Saturday, November 22, 2008

शिवराज पाटिल ने कहा, "पुलिस सवालों के जवाब न दे, और चुप रहे, तो समस्या कम हो जायेगी"

आज एक चैनल पर शिवराज पाटिल का बयान सुना, वो बात कर रहे थे हाल के पुलिसिया घटनाक्रम के बारे में. बयान तो अंग्रेजी में था, लेकिन सार यह है.

"अगर पुलिस कोई बात कोर्ट को बताये, और वह कोर्ट से मीडिया तक पहुंचे तो यह जायज है. लेकिन अगर पुलिस मीडिया से लगातार सीधे लीक कर रही है तो नहीं. वो बहुत सवाल पूछेंगे, लेकिन पुलिस सवालों के जवाब न दे, और चुप रहे तो समस्या कम हो जायेगी."

सही नब्ज पकड़ी है समस्या की शिवराज पाटिल ने. समस्या यह नहीं है कि आतंकवाद है. समस्या यह नहीं है कि अत्याचार है, समस्या यह नहीं है कि देश में विभेद हैं. समस्या है जानकारी. समस्या हैं सवाल. अगर लोगों तक जानकारी नहीं पहुंचे तो समस्या ही नहीं रहेगी. क्योंकि जो समस्या इतने ढंग से छुपी हो जिसके बारे में किसी को पता ही न चले तो वह इन राजनेताओं के लिये समस्या है ही नहीं. सोचिये अगर गुजरात में विस्फोट हो, और आपको दिल्ली में पता ही न चले, तो आप बेखबर मजे में समय बिताते रहेंगे. इस खबर की वजह से ही तो आपका दिन खराब होता है. इस खबर की वजह से ही तो आप सोचने पर मजबूर होते हैं.

तो पुलिस को सही बात कही है पाटिल ने. सवालों के जवाब मत दो. यह नहीं कहा कि अत्याचार मत करो. यह नहीं कहा की निर्दोषों को सताओ मत. यह नहीं कहा की मजबूरों की रपटें दर्ज करो. यह नहीं कहा कि जिन्हें मदद की जरुरत है उनकी मदद करो. यह नहीं कहा की अपराधिओं को बचाना बंद करो. कहा की सवालों का जवाब मत दो. जब-जब तुम्हारी जवाबदेही मांगी जाये, जब-जब तुमसे पूछा जाये की बताओ,ऐसा क्यों हुआ तो चुप साध के बैठ जाओ. आखिर जवाबों के अभाव में सवाल भी तो मर जाते हैं. सारे सवाल मर जायेंगे, और तुम बच जाओगे.

पाटिल चाहे कितना ही अकर्मण्य प्रशासनिक हो, राजनीतिज्ञ कुशल है. तभी तो पिछले पांच सालों में उनकी कुर्सी अडिग रही, देश की अखंडता चाहे कितनी ही डिगी हो.

तो जिनके मन में सवाल मंडरा रहे हों, उनके सभी से गुजारिश है कि मर जाने दो हर सवाल को बिना जवाब के और मूक बन के देखो इस नंगे विद्रुप को.

और कुछ सवाल जिनके जवाब नहीं दिये जाने चाहिये.

1. क्यों सरकार नहीं पूछती स्विस बैंको से हिन्दुस्तानी खातेदारे के ब्यौरे? (जिनके बारे में कहा है कि सरकार पूछे तो वे देंगे)
2. जिन बिल्डरों ने पिछले पांच साल में करोड़ों का फायदा बनाया (sez, और उठते भू-दामों के कारण) उन्हें मंदी के आते ही दनादन छूटें क्यों दी गईं, जबकी विदर्भ के मरते किसानों के लिये कुछ नहीं किया?
3. क्यों किसी भी विस्फोट की जांच निष्कर्ष निकालने में हमेशा निष्फल रहती है और अपराधी खुले घूमते हैं, और चैन से जिंदगी काट रहे हैं?
4. सरकारी तंत्र दिन-ब-दिन, और, और क्यों सड़ रहा है?
5. बड़े उद्योगों के पैरों पर लोट लगाने वाला वित्त मंत्रालय छोटे उद्योंगो पर लगातार प्रहार क्यों कर रहा है?
6. जिन सड़कों पर करोड़ों हर साल खर्च किया जाता है, वो बार-बार टूट जाती हैं?
7. सांसद अपनी निधी किस बिना पर खर्च करते हैं? और उसका हिसाब कौन जांचता है?
8. क्यों हर नेता लगातार अमीर, और अमीर होता जा रहा है? इनकी स्कोर्पियो, फोर्ड इन्डीवरों से सड़कें भर गयी है, और पार्टियों के झंडे हर गाड़ी पर लगे हैं. कहां से आ रहा है यह पैसा?

क्यों...
क्यों...

नहीं, इनके भी जवाब मत देना.

3 comments:

  1. सौ सवाल पर जबाब इक,बैठ रहो चुपचाप.
    पाटिल जी फ़रमा रहे, जो करते खुद आप.
    वे करते खुद आप, नहीं ले जिम्मेदारी.
    कुर्सी मैडम की मर्जी से मिली करारी.
    कह साधक कवि,ऐसे मन्त्री कहाँ मिलेंगे?
    जलती दिल्ली, तीन बार कपङे बदलेंगे.

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  2. एक पुरानी कहावत है- सब का यार चुप। शायद हमारे गृहमंत्री इसी मंत्र के आधार पर पांच वर्ष बिता चुके। अब यह गुरुमंत्र प्रशासन को भी सिखा रहे है। अच्छा है - देश उन्नति के पथ पर आगे बढेगा ऐसे पथप्रदर्शकों से...........

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  3. मेरे मित्र, क्या बात कर रहे हो आप, देश का विकास तो लोगों के विकास से होगा और नेता क्या लोग नहीं हैं. रही बात इनके धन-दौलत की, बेचारी मैडम के पास तक एक पुरानी ८०० है बस. किसी भी नेता का ब्यौरा देख लीजिये, सब के सब बेचारे बडे गरीब हैं. पहले इनकी गरीबी दूर होगी तभी तो देश की दूर होगी.

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