वैसे तो महिलाओं कि किस्मत पहले ही इतनी जबर्दस्त है कि कितने ही पुरुष उनकी मर्यादा के सीमांकन और उसकी रक्षा के लिये इस कदर तत्पर हैं. ऊपर से मुस्लिम महिलाओं की किस्मत और भी जोर मारती है कि मुस्लिम पुरुष उन्हें बुर्के का हक दिलाने सुप्रीम कोर्ट तक चले जाते हैं (भले ही वहां से लतिया दिये जायें). इधर-उधर हम सुनने को मिलता है कि मुस्लिम समाज में औरतों की स्थिति बहुत कमजोर है. उन्हें घरों में कैद रखा जाता है. अच्छी शिक्षा, सुविधा, काम-काज के हक से वंचित रखा जाता है, बुर्के और बाकी रुढ़ीय़ां अपनाने पर मजबूर किया जाता है, लेकिन आजकल कुछ मंजर इस तरह का है कि लगता है कि मुसलमान पुरुषवादी अपने पिछले पापों को एकमुश्त धोने को कमर कसे बैठे हैं.
इसलिये तो कुछ् ही दिन पहले जिनकी ज़िद थी कि मुस्लिम औरतें वोट देने भी बुर्का पहन के जायें, अब यह चाहते हैं कि औरतों को आरक्षण बाद में मिले, और इसी शर्त पर मिले की मुस्लिम औरतों को आरक्षण पहले मिल रहा हो.
तो क्या पहले ज़मीर ने जोर मारा और अब बुर्के से निकाल कर मुस्लिम औरतों को सीधे विधानसभा में बिठाने की हसरत जोर मार रही है? या फिर विधानसभा में भी बुर्के में भेजेंगे यह अपने घरों की इज़्ज़त को? और चुनाव लड़ने की मशक्कत भी बुर्के में करेंगी औरतें?
या फिर सच यह है कि यादव-यादव-यादव और मुस्लिम गठजोड़ को सहन नहीं हो रहा कि औरतें को एकमुश्त इतनी आजादी मिल जाये कि वो देश में बनने वाले कानूनों को कम से 33% प्रभावित कर सकें.
सोचिये अगर विधानसभा में 33% औरतें हो तों:
1. क्या शाह बानू के खिलाफ जो विधेयक हमारी संसद ने पारित कर मुस्लिम औरतों को अपंग बनाया वो हो सकता था?
2. क्या मुसलमान पुरुषों के पास कई शादियां करना और औरतों को तलाक देना इतना आसान रह जायेगा?
3. क्या इन 'जैंटलमैंनों' के लिये विधानसभा में जूतम-पैजार इतनी आसान रहेगी?
4. क्या महिला अशिक्षा और उन पर अत्याचार जैसे मुद्दों को इसी तरह दबाया जा सकेगा?
पुरुष सत्ता को इस 33% आरक्षण से जो झटका लगेगा उससे देश की सारी पुरुष व्यवस्था हिलने वाली है. लेकिन इसे दबाने की कुचेष्टा इतनी जबर्दस्त है कि मुझे भी शक होता है कि इसी का बहाना लेकर कांग्रेस इस बिल को फिर से दबा न दे. आखिरकार इस हंगामें में उसकी महंगाई पर से ध्यान हटाने और विपक्ष को तितर-बितर करने की चाल तो कामयाब हो ही गई है.
इस बिल का विरोध करने का कोई मोरेल ग्राउंड क्योंकि यादव-यादव-यादव के पास नहीं है इसलिये उन्होंने मुस्लिम और दलित औरतों को बहाना बनाया है. इसका जबर्दस्त विरोध ही इस बात का सबूत है. वरना जो सपा-राजद अमेरिकी न्युक्लियर डील तक पर सरकार के साथ बनी रही (सपा वालों ने तो बकायदा सांसदों के सौदे करवाये), वो इस मुद्दे पर इतनी मुखर की मार्शलों से उठवा कर बाहर फिंकवाना पड़ा?
इतनी चिंता तो उन्हें महंगाई की बोझ से मरते गरीब देशवासियों की भी नहीं हुई.
इस सारे प्रकरण में हिस्सा लेने वाला हर सदस्य (कांग्रेस सहित) तब तक संदेह के घेरे में होगा जब तक यह बिल पास न हो जाये.
{दूसरी और: क्या यह खबर सुनी की सज्जन? कुमार को जमानत मिल गयी. अग्रिम जमानत तो पहले ही मिल चुकी थी. किसी चैनल पर यह खबर देखी? या मारने वाला अगर सत्ताधारी दल का शक्तिशाली नेता हो तो सारी मीडिया की ज़बान पर ताले लग जाते हैं?)
bhut sundr vichar csachchai ko samne lane ke liye bdhai
ReplyDeletedr.ved vyathit
जो लोग बुर्के से बाहर महिलाऔं को नहीं आने देते....चार चार बीवियों की वकालत करते हैं वो क्या खाकर ये सब बातें कर रहे हैं
ReplyDeletesahii aalekh
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