Thursday, April 16, 2009

एक तितली के पंखों की फड़फड़ाहट क्या तूफान ला सकती है

ये कोई राजनैतिक लेख नहीं. अस्फुट, असंग्रहित विचार हैं. जो भी कुछ हम सोचते हैं, कहतें हैं, करते हैं क्या उस सब का कोई परिणाम कोई consequence भी होता है? या फिर पानी में गिरने वाले पत्थर उठी लहरों के समान कुछ पलों के बाद ही सब कुछ शांत हो जाता है, जैसा था बिल्कुल वैसा.

gulal 
ज़िंदगी के नये अनुभव, जानकारी और इनसे पैदा होने वाले विचार और सोच, उनमें से कुछ ही तो हम बांट पाते हैं, और जो बांट भी पाये उसमें भी पता नहीं चलता कि आपने जो कहा उसमें से कितना शब्दों के घालमेल में से निकल कर गंतव्य तक पहुंचा. कुछ पहुंच भी गया तो फौरन भुला दिया जाता है. जो भुला न सके उसे दिमाग के एक कोने में सड़ने के लिये छोड़ दिया जाता है.

फिर भी अपनी बात पहुंचाने की जिद क्यों? क्या ये megalomania है जो हमें विश्वास दिलाती है कि एक ऐसा संदेश है आपके पास जिसका दूसरों तक पहुंचना जरूरी है. या फिर ये optimism है जो आपको विश्वास दिलाता है कि आपके कहे का दुनिया के भीषण-चक्र पर कुछ असर होगा? या फिर यह philanthropy का एक temporary दौरा है जो आपको मजबूर कर रहा है अपने समय का अपव्यय करने को? या फिर यह उस राष्ट्र या समाज के लिये जिम्मेदारी या guilt का एहसास है जिससे आपने इतना कुछ लिया? ये भी हो सकता है कि यह आपकी male chauvinist जिद हो दुनिया का अपना perception दुनिया पर थोपने की?

आज सब कुछ थोड़ा inconsequential लग रहा है. इन्सानी फितरत में mood swings भी फितरती होते हैं, जब चाहे आते हैं, चाहे जिस कारण से आते हैं. इसलिये चाहते हुए भी, जो लिखना चाहता हूं उसके लिये ऊर्जा नहीं मिलती.

आज हलके, शाम से ही गुलाल फिल्म का गाना Youtube पर देखते-सुनते गुजार दी.

1. http://www.youtube.com/watch?v=e50WqCFthAM&feature=related

जो कुछ लिखा-कहा, इसलिये कि यह विश्वास करता हूं एक तितली के पंखों की फड़फड़ाहट भी तूफान ला सकती है (बकौल Chaos theory का Butterfly effect).

आज विश्वास इस गाने के नीचे दब गया, इसलिये वह नहीं लिख पाया जो लिखने बैठा था... आज यही सही.

कल नया दिन है.

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