Saturday, February 28, 2009

तो अब शिवराज हर आवाज़ को दबा देंगे?

शिवराज सिंह ने कठिन समय में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव क्या जीत लिया उन्हें लगने लगा कि सारे मध्य प्रदेश का निर्बाध कब्जा उन्हें मिल गया, कि लो ठाकुर अपनी मिल्कियत चलाओ अपनी मर्जी से. और अगर इनकी जागीर में कोई ऐसी आवाज़ उभर आये हो जो इन्हें रास न आये, तो उसे अपने हथकंडो से दबाना भी ठीक उसी तरह इन्होंने सीख लिया है जिस तरह से फिल्मों में कोई दबंग जमींदार.

मैं बात कर रहा हूं शमीम मोदी की जो सालों से मध्य प्रदेश के सबसे निचले तबके - ग्रामीण, गरीब, आदिवासी लोगों के हित में आवाज उठा रहीं हैं. इनकी बातें और काम यहां के अमीर इन्डस्ट्री मालिकों के गले नहीं उतरा जो वन के संसाधनों का उपयोग वनवासियों के हित ताक पर रख के अपने हितों के लिये करना चाहते हैं. शिवराज सिंह चौहान पर गरीब लोग दबाव बना पाते हैं कि नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन इस इन्डस्ट्री लॉबी ने अपने मुख्यमंत्री को 48 घन्टे दिये थे शमीम से छुटकारा दिलाने के लिये और वहां कि पुलिस ने यह काम 24 घन्टों में ही कर दिखाया.

shamim
लाल घेरे में हैं शमीम मोदी, इन्होंने ही अपहरण वगैरा को अंजाम दिया है. देख कर ही डर गया ऐसी दबंग महिला को मैं. आप डरे...?

तो एक सालों पुराने झूठे अपहरण के केस को खोद निकाला गया और शमीम मोदी को गिरफ्तार कर लिया गया. मजे कि बात तो देखिये, जिस व्यक्ति का अपहरण का यह केस था, वह उसी समय अदालत में मौजूद था, और उसने जज से कहा कि ऐसी कोई भी बात नहीं. फिर भी शमीम को गिरफ्तार किया गया.

असल में बात सिर्फ इतनी सी है कि हर्दा जैसी छोटी जगह में इन मोटी आसामियों का राज नहीं चलेगा, तो किसका चलेगा? गरीब आदिवासियों को तो अपने हक का पता भी नहीं. जो लोग जंगलों का बेलाग दोहन कर रहे हैं वो नहीं चाहते कि कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति जंगल वासियों को उनका हक समझाये, या उनके लिये आवाज उठाये. इसलिये शमीम मोदी जैसे लोगो को तुरत-फुरत डराने और निकालने की इन्हें सख्त जरुरत महसूस हो रही है.

दरअसल शमीम मोदी के संगठन का नाम है श्रमिक आदिवासी संगठन और इसके काम के चलते जब आदिवासी श्रमिकों को पता लगने लगा कि उन्हें किस कदर दुहा जा रहा है तो उन्होंने अपने मालिकों से शिकायतें कीं. और जब ऐसा हुआ तो मालिक साहबों को बुरा लगा, उनका आरोप है कि 'अपने कर्मचारियों की बढ़ती शिकायतों से वो परेशान हैं' ('they feel harassed by the growing complaints raised by their employees') और समाधान क्या निकाला? शिकायतों का कारण दूर करने के बजाय शमीम को दूर कर दीजिये!

शमीम को 10 फरवरी को गिरफ्तार किया गया और इस समय यह होशन्गाबाद जेल में बंद हैं. और लगता है कि समाज के पुरजोर विरोध के बावजूद राजनीतिज्ञ-उद्योगों के मिलिभगत से यह अभी वहीं रहेंगी.

शमीम कोई नकसली महिला नहीं हैं. वो कोई डॉन-शॉन भी नहीं हैं. शायद उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि उनमें संवेदना है. इसका फल तो वो भुगत रहीं हैं. इस समाज में गुंडो और भ्रष्टों की बन आई है, और इन सबका ख्याल रख रहे हैं अपने मुख्यमंत्री.

जो पत्रकार हर बात-बेबात के मुद्दे को हवा में उछाल रहे हैं, क्या वो इस तरफ ध्यान देंगे?

और हां, अगर आपको लगता है कि जिस तरह म.प्र. में इंसानियत को सूली पर चढाया गया वह गलत है, तो जरा शिवराज जी के बॉस को बता देना. lkadavani.in पर आडवाणी जी का दर खुला है. क्या उन तक यह खबर आप पहुंचायेंगे?

और शिवराज भैया, लोकसभा चुनाव तो होने हैं. जनता के ऊपर मूंग दलेंगे तो वहां क्या मुंह दिखाइयेगा?


यहां भी पढ़े


शमीम मोदी की रिहाई के लिये पिटीशन पर हस्ताक्षर करे

Sunday, February 22, 2009

बदलाव कैसे आता है #2 : वह काली लड़की उन सब आवाज़ कसते लोगों के बीच स्कूल गई

dorothycounts 1957 में अमेरिका में कोई काला व्यक्ती राषट्रपति नहीं था. वह दौर था जब अमेरिका ने रंगभेद से उस शिद्दत से नफरत करना नहीं सीखा था जैसे वह आज करता है. उस दौर और आज के दौर में बहुत फर्क है, लेकिन यह बदलाव आया हर बदलाव कि तरह धीरे-धीरे.

इसी बदलाव की एक कड़ी थी डोरोथी काउन्ट. यह काली अमेरिका के हैरी हार्डिंग हाई स्कूल में पढ़ने वाले पहले काले विद्यार्थियों में से एक थी. 15 साल की उम्र में सितम्बर 1957 में काउन्ट को इस स्कूल में प्रवेश मिला, जो कि सरकार की रंगभेद मिटाने के लिये उठायी गई नीति में एक कदम था.

उस काली लड़की का गोरे लोगों के स्कूल जाना बहुत लोगों को पसंद नहीं था. उनमें से ही एक थी जाँन वारलिक्थ की बीवी जिसने स्कूल के गोरे लड़कों से कहा, 'इसे बाहर रखो', ओर स्कूल की लड़कियों से कहा, 'थूको इस पर लड़्कियों, थूको'.

काउन्ट उस चीखती, गरियाती, थूकती, धमकियां देती भीड़ में चुपचाप चलती रही और स्कूल गई. दूसरे दिन उसके खाने में कूड़ा फेंका गया, टीचरों के सामने. तीसरे दिन जिन दो गोरी लड़कियों से उसने दोस्ती करने की कोशिश की, उन्हें भी डरा कर हटा दिया गया. और उसके परिवार को धमकी भरे फोन काल आने लगे. उसके परिवार की कार का शीशा तोड़ दिया गया और स्कूल में उसके लॉकर को लूट लिया गया.

चार दिन बाद डोरोथी के पिता ने उसे स्कूल से हटा लिया.

डोरोथी दूसरे स्कूल गई, पेन्सिलवैनिया में. वहां गोरे और काले बच्चे साथ-साथ पढ़ते थे.

कुछ क्रांतियां एक-एक कदम चल कर, लम्बी दूरी तय कर भी लाई जाती हैं. ऐसी ही एक क्रांती की जरुरत भारत को है. हमें भी बदलाव चाहिये जाति के खिलाफ. जातियां हमारी पहचान नहीं हमारी बेड़ियां हैं जो हमें एक बॉक्स में बंद कर देती हैं.

आप इस बदलाव में क्या योगदान दे सकते हैं?

Saturday, February 14, 2009

देश को अपने काम कि हफ्तावार रपट देना… क्या कोई हिन्दुस्तानी नेता ऐसा करेगा?

प्रेसिडेन्ट ओबामा ने बदलाव (Change) का वादा किया था, और धीरे-धीरे इस बात के चिन्ह दिखने लगे हैं कि बद्लाव हो रहा है. सबसे पहला और सबसे जरुरी बद्लाव जो दिख रहा हे, वह है पारदर्शिता.

ओबामा ने कई पहल की हैं जिनसे लगता  है कि लक्ष्य जनता को मूढ़ मान कर जानकारी से दूर रखना नहीं, बल्कि जानकारी को उसके नजदीक लाना है.

obama

कुछ ही हफ्तों पहले ओबामा ने एक नई शुरुआत की. Youtube पर White house के Channel पर उन्होंने देश को इस बात की हफ्तावार रपट देने शुरु किया है कि पूरे हफ्ते में उन्होंने क्या किया, किस तरह कि दिक्कतें उन्हें आईं, और क्या समाधान उन्होंने ढूंढ़े. अगर कोई नया कानून या कदम उन्होंने लिया तो उसका ज़िक्र भी वो वहां करते हैं. और देश में क्या गलत हो रहा है, उसके खिलाफ आवाज भी वो उठाते हैं (उसे पर्दे के पीछे छुपाने की कोशिश करने के बजाय).

तो उन्होंने अमेरिकी जनता को बताया कि किस प्रकार वो देश में आये आर्थिक संकट से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों को संकट से लड़ने कि प्रेरणा भी दी, और उन कदमों से अवगत कराया जो वो ले रहे हैं. और साथ ही उन्होंने उन वाल-स्ट्रीट कि कंपनियों को चेतावनी भी दी जिन्होंने अपने उच्च-पद के लोगों को इस संकट काल में करोड़ों डालर बोनस के रूप में दिये. उन्होंने कहा कि अमेरिका को इस तरह का ‘लालच’ बर्दाश्त नहीं.

ओबामा ने अभी-अभी अमेरिकी कांग्रेस से 700+ बिलियन डालरों को आर्थिक संकट से जूझने के लिये पारित करवाया है. और उन्होंने इन रुपयों के खर्च के ब्योरा देने के लिये एक वेबसाइट की घोषणा की जहां लोग देख पायेंगे की पैसा कहां खर्च हुआ और इस खर्चे पर अपने विचार भी रख पायेंगे. इसका इस्तेमाल यकीनन इस बात को निश्चित करने में होगा की पैसा इमानदारी से खर्च हो, क्योंकि खर्च और उसका प्रभाव सब देख रहे हैं.

अब कुछ सवाल

1. क्यों नहीं हिन्दुस्तान में उच्च पदाधिकारी अपने काम का ब्यौरा अपने डिपार्टमेन्ट की वेबसाइट द्वारा लोगों को दें. यह तो एक वेबकैम से संभव है.

2. क्यों न सभी कल्याणकारी योजनाओं कि एक वेबसाइट हो जहां यह जानकारी विस्तार में हो कि पैसा कहां खर्च हुआ (वाउचर स्कैनिंग, व पाने वालों के नाम सहित). और यहां लोगों की शिकायत के लिये जगह भी हो.

इस सब में खर्च बहुत ज्यादा नहीं होने वाला, और अगर ऐसा हो पाये तो जितना पैसा बेईमान लोगों द्वारा डकारे जाने से बचकर आयेगा, उससे भरपाई हो जायेगी.

Better transparency will lead to better governance.

और ओबामा को इस तरह की कोशिश के लिये मुबारकबाद.

आप भी ओबामा की हफ्तावार रपट जरूर देखें. और जोर दें की हमारे यहां भी बदलाव आये.

Thursday, February 12, 2009

किसी भी घटिया हरकत का जवाब, वैसी ही घटिया हरकत से दिया जाये, तो अच्छा है. है न?

मुतालिक ने एक घटिया काम किया तो फिर इसका जायज जवाब तो वैसा ही घटिया काम करके दिया जा सकता है न? और कोई तरीका तो हमारे लोकतांत्रिक देश में है ही नहीं. तो चलिये मुतालिक को अंतर्वस्त्र ही भेज दें. यकीनन इससे मुतालिक को शर्म आयेगी और जिस तरह का घटिया काम उसने किया, वो आगे नहीं करेगा. है न?

indian womenDo they support the cause?
sari2
Do they?

ये भी सही समाधान है. चड्डियां भेज कर विश्व की कुछ और समस्याओं का भी लगे हाथों समाधान कर लें तो सही रहेगा. तो निशा सुजन से पूछना चाहिये कि तालिबान को किस पते पर चड्डियां भेजें (जो स्कूल जाने पर लड़कियों को पीट रहे हैं). पोप को किस पते पर चड्डियां भेजें (जो अभी भी ननों को थोथी शुचिता और विर्जिनिटी के नियमों में बांध के रख रहा है), और किस पते पर भेजें चड्डियां उन सबको जिनकी वजह से स्त्रियां त्रस्त हैं. या इन पर चड्डियों का असर नहीं होगा? सूजन, तुम्हारी indignation इतनी partial क्यों है.

मुतालिक और आगे का घटनाक्रम उस प्रकार है जैसे कि एक सुअर ने कूड़े का डब्बा फैलाकर गंद मचाया, और पीछे-पीछे चार सुअर और आये उसमें लोट लगाने.

न तो मुतालिक हिन्दू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है, और न निशा सूजन किसी भी प्रोग्रेसिव औरत का. मैंने अपनी बीवी से पूछा (जो अच्छी खासी प्रोग्रेसिव है, महानगर की पैदाइश भी है, और पढ़ी-लिखी भी) तो उसने यही कहा कि निशा सूजन की हरकत घटिया है और इस बहाने उसने उन बहुत सारी स्त्रियों को शर्मसार किया है, जिन्हें वो रिप्रेसेन्ट बिलकुल नहीं करती.

एक लेख में लिखा था कि अंतर्वस्त्र प्राइवेट स्पेस है, तो फिर मुतालिक ने जिस तरह अपनी घटिया-लोगों की सेना   का औरतों के खिलाफ जिस तरह इस्तेमाल किया उसी तरह निशा सूजन ने भी यकीनन अपना घटिया एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये प्राइवेट स्पेस को पब्लिक स्पेस बना डाला.

और यह गांधीगिरी भी नहीं. गांधीगिरी सिखाती है फूल देना जो कि सिम्बल है नेचर, ब्यूटी, प्योरिटी, और इनोसेंस के. यह तो गंदगिरी है, गंदगिरी और इसका सिंबल भी कुछ और ही रिप्रेसेंट करता है.

यह सिबल क्या रिप्रेसेंट करता है इसे जानना कुछ मुश्किल नहीं. कुछ ही दिन अगर अमेरिकी चैनल और फिल्में अगर देख ली जायें तो चड्डियों के reference और significance आपको समझ आयेगी.

असल में यह भी एक कारनामा है हमारे पोस्ट-मोर्डन और स्यूडो मोर्डन समाज के उस हिस्से का जिसने घटियापन  का ओवरडोज़ लेकर उसे आधुनिकता समझ लिया है. और इसलिये यह निंदा योग्य है.

और हां इसकी निंदा का तरीका कंडोम भेजना नहीं है, यह तो सब रिएक्शनरी कार्य होगा. इसका सही तरीका क्या है, थोड़ा सोचिए. और मुझे भी बताइये!

Friday, February 6, 2009

जय हिन्दू संस्कृती! हमने यही सीखा है कि मारें महिलाओं को

screamवाह रे गजब हिन्दू संस्कृति सनातन धर्म की सनातन प्रथा को ही पूज रहे हैं श्रीराम सेनी और बजरंगी. पहले श्री राम चन्द्र की सेना वालों ने जय श्री राम! के नारे लगाकर पब रूपी लंका पर आरोहण कर दिया और क्या तीर मारा? नारियों को रगेद-रगेद के मारा.. वाह रे श्रीरामियों खूब सेना बनाई रे तुमने... बहुत सही प्रेक्टिस रन है... पहले औरतों को पीट कर अभ्यास हो जाये तो पाकिस्तान पर भी हमला करेंगे... सही प्रोग्रेस है भाई.

राम की सेना ने कूच कर दिया तो बजरंगी कहां पीछे रहते वो भी निकल पड़े आखेट पर, एक लड़की को बस से उठा लिया और पीट लिया, अब अपन हिन्दू धर्म की रक्षा लड़कियों को पीट कर ही होगी?

क्या यही सीखा है श्रीराम सेना वालों ने राम कथा से?
राम से जिसने अपनी विमाता को दिये वचन को निभाने के लिये 14 साल वन में काटे?

क्या बजरंग का नाम लेने वाले उसी महाबली का धर्म निभा रहे हैं?
जिसने अकेले दुश्मन देश में घुसकर उनसे लोहा लिया और जिसने ताजिंदगी हर नारी को मां का दर्जा दिया?

यह श्रीराम और बजरंग का नाम बदनाम करने वाले यह गर्दभ-बुद्धी लोग तो उन से भी ज्यादा हिन्दू धर्म की मूल अवधारणा को नुक्सान पहुंचा रहे हैं जो इसे दिन-रात गरियाते हैं.

-- हिन्दू धर्म की अवधारणा में सबसे बड़ी बात है स्वतंत्रता. हम चाहे किसी देव, किसी रूप को पूजें-मानें, तब भी हिन्दू रहेंगे. मतलब चाहे हम मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के भक्त हों, या कापालिक काल-भैरव के, हम हिन्दु हैं और धर्म की हानी नहीं.

-- देवी चंडिका पर तो शराब की भेंट भी चढ़ती है, तो किस तरह किसी भी औरत के शराब पीने से हिन्दु धर्म या सभ्यता की हानि हुई?

असल में हिन्दू धर्म में नारी को पुरुष से कम दर्जा नहीं दिया गया. हमारे ग्रन्थों में नारियां हर वो काम करती हैं जो पुरुष करते हैं, और ससम्मान, बिना ग्लानी करती हैं. ऐसे धर्म को मानने की बात करने वाले यह गलीज़ हरकत किस तरह कर पाये?

असल में इसमें भी हिन्दुओं की कमजोरीयों का इतिहास छुपा है. आक्रांताओं से अपने घर-परिवार की रक्षा न कर पाने वाले कायरों ने वह सारे नियम बनाये जिनसे स्त्रियों को पर्दे में, छुपा कर, सबसे नजर बचाकर रखें, और उनकी कायरता का बोझ अब तक हम ढो रहे हैं.

अगर श्रीराम सेना और बजरंगी सत्य में राम व महाबली हनुमान के अनुयायी होते तो लोहा लेते शराब बनाने वालों से, उसके स्टाकिस्टों से, शराब बेचने वालों से, पब मालिकों से, व पब में पीने वाले मर्दों से (जिनका अनुपात नारियों कि तुलना में 1:100 है)

और जिन्होंने उन लड़कियों पर हमला किया, उनका क्या कहना... वो तो पुरुष ही नहीं... महा@#$% हैं...

(थोड़ा नहीं, बहुत नाराज़ हूं... यह देख कर शर्म आती है कि हमने किस पथ पर चलना शुरु कर दिया. किससे सीख रहे हैं हम? उनसे जिन्हें हम कहते हैं यह गलत है ऐसा मत करो?)

Wednesday, February 4, 2009

बद और बद, और फिर बदतर

hiding अंग्रेजी में वैसे तो कई कहावते हैं, लेकिन जो मौजूं है उसको थोड़ा उलट-पलट कर कहना चाहता हूं कि -- before it can get bad, it will get worse. मतलब अब जो बद होना है, उसे पहले बदतर भी होना होगा. अगर आप बात का ओर-छोर नहीं पकड़ पा रहे, तो बता दुं कि मैं बात कर रहा हूं विश्व (मेरी नहीं, दुनिया की) के माली हालात की.

अभी थोड़ी देर पहले हंसते-मुस्कराते आॉस्कर फर्नांडीज को टीवी पर अपने सालिम दांतों की सलामी देते हुये देखा. मुद्दआ था कि 5 लाख लोगों की नौकरी पिछले साल के आखिरी तीन महीनों में चली गई, और इस साल मार्च तक 5 लाख और लोग बे-जॉब होने वाले हैं. आॉस्कर ने कह दिया की छ: महीनों की पगार में साल भर काम चला कर नये सिरे से ट्रेनिंग लेकर लोग तैयार हो जायेंगे नयी नौकरी के लिये. मुझे आॉस्कर की मुस्कराहट का राज समझ आ गया. आखिर चुनाव आने वाले हैं, नौकरी तो उनकी भी जाने वाली है. शायद उन्हें मालुम है कि कांग्रेस सरकार रहे या जाये, ये मुसीबत तो अब किसी और के ठीये ही पड़ेगी. तो इसलिये 10 लाख लोगों कि चिंता उन्हें नहीं सालती और वो इस मंदी में मुस्करा लेते हैं जहां हमारे-आपके नौकरी बजा लाने वाले लोगों के चेहरे घबराहट से सूख रहे हैं.

मंदी में पेंच बहुतेरे हैं, जो कंपनियां कुछ साल पहले 50% से ऊपर का महा-मार्जिन कमा रहीं थीं, वो आज आहत हैं कि उनका प्रोफिट मार्जिन सिर्फ 25% रह गया है (आज यह पार्श्वनाथ बिल्डर के बारे में एक लेख में पढ़ा). मतलब मौके की सारी जमीन पर कब्जा कर के जबरिया घर-आफिसों के दाम उछाल कर आपको ज्यादा चूना न लगा पाने का गम इन्हें साल रहा है. तो अब यह करोड़पति खड़ें हैं सरकार के सामने कटोरा लेकर और सरकार दरियादिली से इनके अंधे कटोरे में करोड़ों रुपये झोंकती जा रही है.

कहने को तो यह सब हो रहा है मंदी की मार रोकने के लिये, लेकिन असल में बाज लोगों ने मंदी में भी मलाई मारने के तरीके निकाल लिये हैं. जरा ठहर कर सोचिये कि इन सब प्रोपर्टी कंपनियों और पूंजी वालों का नुक्सान कम करने की इस कवायद में आपकी हिस्सेदारी कितनी है, जिसे इस मंदी का असली नुक्सान पहुंचा है.

उधर अमेरिका की वाट लगी हुई है, ओबामा ने राष्ट्रपति पद तो संभाल लिया, लेकिन इतने बड़े पद पर होने के बाद भी बड़े उद्योगों की लॉबिइंग के आगे मजबूर नजर आते हैं. इसलिये मंदी के समय पर अपने उच्च ओहदेदारों को 18 बिलियन डॉलर का बोनस देने वाले बड़ें उद्योगों पर सिर्फ चिंघाड़ के रह गये.

अपनी सरकार कहती है की कुछ महीनों में हालात सुधरेंगे. सही है... सुधरना अच्छा सा सापेक्ष शब्द है. कोई अवारा-गुंडा लड़का जिसे बात-बात पर हाथ-पांव चलाने की आदत हो अगर गाली देकर ही काम चला ले तो कहते हैं सुधर रहा है.

इसलिये कह रहा हूं कि बाबू यह इंडिया है... यहां हालात बद थे, अब बदतर होंगे और फिर जब दोबारा बद होंगे तो हम चैन कि सांस ले लेंगे.

Monday, February 2, 2009

तो अब बरखा दत्त को देना होगा कोर्ट में जवाब

अगर आप बरखा दत्त से सहानुभूति रखते हैं, तो उसे दर्ज कराने का एक मौका और आपको मिलने वाला है. आयें और उनकी तरफदारी में अपनी थोथी दलीलें पेश करें, क्योंकि अब शायद बरखा दत्त को उनकी ज्यादा जरुरत हो.

चेतन कुंटे को कोर्ट केस की धमकी देने वाली बरखा दत्त को अब शायद खुद ही कोर्ट को जवाब देना पड़े. आत्ममोहित मीडिया ने जिस तरह से मुम्बई आतंकी हमले के दौरान shoddy journalism का परिचय दिया, उससे हर देश की चिंता करने वाले समझदार आदमी को तकलीफ पहुंची. कुछ लोगों ने कहा, और कुछ ने किया.

मुंबई में रहने वाले संगीतकार विशाल दादलानी मीडिया कवरेज से इतना परेशान हुये कि उन्होंने फौरन इसके खिलाफ कोर्ट में जाने का फैसला किया. इसके लिये उन्होंने एक वेबसाइट का निर्माण किया - smallchange.in - जहां उन्होंने इस कवरेज के खिलाफ एक पेटिशन को आकार दिया.

इस पेटिशन को 25,000 से ज्यादा लोगों ने लिखित समर्थन दिया (जिसमें मैं भी हूं). आपको खुशी होगी यह जानकर की इस पेटिशन को मुम्बई हाइ-कोर्ट ने सुनवाई के लिये मंजूर कर लिया है, और पहली सुनवाई 5 फरवरी को है.

अब मुम्बई हाइकोर्ट चैनलों से उनकी घटिया (shoddy) कवरेज के बारे में सवाल करेगा, और उन्हें जवाब भी देने होंगे. याद रहे की कुंटे कि बोलती बन्द करने वाली बरखा दत्त भी ऐसे ही एक चैनल और ऐसी ही घटिया कवरेज से जुड़ी हुईं हैं, और इस बात की प्रबल संभावनायें हैं कि जब सब चैनल न्यौते जायें तो उनके पास भी न्यौता पहुंचे.

तो अब हम इंतजार करे कि कुंटे को कोर्ट की धमकी देने वालीं बरखा दत्त, कोर्ट को क्या जवाब देतीं हैं.

इस बारे में ज्यादा जानकारी आप smallchange.in से प्राप्त कर सकते हैं. और हां, अगर आप को भी बरखा दत्त - एनडीटीवी और बाकी चैनलों के shoddy journalism पर एतराज हो, तो उस पेटिशन को जरूर लिखित समर्थन दें, और दूसरों को भी बतायें.