Sunday, March 29, 2009

हम क्या कहते हैं, वो क्या सुनते हैं, वो जो सुनते हैं, हम कब कहते हैं

आडवाणी की प्रेस कांफ्रेंस का लाइव टेलेकॉस्ट देख के हटा हूं, अच्छा हुआ की लाइव देख ली वरना इन  पत्रकारों की ताजी बदतमीजी को समझ नहीं पाता. पता नहीं ये किस आटे का पिसा खाते हैं. क्या ये उसी समाज की उपज हैं जहां उन लोगों का जन्म हुआ जो अपने कर्तव्य और देश के लिये बड़ी से बड़ी कुर्बानी दे गये.

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आज आडवाणी ने प्रेस कांफ्रेस बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे के लिये बुलवाई थी मुद्दा था देश का 25 लाख करोड़ रुपया जो कि काला धन बनकर स्विस बैंको में चला गया है.

कुछ समय पहले जर्मन गर्वनमेंट के हाथ उन लोगों की जानकारी लगी जिनका पैसा स्विस बैंकों में जमा है, उन्हें यह भी पता लगा कि किसका कितना पैसा है वहां. तो उन्होंने सारी दुनिया में ऐलान किया कि जो-जो देश हमसे पूछेगा, हम उन्हें बतायेंगे कि वहां पर किस आदमी का कितना-कितना धन इन बैंकों में है.

इस बात को कई महीने हो गये, एक दो अखबारों में खबरें भी छपी (लेकिन सत्ता के गुलाम पत्रकारों को देशहित नहीं दिखता, इसलिये यह खबरें उतनी तक नहीं दिखाई गयी जितना ये लोग बार गर्लों को दिखा देतें हैं). बिरादर, देश का 25 लाख करोड़ रुपया बाहर भेज दिया गया, और यह भी जानिये कि हम महान हिन्दुस्तानीयों को एक और रुतबा हासिल है, सारे देशों में पैसे जमा करने में हमारा नंबर 1 है, मतलब भारतियों का सबसे ज्यादा पैसा जमा है वहां. वाह रे देश की सरकारों, बहुत रुकवाया करप्शन तुमने पिछले 60 सालों में.

जिस समय यह खबर आई उस समय आडवाणी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर जर्मनी से उन हिन्दुस्तानियों के नाम पूछने का सुझाव दिया जिनका पैसा वहां जमा है, तो बिरादर अपने महाशक्तिशाली प्रधानमंत्री तो नहीं, लेकिन वित्त मंत्रालय की तरफ से टालू जवाब आ गया.

तो आडवाणी ने प्रेस कांफ्रेस बुलाई थी इसलिये कि वो कहें कि है बलशाली प्रधानमंत्री मनमोहन जी, आप जी-20 सम्मेलन में जा रहे हैं वहां मिलेंगे आप जर्मनी के चांसलर से भी, तो हे मनमोहन जी वहां इस बात को उठायियेगा, वहां कहियेगा कि बिरादर दे दो हमें उन लोगों की सूची जिन्होंने देश का पैसा बाहर जमा कर रखा है. और यह बात पब्लिक फोरम पर आडवाणी ने इसलिये कही कि पिछले पत्र की तरह यह भी दबा न दी जाये.

पूरी प्रेस कांफ्रेंस में आडवाणी ने बताया की किस तरह इस पैसे का इस्तेमाल देश की बेहतरी के लिये होना चाहिये, और उन्होंने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया, और यह भी कहा कि वो जरूर पूछेंगे जर्मनी से कि बताओ उन लोगों के नाम जिन्होंने देश को चूना लगा लगा कर पैसा स्विस बैंकों में भेज दिया.

एक पत्रकार ने उनसे कहा कि अगर उन लोगों के नाम पता चल गये जिनका इतना पैसा जमा है तो भूचाल आ जायेगा. तो आडवाणी ने उससे कहा कि मैं चाहता हुं कि ऐसा हो, उन लोगों के नाम खुलें जिससे देश का पैसा देश में वापस आ पाये.

उन्होंने इस प्रेस कांफ्रेंस में यह भी बताया कि बीजेपी की सरकार बनने पर वो देश में शिक्षा के लिये काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं, और देश में उच्च कम्प्युटर शिक्षा लाने के लिये प्रतिबद्ध हैं.

लगभग 45 मिनिट चली यह प्रेस कांफ्रेस, और बातें सारी यहीं हुईं, लेकिन अंत होते-होते एक सयाने पत्रकार ने पूछ लिया कि वरुण गांधी पर क्या खयाल हैं, तो आडवाणी ने वही कहा जो वह कहते हैं आ रहे हैं, कि वरुण ने कहा है कि बयान मेरा नहीं है.

और भाई मेरे, इन महान पत्रकारों की जमात ने 45 मिनिट की कांफ्रेंस में से क्या निष्कर्ष निकाला सिर्फ आखिरी पांच मिनट? इन्होंने निकाला

'आडवाणी ने वरुण का बचाव किया'

  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि देश का 285 करोड़ रुपया काला धन बन चुका है
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने मनमोहन से उन लोगों का नाम पूछने को कहा जिनका पैसा है यह
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि इस पैसे को देश में वापस लाना है
  • इन्होंने यह नहीं सुना कि आडवाणी ने कहा कि भूचाल आये तो भी उन लोगों के नाम जगजाहिर होने चाहिये
  • इन्होंने बस वही सुना जिसे सुनने की परमिशन इनके आकाओं ने दी.
  • इन्होंने सुना बस वरुण, देश को यह भूल गये

जिस-जिसने यह प्रेस कांफ्रेस देखी हो, और बाद में इसके बारे में पत्रकारों की कवरेज देखी हो, उसका खून आज खौल उठा होगा.

जय चौथा खंभा...

और बीजेपी, वक्त आ गया है कि तुम भी whitehouse की तरह से Youtube पर अपना चैनल लगाओ और अपने भाषण, वक्तव्य और प्रेस कांफ्रेसों के विडियो वहां डालो. कम से कम देश अगर कोई रेफ्रेंस चाहे, तो वह तो मिले.

Friday, March 27, 2009

क्या आपको 25 करोड़ रुपये चाहिये?

हां, सचमुच. 25 करोड़ रुपये आपकी गिरफ्त में बस आना ही चाहते हैं. आप तो बस सोचना शुरु कर दीजिये की इनका करना क्या है. कौन सा बंगला आप खरीदेंगे, अपनी मर्सिडीज़ कहां रखेंगे, या फिर आपको फैरारी चाहिये? तो अब आप जानना चाहते हैं कि 25 करोड़ के लिये क्या करना होगा? कौन सा क्विज शो दे रहा है यह इनाम?

gunmasterगनमास्टर को मिलेंगे करोड़ों

तो चलिये बता देते हैं. यह है ‘The great Maulana Taukeer sweepstakes’ और इस रकम को आपके देने के लिये बकौल मौलाना तौकीर रजा, हर सच्चा मुसलमान एक-एक रुपया मिलाने वाला है.

आत्मविश्वास से लबरेज मौलाना साहब ने काम दिया है जार्ज बुश का सर लाने का. वो कहते हैं सर लाने वाले को हिन्दुस्तान के सारे मुसलमान पैसे जोड़कर 25 करोड़ रुपया देंगे जो सच्चे मायनों में कोई छोटी रकम नहीं है यहां तक की खासी अमीर अमेरिकी सरकार भी ओसामा बिन लादेन पर सिर्फ 13 करोड़ रुपये (25 मिलियन डालर) का इनाम देने में ही खुद को समर्थ पा सकी.

तो अगर आप मौलाना तौकीर रजा की यह छोटी सी शर्त पूरी कर सकें तो यह मोटी से रकम आप कब्जा सकते हैं. वैसे जार्ज बुश अब अमेरिकी राष्ट्रपति भी नहीं रहे, अब तो सुरक्षा घेरा पहले जैसा नहीं होगा.

अच्छा अगर आप सोच रहे हों कि अगर काम निकाल के मौलाना तौकीर बात से मुकर गये तो? तो बिरादर चिंता न करें. मौलाना सच्चे मुसलमान कहते हैं खुद को जो कौल से नहीं फिरते.

इतने सच्चे हैं यह, और अपने समाज में इतने मशहूर कि इनके मुहल्ले में इनके ईमान की कसमें यहां-वहां छोटी-मोटी बातों पर लोग खाते मिल जायेंगे. इसलिये कांग्रेस (हां जी वही UPA की सबसे मोटी पार्टी) ने इन्हें लोकसभा चुनाव में साथी बना लिया.

क्या आप आश्चर्यचकित हैं? बुश के सर कटवाना गलत लगता है? तो भाई आपको लगे तो लगे, कांग्रेस को कोई शिकायत नहीं. उन्हें हिन्दुओं की सांप्रादायिकता से शिकायत हो तो हो, इस्लामिक सांप्रादायिकता तो वैलकम, वैलस्टे, वैलडन है.

तो जी हाथ कटवाने वाले वरुण गांधी को जेल भेज देते हैं, और गला कटवाने वाले तौकीर मिंया को लोकसभा चैंपियन बना देते हैं. और बिरादर अगर आप इस मुगालते में हो की कांग्रेस वाले जानते ही नहीं थे तो आज शाम को ही सिंघवी भैया बोल रहे थे टीवी पर की ऐसे (मौलाना के) ‘बयानों से हम सहमत नहीं.’ बयानों से सहमत नहीं. मौलाना से सहमत हैं. यह तो सही है. बाइबल में भी लिखा है पाप से नफरत करो, पापी से नहीं. तो कांग्रेस इधर के पापियों को भरपूर प्यार दे रही है.

और अगर आपका 25 करोड़ से दिल न भरे, तो कुछ और इनाम भी हैं जिन्हें आप कब्जा सकते हैं.

Lars Vilks – 100,0000 Dollars (5 करोड़ रुपये) और ये 5 करोड़ और
Ulf Johansson – 50,000 Dollars (2.5 करोड़ रुपये)
Salman Rushdie – Pound 80,0000 and $150000
Taslima Nasrin – 5 Lakh Rs
Ehud Barak, Amos Yadlin, Meir Dagan - $1 Million (5 करोड़ रुपये)
Rod Parsely - $50,000. (2.5 लाख रुपये)

मतलब इस धंधे में तो माल ही माल है. और हां साथ में जन्नत की stay फ्री. जन्नत कहां? वहीं जहां खूबसूरत कुंवारी हूरें मिलती हैं.

Monday, March 23, 2009

जीत सत्य की नहीं होती, जो जीतता है वही सत्य है

कहते हैं कि जीत अंतत: सत्य की होती है -- गलत कहते हैं. यह समाज का idealist विश्लेषण है, realist नहीं. असली जिंदगी में जो जीतता है वही सत्य होता है. पूरी जीत की पहचान ही यही है कि आपके विपक्षी का पक्ष ही न बचे. अगर बच गया तो जीत अधूरी है. विपक्षी सभ्यता को अपने अंदर पूर्ण रूप से आत्मसात कर लें तो फिर आप ही आप बचेंगे, और सत्य कुछ होगा ही नहीं. data चाहे रावण हो या दुर्योधन, जो हार गया उसके साथ क्या सहानूभूति रखना. वो खुदा नहीं हो सकता, खुदा तो होगा जीतने वाला. वो राम होगा, वो कृष्ण होगा. बेशक किसी आत्मग्लानी के पल में हम दुर्योधन और रावण को स्वर्ग भी भेज दें, लेकिन स्वर्ग में बैठकर इतिहास नहीं लिखा जाता. इतिहास लिखा जाता है विजेता होकर. इसलिये मर्यादा पुरुषोत्तम सिर्फ विजेता ही बनता है, और धर्मराज वही होता है जिसके पक्ष में विजेता हों.

असल में जीत सत्य की नहीं, जीत ही सत्य होती है. और जो इसे सत्य नहीं मानते, वो सत्य नहीं जानते.

मध्य एशिया और पुरे युरोप में किसी जमाने में पारसी धर्म, यहूदी धर्म, ईजिप्ट के पुरातन धर्म, सूर्य उपासकों का बोलबाला था, लेकिन उनमें धर्म के प्रति वो उन्माद नहीं था जो नव-क्रिस्तानों और बाद में मुसलमानों में रहा. इसलिये वो धर्म के लिये लड़ नहीं पाये, वो या तो मरे, या खुद इन नव-धर्मों में शामिल हो गये. अब उन पुरातन धर्मों के अवशेष भी नहीं मिलते. सांस्कृतिक इतिहास वहीं से शुरु होता है जहां से ईसा का जन्म हुआ, या जहां मुहम्मद आये. उससे पहले सिर्फ लड़ाइयों की कहानी है, कल्चर नदारद है. विजेता यही करता है. पराजित की संस्कृति का लोप.

जीतने वाले सत्य के दम पर हिटलर की क्रूरता का भान सभी को है, लेकिन लगभग उतनी ही मौतों के जिम्मेदार एलीज़ हीरो बन जाते हैं. जो जीत जाते हैं सत्य उनका गुलाम हो जाता है. इसलिये ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर चर्चिल सुपरमैन की तरह याद किये जाते हैं.

वर्तमान इतिहास की ही प्रतिबिम्ब है, और इस प्रतिबिम्ब में हम क्या देखते हैं, क्या समझते हैं इसी के दम पर भविष्य का निर्माण होता है. सत्य को जीत मान लेना बहुत आसान है, लेकिन इस गफलत में पढ़कर हम सत्य को नहीं जीत को बढ़ावा दे रहे हैं. हम यही कह रहे हैं कि चाहे तुम जो हो, अगर तुम जीत गये तो हम तुम्हें स्वीकार कर लेंगे. तो तुम बन जाओगे हमारे लिये खुदा, या खुदा समान.

जो शक्तिशाली और किस्मतवाला होगा, जीत उसकी होगी. लेकिन वो सही भी हो यह जरूरी नहीं. हमारे इतिहास में विजेताओं की फेरहिस्त बहुत लम्बी है, अगर कुछ विजेता इधर के उधर हो जायें को कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा, बस हमारे कुछ नायक बदल जायेंगे.

अगर भविष्य को बेहतर बनाने की चाहत है तो इतिहास को वैसा ही स्वीकार करना होगा जैसा वो सचमुच है. पराक्रम को सत्य से जोड़न एक असभ्य समाज की निशानी है जिसमें अब भी इतनी परिपक्वता नहीं की सत्य को उसकी ही योग्यता पर स्वीकार्यता दे सके और उसमें जीत के सहारे को जोड़ने के लिये बाध्य न हो.

Saturday, March 21, 2009

क्योंकि प्रभू ईसा को मानने वाले हत्या कर ही नहीं सकते

यीशू ने अपना खून बहाकर सबको बचाया. उन सबको जो उनपर विश्वास करते हैं, जो कहते हैं कि हे मेरे आसमानी बाप तूने अपना बेटा भेजा कि वो हम पापियों को बचा सके. लेकिन यीशू के अनुयायी हमें बताते हैं कि बचाया सिर्फ उन्हीं पापीयों को है जिन्हें यीशू के बचाने पर यकीन है. बाकी पापी सड़ेंगे अनंत नर्क की आग में.

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सही है, दयावान यीशू ने हमें बचाया, और सिखाया कि हिंसा मत करो, दया करो, प्रेम करो, अपने दुश्मन से भी प्रेम करो.

तो यीशू के अनुयायियों ने यह सीख लिया. इसलिये उन्होंने कभी किसी की हत्या नहीं की (वैसे करते भी तो भी चलता क्योंकि प्रभु यीशू ने पहले ही सारे पाप माफ कर रखे हैं).

- न तो उन्होंने अफ्रीका में लाखों लोगों को गुलाम बनाने के लिये और कई लाखों का कत्ल किया,
- न उन्होंने मेक्सिको और पूरे साउथ अफ्रीका में फैले आज्टेक और माया प्रजाती के लोगों की हत्या सिर्फ इसलिये की क्योंकि उन्होंने ईसा पर विश्वास नहीं किया,
- उन्होंने लाखों मूल अमेरिकियों की भी हत्या नहीं की, और उनके मूल धर्म का समूल विनाश भी नहीं किया.
- उन्होंने मध्य एशिया के मुसलमानों के खिलाफ 'क्रूसेड' (धर्मयुद्ध/जेहाद) भी नहीं किया, और उसमें करोड़ों लोगों को मारा नहीं.
- आज भी कोई इसाई समुदाय धर्म के लिये कहीं कोई हत्या या हिंसा नहीं करता

इसलिए जब ओड़िसा की सरकार कहती है कि प्रभात पाणीग्रही की हत्या में इसाईयों का हाथ नहीं था तो दिल बिना किसी दिक्कत के स्वीकार कर लेता. इतने उज्ज्वल अतीत और उससे भी ज्यादा उज्ज्वल वर्तमान वाला यह धार्मिक समुदाय हत्या कर ही नहीं सकता.

इसलिये न तो लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या में इसाई हाथ था, और न इसी हफ्ते हुई संघ के प्रभात पाणीग्रही की हत्या में इनका हाथ होने की कोई संभावना है (इसलिये पुलिस से आशा भी मत करिये इस दिशा में जांच की, क्योंकि जब ऐसा हो ही नहीं सकता तो पुलिस वाले क्यों अपना समय वहां बरबाद करें). तो जांच हो रही है और कातिल भी इसाई धर्म से इतर कहीं न कहीं मिल जायेंगे.

लेकिन शायद हिन्दुओं को ईसा संदेश नहीं पहुंचा है. इसलिये यह बर्बर हिन्दू उतारू हैं इसाईयों की हत्या पर. इसाई कुछ नहीं करते, लेकिन फिर भी पगलाये हिन्दू उन्हें सता रहे हैं.

यकीनन इतनी बर्बरता असहनीय है और बीजद के नवीन पटनायक भी यह सह नहीं पाये. क्योंकि ये सारे बर्बर हिन्दू बीजेपी की पैदाइश हैं इसलिये बीजद ने बीजेपी से छुटकारा पाना बेहतर समझा. अब उन बेचारे इसाईयों को वह यह संदेश दे सकते हैं कि भाई तुम्हारे हिन्दुओं की हत्या न करने में हमारा पूरा सहयोग रहेगा.

वैसे यह भी बता दूं कि निरीह इसाई विरोध की यह अजब-गजब बीमारी ओड़िसा के हिन्दुओं को कैसे लगी. असल में हिन्दुओं में जो दो-चार इन्सान हैं वो कूद-कूद कर, बच-बचाकर, किसी भी तरह, किसी भी कीमत पर इसाई बनना चाहते हैं, और हिन्दू उन्हें बनने नहीं दे रहे हैं.

घोर अधर्म है यह. न तो इसाई किसी तरह का प्रलोभन दे रहे हैं, न वो कुप्रचार का सहारा ले रहे हैं, न वो झूठे चमत्कार और नकली 'चंगाई' फैला रहे हैं, न वो पैसा बांट रहे हैं, न वो भोले आदिवासियों को बरगला रहे हैं, फिर भी पागल हिन्दू उनके खिलाफ चिल्ला रहे हैं.

वैसे ज्यादातर लोगों को शायद प्रभात पाणीग्रही की हत्या के बारे में पता भी न हो. प्रभात पाणीग्रही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता थे जिन्हें दो दिन पहले 20 लोगों ने आ कर गोली मार दी वो लोग जो जो यकीनन इसाई नहीं थे.

अखबारों में बहुत पढ़ा होगा कि कंधमाल में इसाइयों को गांव में घुसने नहीं दे रहे, यह नहीं करने दे रहे, वह नहीं करने दे रहे. फीचर पर फीचर छपते हैं. लेकिन प्रभात पाणीग्रही की हत्या की बात किसी बड़े अखबार ने उस तरह नहीं उठाई जिस तरह वह एक निरीह इसाई के गांव बदर होने की बात करते हैं.

जाते-जाते कुछ लिंक दे चलूं, कि आप खबर तो जानें

और भी जाते-जाते एक खबर और – पोप ने कहा की अंगोला के लोग अपना धर्म छोड़ कर इसाई बनें

Tuesday, March 3, 2009

फरिश्ते सारे पाकिस्तानी होते हैं

पाकिस्तान में 10-12 आतंकवादी 15 मिनट तक गोलाबारी कर गये, चार-छ: पुलिस वाले मार गये, 6 बेचारे क्रिकेट खिलाड़ी भी घायल हो गये. कुल मिलाकर मुम्बई जितना घमासान तो नहीं किया, लेकिन खबर बड़ी बना गये. 

दिमाग में उथल-पुथल चल रही है. समझिये डेविल और ऐंजल में जंग है. कंधे के एक तरफ शैतान बैठा है, और दूसरे कंधे पर फरिश्ता. बातचीत कुछ इस तरह चल रही है.

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शैतान: ओये! बल्ले! क्या सही मारा. पाकिस्तान कि बज गई... ओये वाह!!
फरिश्ता: बंधु, इस तरह खुशी मनाना ठीक नहीं. याद रखिये, वहां भी निर्दोष इन्सान की मौत हुई है.
शैतान: ओये चुप्प खोत्ते! इन्होंने ने अपने मुम्बई में आग लगाई थी, अब रोते फिरेंगे.
फरिश्ता: भाई, इस मुश्किल वक्त में अपना फर्ज बनता है कि आतंकवाद के शिकार लोगों के लिये प्रार्थना करें.
शैतान: काहे का आतंकवाद बे? सब पाकिस्तानवाद है. इस मुल्क ने पूरी दुनिया में तबाही फैला रखी है. सारे आतंकवादी यही पैदा कर-करके, कर-करके दुनिया भर में भेज रहा है.
फरिश्ता: नहीं भाई. पाकिस्तान भी आतंकवाद का शिकार है.
शैतान: जब दूसरों का घर जलाने के लिये बम बनायेंगे तो अपने घर में चिंगारी भी दिख जाए तो तबाही के लिये तैयार रहना चाहिये.
फरिश्ता: लेकिन मरने वालों के बारे में तो सोचिये.
शैतान: सोच रहा हूं न. बेचारे श्रीलंकी पिस गये.
फरिश्ता: और जो पाकिस्तानी नागरिक मरे.
शैतान: चल तू सेंटी मत कर यार. मैं तो सोच रहा हूं कि पाकिस्तान को अब आतंकवाद का क्या मजा आया, तू मेरे माइंड का ट्रेक मत चैंज कर.
फरिश्ता: मतलब आपको वहां मरने वाले निर्दोष नागरिकों के लिए कोई रंज नहीं.
शैतान: यार, तेरेको बोला न कि अभी बहुत दिनों बाद दुश्मन मुश्किल में पड़ा है, खुश हो लेने दे!
फरिश्ता: भाई, मैं तो बस समझना चाह रहा हूं कि आप किसकी मौत पर खुश हो रहे हैं.
शैतान: शर्म कर ओये, तू कहना क्या चाहता है? तू भूल गया कि पाकिस्तानियों ने मुम्बई पर हमला करवाया था!
फरिश्ता: बंधू, जो पाकिस्तान में मरे हें, वो उस हमले में शामिल तो नहीं थे. उन्हें भी आतंकवादियों ने मारा.
शैतान: उन्होंने आतंकवादी बनाये, अब मजा ले रहे हैं बेट्टे!
फरिश्ता: तो आप समझते हैं कि अगर पाकिस्तानी निर्दोष मरें तो सही है?
शैतान: ओये स्याप्पे! तू चाहता क्या है? जिन्होंने अपने देश पर हमला कराया उनके लिये मैं रोऊं?
फरिश्ता: हमला तो आतंकियों ने किया, और वो पाकिस्तान को भी उसी तरह शिकार बना रहे हैं, जिस तरह हमें.
शेतान: चल ओये! तू फुट यहां से... तू पाकिस्तान परस्त, देशद्रोही, मक्कार, तू रो जाकर पाकिस्तान.
फरिश्ता: ...

कहते हैं कि दूसरों के मुश्किल वक्त पर खुश नहीं होना चाहिये. यकीन मानिये, मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं.

दिक्कत यह है कि दिल मुम्बई हमलों और कितनी ही आतंकवादी घटनाओं के लिये पाकिस्तान और उसकी चुनी (और बिना चुनी) सरकारों को जिम्मेदार मानता है. इसलिये बड़ी vindictive feeling से मुकाबला चल रहा है.

पहली इनिंग में तो शैतान जीत रहा है, लेकिन पूरा विश्वास है कि अंत में जीत फरिश्ते की ही होगी (जैसा की कहते हैं कि होती है), और में पाकिस्तान में होने वाली हर आतंकवादी घटना का पूरी तरह मलाल कर पाऊंगा.