उत्तर प्रदेश की राजनीति बेमिसाल है. इसलिये नहीं कि यहां के नेता या जनता कोई बहुत अच्छा काम कर रही है, बल्कि इसलिये कि घटिया नेतृत्व और जातिभक्त जनता इतनी बेदर्दी से प्रदेश को खसोट रही है कि इसकी मिसाल नहीं मिलेगी.
यहां वोट चलता है बनिया, ब्राहम्ण, दलित, लोध, ठाकुर, यादव, मुसलमान का, इनकी जाती का कोई जानवर भी अगर चुनाव में खड़ा हो जाता है तो आंख बंद कर बटन दबा देते हैं. इसलिये यहां इमानदार की कोई कीमत नहीं. कीमत है ऐसे भेड़िये की जो अपने चारों और गिरोह खड़ा कर सके. खुद एक जाती से हो और दूसरी जाती के एकाध का समर्थन हासिल कर लो तो चुनाव जीता ही जीता.
इसलिये इस प्रदेश में जातिवाले गुन्डों और माफिया कि बन आई है. मुख्तार अंसारी, अफजल जैसे माफिया... गुड्डू पन्डित जैसे बालात्कारी और डीपी यादव जैसे बदमाशों निर्बाध रूप से यहां चुनकर आते हैं. और ये लोग जब सभायें करते हैं तो भीड़ की भीड़ जुटती है.
इन्हें टिकट कौन देता है? वही पार्टियां जो गरीबों की आवाज उठाने का दम भरती हैं. समाजवादी पार्टी के राज में गुन्डो की तूती बोलती थी... क्या होता होगा इससे ही सोच लीजिये कि निठारी भी समाजवादी पार्टी के बड़े भैया को छोटी-मोटी घटना लगी थी.
गुन्डाराज से परेशान जनता को मायावती ने छलावा दिया - “चढ गुन्डन की छाती पर, मोहर लगाना हाथी पर.” बेवकूफ लोगों ने विश्वास कर लिया, और हाथी का बटन दबा दिया. मायावती ने शुरुआत में गुन्डों से मुकाबले की तत्परता का जो परिचय दिया अब वो बीते दिनों की बात है. सारे गुन्डे दल बदल कर अब मायावती के साथ हैं और वहां से बहन जी का भरपूर लाड़ पा रहें है. मुख्तार अंसारी पर बसपा के राजू पाल और भाजपा के कृष्णानंद राय के कत्ल का इलजाम है, मायावती ने एक वक्त पर उसे सबक सिखाने की कसम खाई थी, लेकिन आज उसे गरीबों का मसीहा कहती हैं.
असल में इस खेल में कोई भी पार्टी साफ दामन वाली नहीं रही. एक वक्त पर तो इस समय भारत के प्रधानमंत्री पद के सर्वश्रेष्ट उम्मीदवार आडवाणी भी डी पी यादव जैसे माफिया को पार्टी में लाने को तत्पर दिखे थे. शुक्र है कि लोगों के दबाव के चलते यह नहीं हुआ.
मतलब बात यह है कि सत्ता की चाभी उत्तर प्रदेश में अब नेताओं के हाथ से निकल कर गुन्डों के हाथ में जा पहुंची है. या तो इनके समर्थित उम्मीदवार चुन कर आते हैं, या फिर यह खुद ही चुनाव में खड़े होकर चुन लिये जाते हैं.
और इसके लिये जिम्मेदार और कुछ नहीं यहां कि वो घटिया जनता है जो जाति, या किसी भी और वास्ते पर (जिसमें देश कहीं नहीं आता) बार-बार इन्हें वोट दे रही है.
ऐसा नहीं हैं कि इमानदार उम्मीदवार नहीं हैं. हर चुनाव में निर्दलीय खड़े होते हैं. कई अच्छे लोग भी होते हैं. लेकिन जाति के सरमायों के द्वारा समर्थित नहीं होते.
भविष्य अंधेरा दिखता हैं क्योंकि गुन्डे पंजे से हाथ मिलाकर, कमल की खुशबू सूंघते हुए साइकल पर सवार होकर हाथी पर चढ़ चुके हैं.
इस समय एक नये आंदोलन की जरुरत है, एक नये भविष्य की.. किसी ऐसे संघटन की जो अपराधियों से नहीं जनता से वास्ता रखे.
और उत्तर प्रदेश की जनता के लिये एक संदेश है. अगर अब भी जाति के नाम पर वोट देना जारी रखोगे तो पहले नेताओं वाला एक-एक जूता खुद को लगाओ फिर वोट देने जाओ.
इस समय एक नये आंदोलन की जरुरत है, एक नये भविष्य की.. किसी ऐसे संघटन की जो अपराधियों से नहीं जनता से वास्ता रखे... बिल्कुल सही कहना है आपका ... पर पहल कौन करे ... इसबार भी कुछ नहीं हुआ ... अब पांच वर्ष बाद का ही इंतजार करना होगा जनता को।
ReplyDeleteमित्र आप एक साथ दो तरह की बात कर रहे हैं
ReplyDeleteएक तरफ आप कह रहे हैं-
" और इसके लिये जिम्मेदार और कुछ नहीं यहां कि वो घटिया जनता है जो जाति, या किसी भी और वास्ते पर (जिसमें देश कहीं नहीं आता) बार-बार इन्हें वोट दे रही है".
फिर आप कह रहे हैं-
"इस समय एक नये आंदोलन की जरुरत है, एक नये भविष्य की.. किसी ऐसे संघटन की जो अपराधियों से नहीं जनता से वास्ता रखे."
फिर तो उसी घटिया जलता को पहले बदलना होगा। क्यों कि घटिया जनता के बल पर कोई बदलाव नहीं हो सकता।
मित्र, जनता के घटियापन को दूर करने के लिये ही आन्दोलन की जरुरत है. मैंने यह नहीं कहा कि जनता आंदोलन करेगी. लेकिन सचमुच कभी-कभी एक ही शक्तिशाली व्यक्ति पूरी भीड़ के घटियापन को दूर कर सकता है.
ReplyDeleteअपने देश के उदाहरण नहीं दूंगा क्योंकि इससे कुछ और भी लोग आहत हो जायेंगे (जैसे आप हुए उ.प्र. के बारे में सुनकर).
लेकिन दूसरे देशों से...
जैसे मार्टिन लूथर किंग ने कालें लोगों को दबे-कुचले जीने की बजाय स्वाभिमान सिखाया
जैसे लिंकन ने अपने देश के ही दक्षिण में रहने वाले घटिया लोगों की यह बात नहीं मानी कि काले लोगों को गुलाम बनाये रखा जाये, चाहे इसके लिये उन्हें युद्ध झेलना पड़ा.
इसलिये मित्र आशा जनता से नहीं, ऐसे ही एक सोशल क्रांतिकारी से है जो शायद इस घटियेपन से आजिज आ चुका होगा अब तक. क्योंकि अब मानव-धर्म की हानी की पराकाष्ठा है, इसलिये आशा है कि किसी ऐसे लूथर किंग का यहां भी अवतरण हो जो इन्हें वह भुलाये जिसे मैंने घटिया कहा.
सचमुच कठोर शब्द इस्तेमाल किये मैंने, लेकिन जो अपराध उ.प्र. में हो रहा है उसके लिये कठोर शब्द इस्तेमाल करने से चूकना उस अपराध को कमतर करके पेश करना है.