Thursday, April 30, 2009

राष्ट्रवाद क्यों?

राष्ट्रवाद क्या है? जमीन के एक टुकड़े से प्यार? किसी जगह की सभ्यता, वहां रहने वाले लोगों, वहां की हर चीज के लिये दिल में जज्बा? क्यों हो हमें राष्ट्र नाम के इस टुकड़े से लगाव? क्यों हम बात करें इसके लिये, क्यों हम लड़ें राष्ट्र के लिये? क्यों हम विरोध करें उनका जिन्हें हमारे राष्ट्र से विरोध है और जो लगें है इसे खोखला करने?

यह है हमारा राष्ट्र भारत, हिन्दुस्तान, इन्डिया

आखिर क्यों किसी राष्ट्र के सभी नागरिकों का अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित और राष्ट्रवादी होना जरूरी है? क्या हम कोई दूसरा रास्ता नहीं चुन सकते, जैसे कुछ लोग साम्यवादी होते हैं, कुछ पूंजीवादी, आखिर इतने सारे ‘वाद’ हैं तो राष्ट्रवाद को इतना बड़ा क्यों समझें? राष्ट्रवादी न होना इतनी दिक्कत वाली बात क्यों है?

क्योंकि

The Nation is your first line of defense

राष्ट्र आपकी सुरक्षा का पहला घेरा है
अगर राष्ट्र सुरक्षित है तो प्रांत सुरक्षित है
अगर प्रांत सुरक्षित है तो शहर सुरक्षित है
अगर शहर सुरक्षित है तो ग्राम सुरक्षित है
अगर ग्राम सुरक्षित है तो मोहल्ला सुरक्षित है
अगर मोहल्ला सुरक्षित है तो घर सुरक्षित है
अगर घर सुरक्षित है तो आपका परिवार सुरक्षित है

यह मत समझिये की राष्ट्रवादी होना एक बहुत महान फिलासफी का पालन करना है. राष्ट्रवादी होना अपने परिवार व खुद अपनी सुरक्षा के प्रति सजग होना है. जो राष्ट्रवादी नहीं है वह खुद अपने परिवार की सुरक्षा के लिये खतरा है और दूसरों के भी.

बार-बार देखा गया है कि जो लोग अपने देश की राष्ट्रद्रोही ताकतों को रोकने में असफल रहे उन्होंने सब कुछ खो दिया, सम्मान, सुरक्षा, परिवार.

इसलिये जो राष्ट्रद्रोह की बात करे, या जिनसे राष्ट्र की सुरक्षा प्रभावित हो उन्हें रोकना जरूरी है. अगर कोई राष्ट्र की सुरक्षा को हानि पहुंचाने वाले तत्वों का समर्थन कर रहा है और आप बिना प्रतिवाद करे सुन रहे हैं तो आप अपने देश ही नहीं अपने पूरे वजूद को, हर उस चीज को जिससे आपको प्यार है, खतरे में डाल रहें हैं.

इसलिये राष्ट्र के खिलाफ बात को देख-सुन कर निकल मत जाइये, प्रतिवाद कीजिये, विरोध कीजिये, अपनी बात संयत और संतुलित शब्दों में कहिये लेकिन जो गलत है उसे गलत कहने से डरिये मत, शब्दों को क्षीण मत करिये.

राष्ट्र की सुरक्षा ही व्यक्ति की सुरक्षा है.

Wednesday, April 22, 2009

धर्म ने दुनिया को क्या-क्या दिया

धर्म ने दुनिया को क्या-क्या नहीं दिया. आज जो भी कुछ है इस दुनिया में सब धर्म की ही वजह से है. धर्म न होता तो वह सब भी नहीं होता जो हमारी सभ्यता की निशानी है. फिर दुनिया शायद एक अलग ही जगह होती. लेकिन धर्म की वजह से वह सब है, जो ऐसे नहीं होता. क्या-क्या नहीं दिया धर्म ने दुनिया को.

दिया:

1. पुराने कबीलाई असभ्य अत्याचारी कानूनों को शरिया, या धार्मिकता के नाम पर लागू कर मानवों से आधारभूत स्वतंत्रता भी छीन लेने का हक.

2. जाति के नाम पर धर्म के बंटवारे से पूरे समाज में इतनी बड़ी खाईयां जिन्होंने इन्सान को इन्सान नहीं क्षत्रिय, ब्राह्मण, बनिया, शूद्र बना दिया, और इतने पूर्वाग्रह हर जाति के अंदर भर दिये कि उनसे बाहर निकल कर इन्सान को इन्सान समझना मुश्किल हो गया.

3. अपने धर्म के प्रसार के लिये हर जायज नाजायज तरीके का इस्तेमाल करना और उसे सही समझना.

विज्ञान ने दुनिया को उर्जावान किया और धर्म ने शक्तिहीन. विज्ञान की ऊर्जा का इस्तेमाल धर्म ने युद्ध के लिये किया. अब धर्म इस मोड़ पर मानव सभ्यता को पहुंचा चुका है कि इसी रास्ते पर आगे चलने की कीमत अपनी सभ्यता खोकर ही चुकानी होगी.

जिस धर्म में नये तौर-तरीकों के कपड़े पहनना मना है, नये मनोरंजन के साधन इस्तेमाल करना मना है, नये युग में जीना मना है, वो बड़ी आसानी से नये तरीके के हथियार, असले और युद्ध सामग्री इस्तेमाल कर लेता है, और उसमें उन्हें कोई कोन्ट्राडिक्शन नहीं दिखता.

क्या एटम बम का वजूद मात्र ही इस बात का सबूत नहीं है कि

खुदा नहीं है

भगवान नहीं है

ईसा नहीं है

और भगवान का हर वो रूप नहीं है जिसे हमने माना

तो कब तक इस झूठ के सहारे इन्सानों पर अत्याचार होगा?

allbornatheiststheistarcj1

Saturday, April 18, 2009

व्हाट अ कान्फीडेन्ट मैन!

ये सारे वो ‘कान्फीडेन्ट मैन’ हैं. इनका कान्फीडेन्स का राज इनका खुद पर नहीं अपने गुर्गों पर भरोसा है.

akshay pratap singh 
अक्षय प्रताप सिंह

anna shukla
अन्ना शुक्ला

Baleshwar Yadav
बालेश्वर यादव

Brij Bhushan Sharan Singh
बृज भूषण शरण सिंह

Munna Shukla 24 criminal charges
मुन्ना शुक्ला

owaisi
सलाउद्दीन ओवैसी

     afzalansari
अफज़ल अंसारी

dpyadav
डी पी यादव

guddu pandit   
गुड्डू पंडित

Pappu Yadav
पप्पु यादव

taslimuddin
तस्लीमुद्दीन

prabhunath singh
प्रभुनाथ सिंह

dadan
ददन पहलवान

shahabuddin    
शहाबुद्दीन

conf1
मुख्तार अंसारी

surajbhansingh
सुरजभान सिंह

ये सब आपका वोट चाहते हैं, ज्यादातर अपने लिये, और जिन्हें कानून के चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित किया है वो अपने रिश्तेदारों के  लिये.

  इन सबके चेहरे को देखिये

इनके चेहरे पर तारीख गवाही दे रही है. क्या आप उसे पढ़ सकते हैं?

Friday, April 17, 2009

कसाब को किस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया है?

अजमल कसाब जब पहले-पहल पकड़ा गया तो रो-रोकर उसने मांग की कि उसको मार दिया जाये, लेकिन थोड़ी ही देर बाद रोना अस्पताल में इलाज करवाने के लिये था. जेल गया तो पहले सारा कच्चा चिट्ठा उगल मारा. बाप-भाई, बहनोई सबके पते दे दिये, लेकिन हिन्दुस्तानी मेहमाननवाजी तो पूरे जग में प्रसिद्ध है, थोड़े दिन सरकारी मुर्ग खाये तो मुटिया गया, हिन्दुस्तानी कानून का हाल-बेहाल भी पता चल गया, इसलिए आजकल वो अपराधी नहीं नेताओं की तरह मांगे कर रहा है.

मुझे यह दो, मुझे वह दो, यह कैदी भी सुविधापरस्त हो चला है. जब ऐसी टोटल ऐश हो तो क्या डर कानून का, इसलिये अदालत में मजे से अपने बयान से मुकर गया. उसने कहा कि बयान तो दबाव में दिया था मैंने.

अगर इसकी जगह कोई और देश होता (जैसे चीन या रूस) तो पट से ट्रायल, और फटाक से फांसी तक पहुंच चुका होता कसाब. कसाब के अपराध को साबित करने के लिये भी लंबा मुकदमा चाहिये?

चलिये अब मुद्दे की बात पर आते हैं. आखिर कौन से कानून हैं वो जिनका उल्लंघन कसाब ने किया जब वो मुम्बई में लोगों की जानें लेने निकला (पूरे 166 लोगों को मारा इन इस्लामिक आतंकवादियों ने).

1. किसी व्यक्ति की जान लेना.
2. देश के खिलाफ युद्ध
3. लूट
4. खूब सारे और छोटे-मोटे कानून...

कानूनों कि लिस्ट लंबी है, और कसाब पर फाइल की गई चार्जशीट भी.... दिल थाम के सुनिये .... 1000, 2000, 3000.... नहीं, पूरे 11,000 पेज की है (पाकिस्तान के बाबा आजम के भी दद्दु गजनी के ताऊ से शुरु की होगी गपड़चौथ)

इस चार्जशीट को पढ़ने और समझने में लगेंगे जज को 20 साल, फिर मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाते-जाते और फैसला होते-होते कसाब भी अपनी हूरें कब्जाने जन्नतनशीन हो चुका होगा (बुढ़ापे से मरेगा)

अच्छा वो कानूनों की सूची पढ़ ली थी न आपने? सही सूची है न? कुछ कमीबेशी?.... नहीं है?

भाई आपको बता दें कि महाराष्ट्र (कांग्रेस का शासन है जी इधर) में एक धांसू कानून और है जिसे कहते हैं मकोका (MCOCA). नाम याद रखना. इस धांसू कानून के अंतर्गत कुछ और आतंकवादी बंद हैं जिन पर फौरन कांग्रेस के सेक्युलर सरकार ने मकोका चिपका दिया था और वो जेल में सड़ रहें हैं. वो थे 'हिन्दू आतंकवादी' प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित. कांग्रेस को भरोसा है कि प्रज्ञा और पुरोहित कसाब से ज्यादा खतरनाक हैं जिन पर ज्यादा कठोर कानून लगना चाहिये.

वैसे ये भी पता होना चाहिये कि अगर कसाब पर मकोका लगा होता तो वह आज अदालत में मुकर नहीं पाता क्योंकि मकोका के अंतर्गत उच्च पुलिस अधिकारी के आगे दिया बयान मान्य होता है. अब जब कसाब अपने हल्फिया बयान से मुकर गया तो पुलिस की सारी कार्यवाही नये सिरे से होगी (मतलब अफजल को नया हमसाया मिल गया).

और भी जबर्दस्त खबर सुनेंगे?

कसाब के वकील (वही जो दाउद के गुर्गों के मुकदमे लड़ता रहा है) ने कहा कि भैया कसाब तो एकदम बच्चा है. उस पर मुकदमा बच्चों के कोर्ट में चलाया जाये, इस कोर्ट को कोई हक नहीं सुनवाई की. अब समझे वाघमारे को हटाने का राज? जैसे-जैसे केस पुराना होगा, कसाब के खिलाफ तथ्य हल्के होंगे और उसके पक्ष में मजबूत.

अब तो यह सोचता हूं कि क्यों तुकाराम ओंबले ने जान देकर इस हरामखोर को जिंदा पकड़ा, ठोक देना था वहीं.

क्या आप में से कोई मुम्बई की चुनी हुई सरकार से पूछेगा कि उसे कसाब मकोका के लायक क्यों नहीं लगा?

Thursday, April 16, 2009

एक तितली के पंखों की फड़फड़ाहट क्या तूफान ला सकती है

ये कोई राजनैतिक लेख नहीं. अस्फुट, असंग्रहित विचार हैं. जो भी कुछ हम सोचते हैं, कहतें हैं, करते हैं क्या उस सब का कोई परिणाम कोई consequence भी होता है? या फिर पानी में गिरने वाले पत्थर उठी लहरों के समान कुछ पलों के बाद ही सब कुछ शांत हो जाता है, जैसा था बिल्कुल वैसा.

gulal 
ज़िंदगी के नये अनुभव, जानकारी और इनसे पैदा होने वाले विचार और सोच, उनमें से कुछ ही तो हम बांट पाते हैं, और जो बांट भी पाये उसमें भी पता नहीं चलता कि आपने जो कहा उसमें से कितना शब्दों के घालमेल में से निकल कर गंतव्य तक पहुंचा. कुछ पहुंच भी गया तो फौरन भुला दिया जाता है. जो भुला न सके उसे दिमाग के एक कोने में सड़ने के लिये छोड़ दिया जाता है.

फिर भी अपनी बात पहुंचाने की जिद क्यों? क्या ये megalomania है जो हमें विश्वास दिलाती है कि एक ऐसा संदेश है आपके पास जिसका दूसरों तक पहुंचना जरूरी है. या फिर ये optimism है जो आपको विश्वास दिलाता है कि आपके कहे का दुनिया के भीषण-चक्र पर कुछ असर होगा? या फिर यह philanthropy का एक temporary दौरा है जो आपको मजबूर कर रहा है अपने समय का अपव्यय करने को? या फिर यह उस राष्ट्र या समाज के लिये जिम्मेदारी या guilt का एहसास है जिससे आपने इतना कुछ लिया? ये भी हो सकता है कि यह आपकी male chauvinist जिद हो दुनिया का अपना perception दुनिया पर थोपने की?

आज सब कुछ थोड़ा inconsequential लग रहा है. इन्सानी फितरत में mood swings भी फितरती होते हैं, जब चाहे आते हैं, चाहे जिस कारण से आते हैं. इसलिये चाहते हुए भी, जो लिखना चाहता हूं उसके लिये ऊर्जा नहीं मिलती.

आज हलके, शाम से ही गुलाल फिल्म का गाना Youtube पर देखते-सुनते गुजार दी.

1. http://www.youtube.com/watch?v=e50WqCFthAM&feature=related

जो कुछ लिखा-कहा, इसलिये कि यह विश्वास करता हूं एक तितली के पंखों की फड़फड़ाहट भी तूफान ला सकती है (बकौल Chaos theory का Butterfly effect).

आज विश्वास इस गाने के नीचे दब गया, इसलिये वह नहीं लिख पाया जो लिखने बैठा था... आज यही सही.

कल नया दिन है.

Wednesday, April 15, 2009

पंजे से हाथ मिला कर उन्होंने कमल का फूल सूंघा, और साइकल से होकर हाथी पर चढ़ गये

उत्तर प्रदेश की राजनीति बेमिसाल है. इसलिये नहीं कि यहां के नेता या जनता कोई बहुत अच्छा काम कर रही है, बल्कि इसलिये कि घटिया नेतृत्व और जातिभक्त जनता इतनी बेदर्दी से प्रदेश को खसोट रही है कि इसकी मिसाल नहीं मिलेगी.

यहां वोट चलता है बनिया, ब्राहम्ण, दलित, लोध, ठाकुर, यादव, मुसलमान का, इनकी जाती का कोई जानवर भी अगर चुनाव में खड़ा हो जाता है तो आंख बंद कर बटन दबा देते हैं. इसलिये यहां इमानदार की कोई कीमत नहीं. कीमत है ऐसे भेड़िये की जो अपने चारों और गिरोह खड़ा कर सके. खुद एक जाती से हो और दूसरी जाती के एकाध का समर्थन हासिल कर लो तो चुनाव जीता ही जीता.

इसलिये इस प्रदेश में जातिवाले गुन्डों और माफिया कि बन आई है. मुख्तार अंसारी, अफजल जैसे माफिया... गुड्डू पन्डित जैसे बालात्कारी और डीपी यादव जैसे बदमाशों निर्बाध रूप से यहां चुनकर आते हैं. और ये लोग जब सभायें करते हैं तो भीड़ की भीड़ जुटती है.

इन्हें टिकट कौन देता है? वही पार्टियां जो गरीबों की आवाज उठाने का दम भरती हैं. समाजवादी पार्टी के राज में गुन्डो की तूती बोलती थी... क्या होता होगा इससे ही सोच लीजिये कि निठारी भी समाजवादी पार्टी के बड़े भैया को छोटी-मोटी घटना लगी थी.

गुन्डाराज से परेशान जनता को मायावती ने छलावा दिया - “चढ गुन्डन की छाती पर, मोहर लगाना हाथी पर.” बेवकूफ लोगों ने विश्वास कर लिया, और हाथी का बटन दबा दिया. मायावती ने शुरुआत में गुन्डों से मुकाबले की तत्परता का जो परिचय दिया अब वो बीते दिनों की बात है. सारे गुन्डे दल बदल कर अब मायावती के साथ हैं और वहां से बहन जी का भरपूर लाड़ पा रहें है. मुख्तार अंसारी पर बसपा के राजू पाल और भाजपा के कृष्णानंद राय के कत्ल का इलजाम है, मायावती ने एक वक्त पर उसे सबक सिखाने की कसम खाई थी, लेकिन आज उसे गरीबों का मसीहा कहती हैं.

असल में इस खेल में कोई भी पार्टी साफ दामन वाली नहीं रही. एक वक्त पर तो इस समय भारत के प्रधानमंत्री पद के सर्वश्रेष्ट उम्मीदवार आडवाणी भी डी पी यादव जैसे माफिया को पार्टी में लाने को तत्पर दिखे थे. शुक्र है कि लोगों के दबाव के चलते यह नहीं हुआ.

मतलब बात यह है कि सत्ता की चाभी उत्तर प्रदेश में अब नेताओं के हाथ से निकल कर गुन्डों के हाथ में जा पहुंची है. या तो इनके समर्थित उम्मीदवार चुन कर आते हैं, या फिर यह खुद ही चुनाव में खड़े होकर चुन लिये जाते हैं.

और इसके लिये जिम्मेदार और कुछ नहीं यहां कि वो घटिया जनता है जो जाति, या किसी भी और वास्ते पर (जिसमें देश कहीं नहीं आता) बार-बार इन्हें वोट दे रही है.

ऐसा नहीं हैं कि इमानदार उम्मीदवार नहीं हैं. हर चुनाव में निर्दलीय खड़े होते हैं. कई अच्छे लोग भी होते हैं. लेकिन जाति के सरमायों के द्वारा समर्थित नहीं होते.

भविष्य अंधेरा दिखता हैं क्योंकि गुन्डे पंजे से हाथ मिलाकर, कमल की खुशबू सूंघते हुए साइकल पर सवार होकर हाथी पर चढ़ चुके हैं.

इस समय एक नये आंदोलन की जरुरत है, एक नये भविष्य की.. किसी ऐसे संघटन की जो अपराधियों से नहीं जनता से वास्ता रखे.

और उत्तर प्रदेश की जनता के लिये एक संदेश है. अगर अब भी जाति के नाम पर वोट देना जारी रखोगे तो पहले नेताओं वाला एक-एक जूता खुद को लगाओ फिर वोट देने जाओ.

Tuesday, April 14, 2009

तालिबान से लड़ने का सबसे सही तरीका… हथियार डाल दो… वो भी डाल देंगे

हां जी. तालिबान से लड़ने के एक ही तरीका है, हथियार डाल कर आत्मसमर्पण कर लीजिये, और वो जो करें करने दीजिये. कम से कम पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसफ अली जरदारी का यही ख्याल है, इसलिये उन्होंने पाकिस्तान के एक हिस्से को तालिबान के शरिया कानून को सौंपने वाले बिल पर दस्तखत कर दिये.

taliban_hangingयही कानून अतिवादी भारत में चाहते हैं. क्या आप इन्हें वोट देंगे?

अब अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान से खदेड़े गये तालिबानी पाकिस्तान में अपने नये घर में चैन से महिलाओं को पीट सकेंगे. पाकिस्तान के इस हिस्से में लगभग 30 लाख लोग हैं. इन सबको तालिबानियों को सौंपने से पहले कोई भी मत या चुनाव नहीं कराया गया कि आप लोग क्या चाहते हैं.

पाकिस्तान को भरोसा है कि इससे स्थितियां सुधरेंगी. कैसे सुधरेंगी? शरिया को कानून बना कर तालिबानी आतंकवादियों को इस सूबे में मनमानी हुकुमत चलाने का लाइसेंस देने से पाकिस्तान की सुरक्षा कैसे हो सकती है? जो लोग पहले स्वात और फिर इस सारे हिस्से पर कब्जा कर चुके हैं, वो पूरे पाकिस्तान को धीरे-धीरे निशाना बनायेंगे. उनका लक्ष्य यही है.

हद तो यह है कि पाकितान के पूरे प्रशासन में तालिबान समर्थक लोग घुस आये हैं. उनमें से एक अमीर इज्जत खान ने कहा कि इस बात से खुश होकर तालिबानी लड़ाके हथियारों का त्याग करेंगे.

“तालिबानी लड़ाके हथियारों का त्याग करेंगे”?
तेंदुआ की खाल पर धब्बों के बजाय धारियां उभरेगीं?

जरदारी का मीडिया डिपार्टमेंट बोला “राष्ट्रपति संविधान का पालन बनाये रखने के लिये प्रतिबद्ध हैं.” संविधान क्या है आपका? जोकबुक? जब चाहे कोई आता है और दरिया में डाल देता है आपका संविधान.

पाकिस्तानी सरकार अमेरिका से जिन आतंकवादियों से लड़ने के लिये पैसा बटोर रही है, सबसे पहले उन्हें एक सुरक्षित ठीया दिया है. वहां से बैठ कर वो पूरे पाकिस्तान को तालिबानिस्तान बनायेंगे.

ऐसे माहौल में जब पाकिस्तानी एटमी हथियार तालिबानों के हाथ आने से बस कुछ ही देर दूर हैं, दुनिया को फैसला करना होगा कि वो एक बहुत बड़ा सरदर्द चाहते हैं, या फिर इससे छुटकारा.

मुझे लगता है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति को अगर तालिबान पर भरोसा है, या फिर वो समझते हैं कि यह खूनी भेड़िये किसी भी हद तक रुकने वाले हैं तो फिर वह परले दर्जे के अहमक हैं. और अगर वो तालिबानी फितरत को जानते हुये भी ऐसा कर रहे हैं तो पहले नम्बर के देशद्रोही.

वैसे पाकिस्तान के किसी प्रमुख से और आशा भी क्या की जा सकती है.

खबर यहां पढ़ी थी http://www.google.com/hostednews/afp/article/ALeqM5gE05mvzP8ISwLgn3GrmmxNMRXCJw

Monday, April 13, 2009

हिमाकत देखिये… गलत वक्त पर सही बात!

चुनाव का समय है, आजकल नेतादर्शन कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं. नेतागण टीवी पर भारी डिबेटें कर रही हैं और उसमें लचर-लचर दलीलें आंय-बांय बक रहे हैं, हम मुंह फाड़े झेल रहे हैं.

ऐसी ही एक दलील का पोस्टमार्टम करते हैं

दलील है – गलत वक्त पर सही बात

बानगी पेश है : आडवाणी ने देश का पैसा वापस मंगाने की बात अब ही क्यों उठाई… क्यों उठाई अब? बोलो? जवाब दो… अब ही क्यों?

chup karटेप लगा दो मुंह पर, फिर नहीं बोलेगा. 

क्यों भैया कोई खास मुहुर्त चल रहा है इस समय जिसमें देश कि भलाई की बात करना मना है? भाई मेरे तुम ये न पूछ रहे कि बाकियों ने अब भी क्यों नहीं उठाई, तुम ये पूछ रहा हो कि जिसने उठाई उसने भी क्यों उठाई?

घसियारा लाजिक है. बल्कि घास चरके लीद किया हुआ लाजिक है.

देश हित की बात है. देश का पैसा है. टैक्स दिये बिना, घूस-वूस में कमा के देश के बाहर भेज दिया. कोई लाख-दो लाख नहीं 25 हजार करोड़ है. अगर कोई आदमी चुनाव के समय ही सही, अगर यह कहे की भैया देशचोरों से पैसा वापस लाना है तो इन्हें ऐतराज है?

खबर तो पिछले साल से है कि जर्मन सरकार नाम बतलाने के लिये तैयार थी. यहां तक की नवंबर में मैंने भी इसका जिक्र किया था (http://wohchupnahi.blogspot.com/2008/11/blog-post_22.html, नीचे जा के पहला पाइंट देखिये) अपने पत्रकार भाई लोग तो बिना बात की बकवास करके नोट जुटाने में चिपे थे… तो भैया तब तो न उन्होंने, न तुमने इस बात का जिक्र किया. तकिये के नीचे दबाकर बैठे थे. अब अगर बात उठी है तो इसे उड़ाने की बजाय बिठाकर गौरवान्वित कर रहे हो़? नेता लोग तो पहले ही अजब-गजब थे, और अब अपने देश के पत्रकार गजब-अजब हो रहे हैं.

इधर कोई चिल्ल मचा रहा है ‘ऐं क्यों बोला अब..’ उधर कोई बिलबिला रहा है ‘ओये.. अब क्यों बोला..’

सच्ची-सच्ची बोलूं?

बात यह नहीं है कि अब ही क्यों बोला.. बात यह है कि भैया -- क्यों बोला!… बोला ही क्यों! --  क्यों ही बोला!…

अब नहीं भी बोलता तो जब भी बोलता तब भी ‘अब बोला?’ कर देते अपने गुणीजन.

अबे थोड़ी तो शर्म करो… क्या इसी दिन के लिये देश का नमक खा कर बड़े हुये हो?

Sunday, April 12, 2009

समाजवादियों का मेनिफेस्टो… हंसी के गुलगुले

लोग सपा के मेनिफेस्टो पर हंस रहे हैं बहुतों का कहना है कि ऐसी बेवकूफी पहले नहीं देखी. इन्टरनेट पर जिस भी जगह मेनिफेस्टो के बारे में पढ़ा तो उस टिप्पणी करने वालों ने गुस्सा नहीं हंसी का इजहार किया. सचमुच अमिताभ के छोटे भाई, अनिल अंबानी के दोस्त ने जो गुल खिलाया है उससे गुलगुली होती है.

लेकिन भाई जरा टेक्स्ट का सबटेक्स्ट पढ़ना सीखो. इस मेनिफेस्टो की अपील कहीं और ही है. जरा इसके प्रस्तावों पर गौर करते हैं. होली की भांग का नशा, चढ़ा हुआ है अब तक. बेचारे


होरी की भांग अब तक
ना उतरी भैया
  1. अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा बंद करेंगे. (यह देशभाषा प्यार है?)
    तालिबान ने भी अफगानिस्तान में अंग्रेजी शिक्षा बंद करा दी थी हम करा देंगे तो अपन को कुछ खास वोट तो मिलेंगे.

  2. सारे आफिसों में से अंग्रेजी गायब करा देंगे.
    क्या चलायेंगे जनाब? उर्दू या हिंदी यह भी बता देते.

  3. सारे कम्पयुटरों को आफिसों और शिक्षा स्थलों से गायब कर देंगे
    वैसे भी ज्यादातर मदरसे कम्प्युटर क उपयोग नहीं करते (सिवाय उनके जहां समझदार लोग हैं).

  4. सारे कृषि उपकरण बंद करा देंगे. ट्रेक्टर की जगह बैल चलायेंगे
    बहुत अच्छे, इन बुलों से बुलशिट लेकर देश में बांटने में आसानी होगी

  5. शेयर बाजार बंद कर देंगे
    फिर अनिल अंबानी का क्या होगा? छोटा भाई नाराज हो जायेगा.

  6. बड़े-बड़े वेतन पाने वाले लोगों के खिलाफ कार्यवाही करेंगे
    भाई देश में बस एक ही अमर अर्रे… अमीर आदमी चलेगा… और कौन अपने अमीर सिंह (भैया 7 मिलियन डालर की मिल्कियत वाला तो खुद को खुल्ले में कहते हैं अमीर सिंह जी)

  7. मालें बंद करा देंगे
    शुरुआत सहारा माल से कराओगे चाचा या बत्ती दे रहे हो?

  8. सारी प्राइवेट कम्पनी में कम से कम मजदूरों के स्तर का वेतनमान करा देंगे
    सही है इनकी सरकार बनी तो वैसे भी पूरे देश को यही वेतनमान नसीब होगा.

  9. सारी महंगी शिक्षा बंद करा देंगे
    वैसे भी देश में इंजीनियर, वैज्ञानिक, डाक्टर ज्यादा हो गये हैं.

  10. पाकिस्तान और बांग्लादेश से दोस्ती बढ़ायेंगे
    हमारे भविष्य के वोटर वहीं से तो आने हैं. है न अमीर सिंह जी?

  11. सांप्रादायिक ताकतों पर वार कर आतंक को जड़ से मिटा देंगे
    देश के सारे हिंदुओं को नष्ट कर दिया जाये तो किसके खिलाफ होगा आतंक?

  12. बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देंगे
    रोजगार देने से ज्यादा आसान है.

  13. वकीलों और व्यापारियों के लिये योजनायें बनायेंगे
    वकीलों कि तो जरुरत पड़ेगी अगर यह सब कर दिया भैया, और व्यापारी जब आप उनका भरता बना दोगे तो भत्ता देना होगा न.

  14. किसानों की समस्याओं पर ध्यान देंगे
    देना, ध्यान देना बहुत समस्यायें मिलेंगी जब उनके ट्रेक्टर छीन कर, उनके कृषी उपकरण हथिया कर आप उन्हें आदिम युग में धकेल दोगे.

Saturday, April 11, 2009

आइये, वापस कंधार चलें

आजकल गलती से कोई न्यूज़ चैनल खुल जाये तो कोई न कोई कांग्रेसी दिख जाता है एनडीए के पांच साला शासन को याद करते हुये. चाहे वो कपिल सिब्बल हो, दिग्विजय, राहुल, सोनिया, मनमोहन, या कोई और, सब एनडीए की यादों में खोये हुये हैं, ऐसा लगता है कि पिछले 5 सालों में भी शासन भाजपा का ही रहा है.

Debating एक कला है और उसमें कांग्रेस ने जो तरीका अपनाया है उसे कहते हैं ‘Tu Quoque’ (you too) इसका मतलब है कि हम तो चोर हैं सनम, तू भी चोर ही है. मतलब अगर सोनिया गांधी एनडीए के राज में हुये विस्फोटों का हवाला दें तो वो इस argument के जरिये कांग्रेस के शासन काल में हुये विस्फोटों को justify कर रही हैं.

kandahar

लेकिन एक बात याद रखिये, गलती चाहे कोई भी करे, कितनी भी बार की जाये, गलती तो गलती है. इसलिये कांग्रेस की यह दलील कि तुम भी चोर ही हो सिर्फ वाद-विवाद प्रतियोगिता में ही अंक दिला सकती है. मतलब कांग्रेस के शासन में हुये मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलुरु, आसाम, में हुई घटनाओं के लिये यह सफाई काफी नहीं.

1. हर incompetence, हर असफलता, हर बेईमानी का जवाब यह नहीं कि उनके शासन काल में भी ऐसा हुआ था. अगर ऐसा था कांग्रेस, तो हम उन्हें ही क्यों न चुनें? आपको क्यों चुनें?

वैसे एनडिए के शासनकाल इतना सफल रहा कि जब उसका अंत आया तो india shining था, और आज जब कांग्रेस के यूपीए के शासनकाल का अंत हो रहा है तो india whining हो रहा है. इसकी जिम्मेदारी भाजपा नहीं कांग्रेस के सर ही है.

और अब बात करें मुख्य मुद्दे की, बात करें कंधार की. कांग्रेस ने कंधार के नाम पर एक ऐसा दाग लगाया है भाजपा पर जिसका जवाब मुश्किल ही देते बनता है. लेकिन मैं कहता हूं कि कंधार का सबक एनडीए को मिला जरूर, लेकिन उसके पीछे का कारण भाजपा की कमजोरी नहीं शासन की तुरत-फुरत कार्य करने की क्षमता की विफलता थी. यह एक ऐसी शासन प्रणाली की देन थी जिसे भाजपा को विरासत में दिया गया था, और जो घटनाक्रम उस समय बना, उसमें शायद दूसरा फैसला कर पाने की शक्ती भाजपा में ही नहीं, देश में भी नहीं थी.

में उस घटनाक्रम की तुलना करूंगा black September से, जिसके बाद इज़राइल की नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव आया. उस घटना में इज़राइल के 11 खिलाड़ी जर्मनी के ओलम्पिक खेलों में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा अपहृत कर लिये (PLO द्वारा) और उनकी मांगे एक नहीं इज़राइल की जेलों में सड़ रहे सभी आतंकवादियों को छोड़ने की थी.

उस मामले पर बात चालू थी, और कहते हैं कि इज़राइल की सरकार कुछ लोगों को छोड़ने के लिये तैयार भी हो गई थी (सभी को नहीं), म्युनिख के हवाई अड्डे पर उन्हें हैलिकाप्टर भी दिया गया, लेकिन जर्मन सेना की जल्दबाजी से सारे खिलाड़ी मारे गये. उस समय इज़राइली प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को बहुत criticism का सामना करना पड़ा और उन्हें ऐसा कसाई भी कहा गया जिसने उन खिलाड़ियों को मरने छोड़ दिया. आज जरुर उन आतंकवादियों को न छोड़ने पर गर्व किया जाता है.

कंधार के घटनाक्रम में 11 नहीं, 110 नहीं 200 से ज्यादा लोग उन आतंकवादियों के कब्जे में थे. कौन भूल सकता है उन लोगों के बिलखते हुये परिजनों को जिन्हें हिन्दुस्तानी टीवी चैनल लागातार दिखा रहे थे. एक शो में मैंने एक फैशन डिज़ाइनर को रो-रोकर अपने दोस्त/भाई/कुछ और को छुड़वाने के लिये कहते सुना, शब्द कुछ ऐसे याद पड़ते हैं “कुछ भी करो, मान लो उनकी बातें.. बचा लो… बू हू… बचा लो”

सेना के एक शहीद की बेवा ने जब कहा कि आतंकवादियों को नहीं छोड़ना चाहिये तो उसे डपटकर चुप करा दिया गया. मतलब उस समय पूरा देश सहानूभूती से लबरेज था. देश की सरकार पर बहुत जबर्दस्त दबाव था उन लोगों को बचाने का, प्रेस की मुहिम भी यही थी.

उधर जहाज हमारे बुर्जुआ हो चुके सुरक्षा तंत्र के अव्यवस्था के चलते कंधार पहुंच चुका था. तालिबान के इस्लामिक आतंकवादियों के बीच, उनके हवाई अड्डे पर. वो न हमें कोई बात करने देने को तैयार थे, न कोई सैनिक आपरेशन चलाने देने के. असल में वो उन आतंकवादियों के ही साथी थे. कोई और देश होता, तो वो नहीं होता जो हुआ.

उस समय को याद कीजिये, उस समय में खुद अपनी अनुभूतियों को याद कीजिये, और याद कीजिये उस दर्द को सबने महसूस किया. उस समय की सबसे बड़ी priority आतंकवादी या आतंकवाद से मुकाबला नहीं उन 200 लोगों को बचाने की बन चुकी थी. और इसलिये कंधार हुआ.

क्या आप सोचते हैं कि भाजपा ने जो किया उस घटनाक्रम में कांग्रेस कुछ अलग कर पाती?

लेकिन अब बात करते हैं उसकी जो नहीं हुआ, जो भाजपा ने भी नहीं किया और कांग्रेस ने भी नहीं. बात करते हैं black September के बाद हुये उस घटनाक्रम की जिसने सारे इस्लामिक आतंकवादियों के दिल दहला दिये.

इज़रायल की सुरक्षा एजेंसी मौसाद ने 16 लोगों के बारे में पता लगाया जो काले सितंबर के जनक थे और उनमें से 11 को कार्यवाही में मारा.

  1. क्यों जीवित है अब तक हिन्दुस्तान के दुश्मन?
  2. रॉ जिसके नाम से सारा पाकिस्तान कांपता है क्यों दाउद इब्राहिम को देश में नहीं ला पाई, या विदेश में ही खत्म नहीं कर पाई.
  3. जिन्होंने कंधार आदी को अंजाम दिया, उन्हें हम क्यों सजा नहीं दे पाये.

मैं मानता हूं कि भाजपा और कांग्रेस की विफलता भी यही है… जो कंधार के बाद हुआ. कंधार विफलता नहीं विवशता थी.

क्या हम अपेक्षा करें की अगली चुनी हुई सरकार देश के दुश्मनों की दुश्मन बनकर दिखायेगी?

Friday, April 10, 2009

कश्मीर पाकिस्तान का मर्ज नहीं, उसका लक्षण भर है… तो आखिर असली बीमारी क्या है?

पश्चिम में कुछ लोगों को लगता है कि पाकिस्तान की समस्या कश्मीर है, और अगर कश्मीर हल हो जाये तो पाकिस्तान कि सारी मुसीबतें मिट जायेंगीं. वहां अचानक शांति कि आमद हो जायेगी, और फटाफत सारे आतंकवादी हथियार रख के हल-हंसिया थाम लेंगे.

पश्चिम सारे विश्व को अपने अमेरिकी चश्मे से देख रहे हैं बिना समझे की जिस तरह आतंकवादी सोचता है, उस तरह से एक सामान्य नागरिक नहीं सोच सकता.

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खेल भी तो किस चीज से?…

इसलिए वो आशा करते हैं कि पाकिस्तान के जनमानस में स्वात में लड़की की पिटाई के लिये स्वत: स्फुट सहानुभूती के ऐसे स्वर उठेंगे की तालिबान भी बह जायेगा. शायद उनके दिमाग में यह विचार भी नहीं आया होगा कि बहुत सारे पाकिस्तानियों के लिये यह शर्म नहीं गर्व की अनुभूति लेकर आयी घटना है. गर्व अपनी शरिया और शूरा के अक्षरश: पालन करवा पाने का.

लेकिन अमेरिकि लिबरलों के लिये यह समझ पाना मुश्किल है, इसलिये जब अमेरिकि दूत हिलब्रूक ने कहा कि वो भारत पर कश्मीर की समस्या के बारे में बात करने के लिये जोर नहीं डालेंगे तो अमेरिका में ही इसके विरोध के स्वर गूंजने लगे. अचानक आवाजें आने लगीं कि अगर कश्मीर पाकिस्तान की शांति का रास्ता है.

उन्हें लगता है कि कश्मीर न पाने की बेबसी और बांग्लादेश के कट जाने का दर्द पाकिस्तानी जनमानस को खाये जा रहा है, और यही कारण है पाकिस्तानी युवाओं का आतंकवाद की तरफ जाने का. उन्हें लगता है कि कश्मीर हल हो जाये तो यह बिगड़ैल लड़के घर लौट जायेंगे और धीरे-धीरे आयेगी… शांति...

काश अगर ऐसा होता तो कश्मीर देकर भी देख लेते. आखिर विश्व शांति से बड़ा क्या होगा यह अत्यंत महंगा जमीन का टुकड़ा जो हर साल भारत के कई सौ करोड़ खा रहा है.

काश ऐसा होता…

असल में पाकिस्तान की समस्या कश्मीर या बांग्लादेश भी नहीँ. पाकिस्तान की समस्या है सांप्रादायिकता. वहां पर रहने वाले लोगों में इस्लामिक साम्प्रादायिकता इस हद तक है कि उन्हें इस्लामिक धर्म, इस्लामिक विचार, इस्लामिक जीवनशैली (जो शरिया के अनुसार है) के अलावा कुछ स्वीकार्य ही नहीं.

हर वाक्य में इंशा-अल्लाह कहकर अल्लाह का अपमान करने वाले कठमुल्लों को जाने क्यों भरोसा है कि जिसे इस्लाम पर भरोसा नहीं, उस पर अल्लाह का करम नहीं. उनका निर्णय एक ही है, उनका लक्ष्य एक ही है. सारे विश्व में एकक्षत्र उनका मनमाना फतवेगिरी का कानून, कश्मीर का एजेंडा वक्ती है. सिर्फ इसलिये ताकी जिन लोगों कि भावनायें धर्म नहीं भड़का पाता, उन्हें राष्ट्र के नाम पर भड़का दिया जाये.

थोड़ा सोचकर देखें की पाकिस्तान के हाथ कश्मीर लग जाये तो क्या होगा.

बताईये

1 क्या पाकिस्तान की औकात है कि कश्मीरियों को जिस सुविधाओं की आदत है वह उसके लिये खर्च कर पाये?

2 जो आतंकवादी पाकिस्तान ने पाल पोस कर बड़े किये हैं, वो बेरोजगारी में क्या करेंगे?

3 पाकिस्तान के जिस तबके को उसने इतने दिन भारत के खिलाफ नफरत का जहर पिला-पिला कर पैदा किया, वो कश्मीर के बाद क्या मांगेगा?

पाकिस्तान में मशहूर जोकर है जिसका नाम है जायद हमदी. इसने पहले ब्रासटेक्स नाम के प्रोग्राम में मुंबई विस्फोट के बाद उल्टे सीधे बयान दिये थे. इसने थोड़े दिन पहले भारत के भरत वर्मा से कहा कि ‘फिर हम पानीपत में मिलेंगे’

जायद हमदी इतिहास में इतना पीछे चला गया, लेकिन हालिया इतिहास भूल गया. भारत से युद्धों में करारी हार और भारतियों की दया पर छूटने वाले करगिल के घुसपैठियों का सबक यह भूल गया.

अब भी नये घुसपैठिये आ चुके हैं और हमारे सैनिक सीमाओं पर लड़ रहे हैं. पूरे गांव के गांव कश्मीर में खाली करा दिये गये हैं. चुनाव का मौसम है, इसलिए आप इस बारे में कम सुन रहे हैं. लेकिन हालात गंभीर हैं.

पाकिस्तान की दुश्मनी कश्मीर के लिये नहीं. पाकिस्तान की दुश्मनी देश या राष्ट्र के लिये नहीं. पाकिस्तान की दुश्मनी इससे भी गहरी है. पाकिस्तान की दुश्मनी धर्मांध है, उनकी दुश्मनी उनके विधर्मियों के साथ है जिनका यह वजूद मिटा देना चाहते हैं. इसलिये पाकिस्तान का दुश्मन हर वो देश है जहां उसके धर्म से इतर लोगों का शासन है, और इसलिये वह हर उस देश में आतंकवाद का निर्यात कर रहा है.

जब तक आप यह स्वीकार नहीं करते, तब तक आप पाकिस्तान के आतंकवाद का न कारण समझेंगे, न उसके निवारण का रास्ता ढूंढ़ पायेंगे.


जाते-जाते:

दिग्विजय सिंह (वहीं जिन्होंने 10 साल तक म.प्र. का ऐसा विकास किया कि जहां बिजली-पानी आता भी था, बंद हो गया) ने कहा कि स्विस असोशियेशन और आडवाणी, दोनों के द्वारा बताये गयीं भारतियों कि स्विस बैंकों में जमा राशी गलत हैं.

सही है, दिग्विजय के सोर्स ज्यादा भरोसेमंद हैं, उन्हें जरूर पता है कि कितना-कितना पैसा जमा है… आखिर पैसा भी तो पिछले 60 सालों में उन्हीं….