आजकल गलती से कोई न्यूज़ चैनल खुल जाये तो कोई न कोई कांग्रेसी दिख जाता है एनडीए के पांच साला शासन को याद करते हुये. चाहे वो कपिल सिब्बल हो, दिग्विजय, राहुल, सोनिया, मनमोहन, या कोई और, सब एनडीए की यादों में खोये हुये हैं, ऐसा लगता है कि पिछले 5 सालों में भी शासन भाजपा का ही रहा है.
Debating एक कला है और उसमें कांग्रेस ने जो तरीका अपनाया है उसे कहते हैं ‘Tu Quoque’ (you too) इसका मतलब है कि हम तो चोर हैं सनम, तू भी चोर ही है. मतलब अगर सोनिया गांधी एनडीए के राज में हुये विस्फोटों का हवाला दें तो वो इस argument के जरिये कांग्रेस के शासन काल में हुये विस्फोटों को justify कर रही हैं.
लेकिन एक बात याद रखिये, गलती चाहे कोई भी करे, कितनी भी बार की जाये, गलती तो गलती है. इसलिये कांग्रेस की यह दलील कि तुम भी चोर ही हो सिर्फ वाद-विवाद प्रतियोगिता में ही अंक दिला सकती है. मतलब कांग्रेस के शासन में हुये मुम्बई, दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलुरु, आसाम, में हुई घटनाओं के लिये यह सफाई काफी नहीं.
1. हर incompetence, हर असफलता, हर बेईमानी का जवाब यह नहीं कि उनके शासन काल में भी ऐसा हुआ था. अगर ऐसा था कांग्रेस, तो हम उन्हें ही क्यों न चुनें? आपको क्यों चुनें?
वैसे एनडिए के शासनकाल इतना सफल रहा कि जब उसका अंत आया तो india shining था, और आज जब कांग्रेस के यूपीए के शासनकाल का अंत हो रहा है तो india whining हो रहा है. इसकी जिम्मेदारी भाजपा नहीं कांग्रेस के सर ही है.
और अब बात करें मुख्य मुद्दे की, बात करें कंधार की. कांग्रेस ने कंधार के नाम पर एक ऐसा दाग लगाया है भाजपा पर जिसका जवाब मुश्किल ही देते बनता है. लेकिन मैं कहता हूं कि कंधार का सबक एनडीए को मिला जरूर, लेकिन उसके पीछे का कारण भाजपा की कमजोरी नहीं शासन की तुरत-फुरत कार्य करने की क्षमता की विफलता थी. यह एक ऐसी शासन प्रणाली की देन थी जिसे भाजपा को विरासत में दिया गया था, और जो घटनाक्रम उस समय बना, उसमें शायद दूसरा फैसला कर पाने की शक्ती भाजपा में ही नहीं, देश में भी नहीं थी.
में उस घटनाक्रम की तुलना करूंगा black September से, जिसके बाद इज़राइल की नीतियों में बहुत बड़ा बदलाव आया. उस घटना में इज़राइल के 11 खिलाड़ी जर्मनी के ओलम्पिक खेलों में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा अपहृत कर लिये (PLO द्वारा) और उनकी मांगे एक नहीं इज़राइल की जेलों में सड़ रहे सभी आतंकवादियों को छोड़ने की थी.
उस मामले पर बात चालू थी, और कहते हैं कि इज़राइल की सरकार कुछ लोगों को छोड़ने के लिये तैयार भी हो गई थी (सभी को नहीं), म्युनिख के हवाई अड्डे पर उन्हें हैलिकाप्टर भी दिया गया, लेकिन जर्मन सेना की जल्दबाजी से सारे खिलाड़ी मारे गये. उस समय इज़राइली प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को बहुत criticism का सामना करना पड़ा और उन्हें ऐसा कसाई भी कहा गया जिसने उन खिलाड़ियों को मरने छोड़ दिया. आज जरुर उन आतंकवादियों को न छोड़ने पर गर्व किया जाता है.
कंधार के घटनाक्रम में 11 नहीं, 110 नहीं 200 से ज्यादा लोग उन आतंकवादियों के कब्जे में थे. कौन भूल सकता है उन लोगों के बिलखते हुये परिजनों को जिन्हें हिन्दुस्तानी टीवी चैनल लागातार दिखा रहे थे. एक शो में मैंने एक फैशन डिज़ाइनर को रो-रोकर अपने दोस्त/भाई/कुछ और को छुड़वाने के लिये कहते सुना, शब्द कुछ ऐसे याद पड़ते हैं “कुछ भी करो, मान लो उनकी बातें.. बचा लो… बू हू… बचा लो”
सेना के एक शहीद की बेवा ने जब कहा कि आतंकवादियों को नहीं छोड़ना चाहिये तो उसे डपटकर चुप करा दिया गया. मतलब उस समय पूरा देश सहानूभूती से लबरेज था. देश की सरकार पर बहुत जबर्दस्त दबाव था उन लोगों को बचाने का, प्रेस की मुहिम भी यही थी.
उधर जहाज हमारे बुर्जुआ हो चुके सुरक्षा तंत्र के अव्यवस्था के चलते कंधार पहुंच चुका था. तालिबान के इस्लामिक आतंकवादियों के बीच, उनके हवाई अड्डे पर. वो न हमें कोई बात करने देने को तैयार थे, न कोई सैनिक आपरेशन चलाने देने के. असल में वो उन आतंकवादियों के ही साथी थे. कोई और देश होता, तो वो नहीं होता जो हुआ.
उस समय को याद कीजिये, उस समय में खुद अपनी अनुभूतियों को याद कीजिये, और याद कीजिये उस दर्द को सबने महसूस किया. उस समय की सबसे बड़ी priority आतंकवादी या आतंकवाद से मुकाबला नहीं उन 200 लोगों को बचाने की बन चुकी थी. और इसलिये कंधार हुआ.
क्या आप सोचते हैं कि भाजपा ने जो किया उस घटनाक्रम में कांग्रेस कुछ अलग कर पाती?
लेकिन अब बात करते हैं उसकी जो नहीं हुआ, जो भाजपा ने भी नहीं किया और कांग्रेस ने भी नहीं. बात करते हैं black September के बाद हुये उस घटनाक्रम की जिसने सारे इस्लामिक आतंकवादियों के दिल दहला दिये.
इज़रायल की सुरक्षा एजेंसी मौसाद ने 16 लोगों के बारे में पता लगाया जो काले सितंबर के जनक थे और उनमें से 11 को कार्यवाही में मारा.
- क्यों जीवित है अब तक हिन्दुस्तान के दुश्मन?
- रॉ जिसके नाम से सारा पाकिस्तान कांपता है क्यों दाउद इब्राहिम को देश में नहीं ला पाई, या विदेश में ही खत्म नहीं कर पाई.
- जिन्होंने कंधार आदी को अंजाम दिया, उन्हें हम क्यों सजा नहीं दे पाये.
मैं मानता हूं कि भाजपा और कांग्रेस की विफलता भी यही है… जो कंधार के बाद हुआ. कंधार विफलता नहीं विवशता थी.
क्या हम अपेक्षा करें की अगली चुनी हुई सरकार देश के दुश्मनों की दुश्मन बनकर दिखायेगी?