धर्म ने दुनिया को क्या-क्या नहीं दिया. आज जो भी कुछ है इस दुनिया में सब धर्म की ही वजह से है. धर्म न होता तो वह सब भी नहीं होता जो हमारी सभ्यता की निशानी है. फिर दुनिया शायद एक अलग ही जगह होती. लेकिन धर्म की वजह से वह सब है, जो ऐसे नहीं होता. क्या-क्या नहीं दिया धर्म ने दुनिया को.
दिया:
1. पुराने कबीलाई असभ्य अत्याचारी कानूनों को शरिया, या धार्मिकता के नाम पर लागू कर मानवों से आधारभूत स्वतंत्रता भी छीन लेने का हक.
2. जाति के नाम पर धर्म के बंटवारे से पूरे समाज में इतनी बड़ी खाईयां जिन्होंने इन्सान को इन्सान नहीं क्षत्रिय, ब्राह्मण, बनिया, शूद्र बना दिया, और इतने पूर्वाग्रह हर जाति के अंदर भर दिये कि उनसे बाहर निकल कर इन्सान को इन्सान समझना मुश्किल हो गया.
3. अपने धर्म के प्रसार के लिये हर जायज नाजायज तरीके का इस्तेमाल करना और उसे सही समझना.
विज्ञान ने दुनिया को उर्जावान किया और धर्म ने शक्तिहीन. विज्ञान की ऊर्जा का इस्तेमाल धर्म ने युद्ध के लिये किया. अब धर्म इस मोड़ पर मानव सभ्यता को पहुंचा चुका है कि इसी रास्ते पर आगे चलने की कीमत अपनी सभ्यता खोकर ही चुकानी होगी.
जिस धर्म में नये तौर-तरीकों के कपड़े पहनना मना है, नये मनोरंजन के साधन इस्तेमाल करना मना है, नये युग में जीना मना है, वो बड़ी आसानी से नये तरीके के हथियार, असले और युद्ध सामग्री इस्तेमाल कर लेता है, और उसमें उन्हें कोई कोन्ट्राडिक्शन नहीं दिखता.
क्या एटम बम का वजूद मात्र ही इस बात का सबूत नहीं है कि
खुदा नहीं है
भगवान नहीं है
ईसा नहीं है
और भगवान का हर वो रूप नहीं है जिसे हमने माना
तो कब तक इस झूठ के सहारे इन्सानों पर अत्याचार होगा?
बन्धु! यह बात विज्ञान पर भी उतनी ही लागू होती है.
ReplyDeleteऐसा नहीं है .. अपना अपना नजरिया है देखने का .. अभी तक चली आ रही सारी व्यवस्था भी धर्म की ही देन है।
ReplyDeleteसंगीता जी से सहमत!
ReplyDeleteबड़ी बात यह कि इन्सान के पास बुद्धि है, धर्म के नाम पर व्याप्त बुराइयों को अस्वीकार करे. धर्म वही है जिससे मानवता का भला होता हो. जो दूसरे को स्वीकार ही न कर सके वह धर्म नहीं अधर्म है.
ReplyDeleteधर्म का मतलब ही बिगाड़ दिया गया है। "धर्म" अपने आप में भी एक धर्म होता है। ये हिंदू-मुसलमान धर्म थोड़े ही हैं!
ReplyDeleteलेखक की जय हो. सच कहा हाथी, हाथी नहीं एक खंभा है।
ReplyDeleteआप धर्म से अनभिज्ञ हैं। आप विभिन्न सम्प्रदायों , मजहबों, रिलिजन आदि को धर्म मानकर अपना द्रष्टिकोंण रख रहे हैं। वास्तव में बहुत हिन्दू उस सनातन सत्य से अत्यन्त अपरिचित हैं जिस पर स्वार्थी और मूर्खों ने मानव से अत्यन्त दूर दिया है।
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