भोपाल की टीस फैसले के बाद उभर चुकी है. मुनाफे के वहशी भेड़ियों के द्वारा किया गया वह कत्ले-आम बाहर वालों के लिये सिर्फ चंद तस्वीरें बन कर रह गया है लेकिन भोपाल वालों के सीने में अब भी धधक रहा है.
20,000 लोगों की मौत पर मारा गया $470 मिलियन का तमाचा, आज़ाद घूमते वो बड़े पद वाले जिन्होंने भोपाल में हर नियम की धज्जियां उड़ाईं और सस्ते में छूट चुके छोटे अफसर भारत के शर्मनाक हद तक गिर चुकी न्याय व्यवस्था की कहानी बयां कर रही हैं.
भारत कभी उस दर्दनाक हादसे को भूले न भूले आपके सरकारी हुक्मरान उसे दफना चुके हैं और इसलिये वह तैयारी कर रहे हैं भोपाल से भी बड़े हादसे की. बात हो रही है भारत-अमेरिका के बीच होने वाले न्युक्लियर करार की जो आपके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आंखों का वो सपना है जिसे पूरा करने के लिये वो कुर्सी गंवाने की हद तक जाने को तैयार थे.
भूलियेगा नहीं किस तरह आपके ही एक साथी ब्लागर अमर सिंह ने सांसदो को पैसे देकर मनमोहन की सरकार बचवाई (ऐसा IBN पर देखा था).
आपको इस न्युक्लियर करार के बारे में पता है? यह वह करार है जो भारत को विश्व शक्ति का दर्जा दिलवा सकता है. वह करार जो भारत को एकलौता ऐसा देश बनायेगा जो संयुक्त राष्ट्र का परमानेन्ट सदस्य न होकर भी मुक्त रूप से परमाणू ऊर्जा के व्यापार में हिस्सा ले सकेगा.
जिसके बाद आयेंगी अमेरिकी परमाणू कम्पनियां भारत में और पैसे लेकर लगायेंगी वह संयंत्र जिसमें परमाणू ऊर्जा से बिजली बन पाये.
लेकिन यह करार सिर्फ पैसे के बदले मिलता तो कीमत छौटी थी. इसकी कीमत हम बहुत बड़ी चुकानी को तैयार हैं. इसकी कीमत हम देने को तैयार है लांखों जानों से. जो इस करार को करने के लिये भोपाल को भुला चुके हैं वो चेर्नोबिल याद कर लें. वहां भी था एक परमाणू संयंत्र जहां पर हुई दुर्घटना के प्रभाव से 100,000 (एक लाख) से ज्यादा जानें कैन्सर से गईं और 10,000,000 (दस लाख) से ज्यादा लोग कैंसर ग्रस्त हुये. यह कह रही है ग्रीनपीस की ताज़ा रपट.
कामन सेन्स कहता है कि किसी भी दुर्घटना को रोकना हो तो ऐसे कठोर नियम बनाने चाहिए जिसमें गलती की कोई जगह न हो. और उन नियमों का पालन न करने वालों को सख्त से सख्त सज़ा देनी चाहिये ताकी कोई कोताही न करे... लेकिन भारत की कांग्रेस सरकार ने कह दिया है कि आप इस देश में आयेंगे तो आपको हम पूरा लाइसेंस देंगे देश में लाखों जानों से खेलने का और अगर आपने दुर्घटना कर दी तो आपको हम पूरी मदद करेंगे बिना किसी जवाबदारी के साफ बच कर जाने को.
भोपाल के नरसंहार के बाद हमारी सरकारी मशीनरी तुरत-फुरत हरकत में आयी... काबिले-तारीफ थी वह तेज़ी, लेकिन तेज़ी थी क्योंकि यूनियन कार्बाइड के दोषियों को बचाना था. इसलिये कानून ताक पर रखे गये, नियम भुलाये गये और ऊपर-ऊपर और ऊपर से आदेश आते रहे दोषियों को बचाने के लिये.
लेकिन इस बार सरकार ने और भी तेज़ी दिखाई है. दोषियों को बचाने के लिये दुर्घटना होने का इंतज़ार तक नहीं किया... पहले ही सर्टिफिकेट दे दिया कि आप चाहें जितनों को मारें हम आपका पीछा नहीं करेंगे. फिर हम मांग लेंगे आपसे चिड़ियों का चुग्गा और डाल देंगे अपनी भिखारी जनता के सामने. और फिर आपको पूरा मौका देंगे निकल जाने का. यही हिस्सा है उस करार का जो भारत सरकार अमेरिका के साथ कर रही है.
युनियन कार्बाइड के 470 मिलिअन तो उसने खुद भी नहीं चुकाये, यह तो उसके इंश्योरेंस की रकम ही थी. इस बार भी अगर कोई न्युक्लियर दुर्घटना होती है तो मिल जायेगी आपको 460 मिलियन डालरों की भीख क्योंकि यही सबसे बड़ी वह कीमत है जो अमेरिकी कंपनियां चुकाने को बाध्य होंगी अगर कोई दुर्घटना घटी! और यह कीमत तय की है आपकी सरकार ने. अभी-अभी आपकी सरकार ने आपके देश वालों की जान की कीमत 10 मिलियन डालर घटा दी.
आपको कैसा लग रहा है मुद्रास्फीती के इस गिराव पर?
अमेरिकी जानें इस से कई गुना महंगी हैं वहां पर अगर कोई न्युक्लियर दुर्घटना होती है तो कंपनियां देंगी 10 बिलियन डालर तक. मतलब हर अमेरिकी आपके जैसे 20 के बराबर है. अब तो आपको अपने देशवालों की औकात का सही अंदाज़ा भी हो गया होगा.
वही अमेरिका जो अपने देश की कंपनियो के लिये इतना सस्ता सौदा तलाश रहा है अपने देश में होने वाले तेल के रिसाव पर एक ब्रिटिश तेल कंपनी (BP) पर 10 बिलियन डालरों का जुरमाना ठोकने की तैयारी कर रहा है जिससे वह कंपनी तबाह और बरबाद हो जायेगी.
भारत, क्यों न यह सौदा ऐसे देशों से हों जो दूसरों की जान की कीमत भी समझें? रूस बढ़ा हुआ मुआवज़ा देने को तैयार है. और जर्मनी में तो मुआवज़े की कोई सीमा ही नहीं निर्धारित की जा सकती. तो क्यों इस देश के US रिटर्न प्रधानमंत्री बेताब हैं अपने देशवासियों की जानों का इतना सस्ता सौदा करने के लिये?