ के द्वारा मस्जित गिराया जाना उचित या अनुचित?

30. हनुमान जी ने मंदिर बचाना जरूरी क्यों नहीं समझा?
ठीक उसी लिये जिस तरह अल्लाह ने अपने जिन्नात/फरिश्ते आदी भेजकर मस्जिद बचाना नहीं समझा.

30. मस्जिद को बचाना अल्लाह या उसके फरिश्तों ने जरूरी क्यों नहीं समझा? सद्दाम हुसैन को बचाना? अफगानिस्तान को बचाना? इराक को बचाना? फिलिस्तीन को बचाना? पाकिस्तान को खुद से ही बचाना?

कुछ सवालों का जवाब जरूरी नहीं होता. जिनमें हिम्मत होती है वह ही दे पाते हैं. हम तो अपनी शक्तियां भी जानते है और कमजोरियां भी और दोनों की ही बात करते हैं.

वैसे मुझे अनिश्वरवाद प्रिय है और हिन्दूत्व में इसकी भी जगह है इसलिये मुझे यह सबसे प्रिय विचार है. इसलिये मुझे यह कहलाने से परहेज नहीं.

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Thursday, March 11, 2010

तो क्या मुस्लिम पुरुषों को आखिरकार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार दिखने लगे?

वैसे तो महिलाओं कि किस्मत पहले ही इतनी जबर्दस्त है कि कितने ही पुरुष उनकी मर्यादा के सीमांकन और उसकी रक्षा के लिये इस कदर तत्पर हैं. ऊपर से मुस्लिम महिलाओं की किस्मत और भी जोर मारती है कि मुस्लिम पुरुष उन्हें बुर्के का हक दिलाने सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते हैं (भले ही वहां से लतिया दिये जायें). इधर-उधर हम सुनने को मिलता है कि मुस्लिम समाज में औरतों की स्थिति बहुत कमजोर है. उन्हें घरों में कैद रखा जाता है. अच्छी शिक्षा, सुविधा, काम-काज के हक से वंचित रखा जाता है, बुर्के और बाकी रुढ़ीय़ां अपनाने पर मजबूर किया जाता है, लेकिन आजकल कुछ मंजर इस तरह का है कि लगता है कि मुसलमान पुरुषवादी अपने पिछले पापों को एकमुश्त धोने को कमर कसे बैठे हैं.

इसलिये तो कुछ् ही दिन पहले जिनकी ज़िद थी कि मुस्लिम औरतें वोट देने भी बुर्का पहन के जायें, अब यह चाहते हैं कि औरतों को आरक्षण बाद में मिले, और इसी शर्त पर मिले की मुस्लिम औरतों को आरक्षण पहले मिल रहा हो.Gazing Woman Sm

तो क्या पहले ज़मीर ने जोर मारा और अब बुर्के से निकाल कर मुस्लिम औरतों को सीधे विधानसभा में बिठाने की हसरत जोर मार रही है? या फिर विधानसभा में भी बुर्के में भेजेंगे यह अपने घरों की इज़्ज़त को? और चुनाव लड़ने की मशक्कत भी बुर्के में करेंगी औरतें?

या फिर सच यह है कि यादव-यादव-यादव और मुस्लिम गठजोड़ को सहन नहीं हो रहा कि औरतें को एकमुश्त इतनी आजादी मिल जाये कि वो देश में बनने वाले कानूनों को कम से 33% प्रभावित कर सकें.

सोचिये अगर विधानसभा में 33% औरतें हो तों:

1. क्या शाह बानू के खिलाफ जो विधेयक हमारी संसद ने पारित कर मुस्लिम औरतों को अपंग बनाया वो हो सकता था?

2. क्या मुसलमान पुरुषों के पास कई शादियां करना और औरतों को तलाक देना इतना आसान रह जायेगा?

3. क्या इन 'जैंटलमैंनों' के लिये विधानसभा में जूतम-पैजार इतनी आसान रहेगी?

4. क्या महिला अशिक्षा और उन पर अत्याचार जैसे मुद्दों को इसी तरह दबाया जा सकेगा?

पुरुष सत्ता को इस 33% आरक्षण से जो झटका लगेगा उससे देश की सारी पुरुष व्यवस्था हिलने वाली है. लेकिन इसे दबाने की कुचेष्टा इतनी जबर्दस्त है कि मुझे भी शक होता है कि इसी का बहाना लेकर कांग्रेस इस बिल को फिर से दबा न दे. आखिरकार इस हंगामें में उसकी महंगाई पर से ध्यान हटाने और विपक्ष को तितर-बितर करने की चाल तो कामयाब हो ही गई है.

इस बिल का विरोध करने का कोई मोरेल ग्राउंड क्योंकि यादव-यादव-यादव के पास नहीं है इसलिये उन्होंने मुस्लिम और दलित औरतों को बहाना बनाया है. इसका जबर्दस्त विरोध ही इस बात का सबूत है. वरना जो सपा-राजद अमेरिकी न्युक्लियर डील तक पर सरकार के साथ बनी रही (सपा वालों ने तो बकायदा सांसदों के सौदे करवाये), वो इस मुद्दे पर इतनी मुखर की मार्शलों से उठवा कर बाहर फिंकवाना पड़ा?

इतनी चिंता तो उन्हें महंगाई की बोझ से मरते गरीब देशवासियों की भी नहीं हुई.

इस सारे प्रकरण में हिस्सा लेने वाला हर सदस्य (कांग्रेस सहित) तब तक संदेह के घेरे में होगा जब तक यह बिल पास न हो जाये.

{दूसरी और: क्या यह खबर सुनी की सज्जन? कुमार को जमानत मिल गयी. अग्रिम जमानत तो पहले ही मिल चुकी थी. किसी चैनल पर यह खबर देखी? या मारने वाला अगर सत्ताधारी दल का शक्तिशाली नेता हो तो सारी मीडिया की ज़बान पर ताले लग जाते हैं?)

Wednesday, March 10, 2010

अबु आजमी ने कितने आतंकवादियों को बचाया? शहजाद, जुनैद… या कुछ और भी हैं?

अभी-अभी टीवी पर खुलासा हो रहा है कि मुम्बई के सपा नेता अबु आजमी बाटला हाउस के आतंकी शहजाद और जुनैद से मिला और उन्हें पैसा दिया कि वो छुप के रहें. चौरसिया और अजमानी मिलकर अबु आजमी से फोन पर बात कर रहे हैं, और कम से कम पहली बार चौरसिया के मुंह से कठिन सवाल सुनने को मिल रहे हैं

1. अबु आजमी दाउद की महफिल में शामिल रह चुका है.
2. अबु आजमी 1993 के विस्फोट के मामले में गिरफ्तार होकर जेल में रह चुका है.
3. अबु आजमी बार-बार आतंकवादी मामलों में संदिग्ध रहा है.
4. अबु आजमी ने खुद स्वीकार किया की शहजाद के बाप से उसके संबंध रहे और शहजाद का बाप उसके यहां आता जाता रहता है.

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बाटला हाउस में शहीद इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा के कातिलों में शामिल शहजाद को पैसे दिये और छुपने में मदद की... ठीक है.

लेकिन अभी-अभी मुझे याद आ रहा है कि मुंबई में ताज पर हमले में अबु आजमी गोलियों और हमलों के बीच में घुस कर कार लेकर आता है, और दो-तीन लोगों को बचाकर ले जाता है. बाद में बयान देता है कि वो सऊदी अरब के कुछ सम्माननीय लोग थे.

शहजाद का तो पता चला.. लेकिन अबु आजमी, कौन थे वो लोग जिन्हें तूने ताज होटल से निकाला था.

चौरसिया ने अभी अभी अबु आजमी से कहा
"आप इतने भोले भी नहीं है अबु आजमी की दाउद के घर में शादी में शामिल हों और आपका पता नहीं हो किसके घर में हैं"

अबु आजमी कह रहा है कि मैं भोला हूं... बिल्कुल भोला हूं.

"मैं मुसलमान हूं, मैं भगवान की नहीं अल्ला की कसम खा कर कहता हूं कि मैंने शहजाद को पैसे नहीं दिये और मैं उससे मिला भी नहीं हूं."

चौरसिया, क्या इस सवाल का जवाब निकलवा सकते हो कि इसने ताज होटल में किसको बचाया था.. कहीं कुछ और आतंकवादियों को तो नहीं निकाल ले गया? पुरानी फुटेज होगी न तुम्हारे पास?

लंदन भाग गया है अबु आजमी 5 तारीख को. ठीक उसी दिन जिस दिन दिल्ली पुलिस ने उससे पूछताछ की.

मनसे वालों तुमने हिंदी के नाम पर इसको झापड़ लगाया, क्या इस बात के लिये खुदा कसम इसको एक जबर्दस्त नहीं लगाना चाहिये?

और इधर कांग्रेस का एक पूर्व विधायक कांग्रेस की सरकार में हुये दिल्ली के बाटला हाउस एनकाउंटर जिसमें एक बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर शहीद हुआ के बारे में कह रहा है कि ‘सारी दुनिया जानती है कि बाटला एनकाउंटर झूठ था’…

इस अब्दुस सलाम को लाफा कौन लगायेगा?

Tuesday, March 2, 2010

शिमोगा या यो कहें कि घुटन सिर्फ तस्लीमा के हिस्से में ही क्यों आती है?

तस्लीमा नसरीन ने बयान दिया कि कर्नाटक के अखबार में छपा लेख तो बहुत पुराना है, और छापा भी उनसे इजाज़त लिये बगैर है. तस्लीमा होकर जीना हिम्मत का काम है. तस्लीमा ने यह नहीं कहा कि लेख मैंने नहीं लिखा.

taslima Taslima, we apologize for those who didn’t understand.

वो अपनी बात कहना चाहती हैं. उनका लक्ष्य धर्म में पागल और अंधे हुये लोगों को इन्सानियत की कीमत समझाना है, इसलिये जब उनकी बात को ही बहाना बना जब बकवास, बेकार, घटिया और बेहद शर्मनाक बुर्के जैसी प्रथा की रक्षा के लिये जब इतने सारे पागल पैंट-शर्ट और अन्य आधुनिक पोशाकें पहन कर जान लेने-देने की तैयारी के साथ निकलते हैं तो तस्लीमा को महसूस हुये दर्द की व्याख्या मुश्किल है.

शिमोगा में मुस्लिम धर्मांधों के प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया और बलवे में दो लोगो की हत्या कर दी गई. दंगे और हिंसक प्रदर्शन पूरे कर्नाटक में हुए. बुर्के के ऊपर उस लेख को छापने वाले अखबार के आफिस पर हमला किया गया जिसमें माल और व्यक्ति दोनों को ही क्षति पहुंचाई गई.

बुर्के के खिलाफ लिखने की कीमत दो लोगों की जान? और इसकी जिम्मेदारी. वो किसकी है?

मीडिया में उबाल है कि 'तस्लीमा के लिखे के कारण कर्नाटक में हिंसा भड़की'

तस्लीमा के लिखे लेख के कारण?

क्या इसकी ग्लानी तस्लीमा के हिस्से में है? यही नजर आता है हमारी पढ़े-लिखे लोगों से भरी समझदार मीडिया को? अगर हां तो क्यों न फैले धर्मांधता, क्यों न और भी बल मिले हत्यारों और आतंकियों और क्यों न अंधेरे, अवसाद और डर के और भी घने कोहरे में धंसते चले जायें हमारे चिंतक, विचारक और सुधारक.

कर्नाटक में भड़की हिंसा तस्लीमा के लिखे लेख के कारण नहीं भड़की,

  • वो भड़्की सदियों से चलती आ रही एक दमनशील रिवाज़ को थोपने वाले मानसिक रोगियों की असहिष्णुता से.
  • वो भड़की अपनी आजादी को भोगाने और दूसरों को उससे वंचित करने वाले विलासियों के कारण.
  • वो भड़की  दूसरों को जानवर की तरह कैद करने की मंशा रखने वालों की वजह से.

लेकिन मीडिया में क्या सुनते हैं हम? तस्लीमा नसरीन के लिखे लेख की वजह से हिंसा भड़की. क्योंकि तस्लीमा ने लिखा, और अखबार ने छापा.

कहीं भी मैंने नहीं देखा कि असहिष्णुता के कारण हिंसा भड़की.
कहीं भी मैंने नहीं देखा कि धर्मांधता के कारण हिंसा भड़की.
कहीं भी मैंने नहीं देखा की कुरीतियों के कारण हिंसा भड़की.

बुर्के का प्रतिवाद करो तो हिंसा भड़कती है कौन करता है हिंसा? बुरका पहने हुई महिलायें? या फिर बिना बुर्का पहने पुरुष जो महिलाओं को बुर्के में ही रखना चाहते हैं?

और क्या गलत लिखा तस्लीमा ने अगर उसने कहा कि यह मत करो. क्यों स्पष्टीकरण मांगा जा रहा है उससे. क्यों नहीं स्पष्टीकरण मांगा जा रहा उन कठमुल्लों से जो कर्नाटक में बैठ कर लोगों को भड़का रहे हैं.

अगर सच बोलने पर हिंसा करने वालों की बजाय सच बोलने वालों पर सवाल उठाया जाता रहेगा तो कैसे जन्मेगा कोई दयानंद जिसने सति प्रथा पर सवाल उठाया, पर्दे पर सवाल उठाया, नारी अशिक्षा पर सवाल उठाया. और सवाल ही नहीं उठाया, समाधान किया.

सति प्रथा के खिलाफ अगर दयानंद और राममोहन रॉय की आवाज़ को भी इसी तरह भींचा जाता तो क्या हमारे देश की औरतें अब भी चिता पर होतीं? विधवायें आश्रमों में? और लड़कियां स्कूलों से बाहर?

क्या हमारा मीडिया इतना कायर है जो सच को जानते बूझते हुये भी सच नहीं कह सकता? या फिर इतना एक-पक्षीय? मैं समझ नहीं पा रहा हुं कि यह सब क्यों हो रहा है? किस तरह पूरी व्यवस्था और लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इतना अंधा हो गया.

बेहतर है अब कुछ दिन खबरें न देखूं.