Wednesday, June 2, 2010

शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार नहीं चाहती की आपका बिजली का बिल घटे – DERC को कीमतें घटाने से रोका

सबसे पहले एक पहेली – पिछले साल दिल्ली की दो निजी बिजली कंपनियों ने कितना मुनाफा कमाया? पहली ने करीब 450 करोड़ रुपये, और दूसरे ने करीब 468 करोड़ रुपये. लेकिन दिल्ली सरकार को लगता है की निजी कंपनियां का मुनाफा बढ़ना चाहिये आम आदमी की कीमत पर इसलिये अप्रेल में उन्होंने बिजली की कीमतें बढ़ाने के लिये पूरी तैयारी कर ली थी. यहां तक की दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने बयान भी दिया था कि दिल्ली वालों को बढ़ी हुई बिजली की दरों के लिये तैयार रहना चाहिये
जबकी दिल्ली में बिजली की कीमतों का निर्धारण दिल्ली सरकार का मामला ही नहीं है. यह का है DERC का जो की दिल्ली सरकार के आधीन नहीं है.
तो फिर क्या बात है कि शीला दीक्षित बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिये इतनी मेहनत कर रही हैं
DERC ने पिछले साल बिजली की दरें बढ़ने से रोकीं और इस साल वह दरें घटाना चाहती है और शीला दीक्षित बढाना, जब दिल्ली सरकार का DERC के कामकाज में दखल बढ़ा तो खुद सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम को आगे आकर बयान देना पड़ा और दिल्ली सरकार को उसके काम में दखल देने से रोका.
अभी अभी DERC ने कहा है कि बिजली कंपनियों के मुनाफे को देखते हुये कोई कारण नहीं है कि दरें ऐसे ही बढ़ीं रहें इसलिये उन्होंने दरों को 20% तक कम करने की वकालत की है़. लेकिन दिल्ली सरकार ने फिर बयान दे दिया कि दरें नहीं घटनी चाहिये क्योंकि डिश्ट्रिब्युशन कंपनियों को नुक्सान न हो वरना वो DERC को नयी दरें लागू करने की इजाजत नहीं देगी!

DERC ने तो इस बारे में तीनों निजी कंपनियों को पत्र भेज दिया है कि दरे कम करिये लेकिन मई 4 को दिल्ली सरकार ने अपने बनाये गये कानून Delhi Electricity Act का सहारा लेते हुये नई दरों पर रोक लगा दी. DERC का कहना है कि यह रोक गलत है क्योंकि अगर यही दरें रहीं तो इस साल के अंत तक दिल्ली की पावर कंपनियों के पास कुल 4000 करोड़ का सरप्लस आ जायेगा जो की बहुत ज्यादा है!
कैसी है यह दिल्ली सरकार?
आपने वोट दिया थ इसको?

  1. यह है निजी कंपनियों के साथ जिन्होंने पिछले साल 900 करोड़ का मुनाफा कमाकर भी अपना पेट नहीं भरा.
  2. यह रोकता है एक इमानदार संस्था को लोगों के लिये काम करने से.
  3. इसका मुख्यमंत्री बयान देता है कि दिल्ली के लोगों को बिजली के लिये ज्यादा पैसे देने को तैयार रहना चाहिये.
  4. यह बनाती है एक ऐसा एक्ट जिसके जरिये यह DERC को बिजली की दरें घटाने रोक सके.
  5. यह देती है बयान कि DERC का बिजली कंपनी के हितों के विरुद्ध काम करना ठीक नहीं.
क्या हैं वो हित… जानिये --
  • 2004-2005 में NDPL नाम की बिजली कंपनी का मुनाफा था 169.60 करोड़. 2009-2010 में यह बढ़ कर 468.82 करोड़ हो गया. फिर भी दिल्ली सरकार ने इनकी गुहार मानी कि इनका मुनाफा कम है.
  • BSES Yamuna Power का मुनाफा 2007-2008 में 16.89 करोड़ से बढ़कर 2009-2010 में 157.33 करोड़ हो गया. फिर भी दिल्ली सरकार चाहती है कि इन्हें और पैसा मिले.
  • दिल्ली की तीनों बिजली कंपनियों ने अपनी आडिटेड फाइनेन्शियल रिपोर्ट में 2010 में रिकार्ड मुनाफा (अब तक सबसे ज्यादा) दर्ज किया.

दिल्ली की सरकार की मंशा क्या है?
उसकी जिम्मेदारी किसके प्रति है?
क्या दिल्ली सरकार, इसके पदाधिकारी भी ए.राजा की राह पर चल निकले हैं कि देश और जनता की कीमत पर निजी व्यवसायों को करोड़ों का फायदा पहुंचाना है?

बड़ी बात यह है कि DERC के इमानदार अफसरों  में बहुतों का कार्यकाल जल्द ही खतम होने वाला है. अगले साल बृजेन्द्र सिंह DERC के चैयरमैन अपने पद से रिटायर हो जायेंगे और दिल्ली सरकार इस फिराक में है कि इसके पदों पर उन लोगों को लाया जाये जो इसके हिसाब से चलें और जो वह चाहे होने दें. क्या इसको ऐसा करने से रोका जा सकेगा?

कतई नहीं रोका जा सकेगा.
अगले साल और उससे अगले साल अपने बिजली के बिल में दुगुनी तक बढत के लिये तैयार रहिये. 

sheiladikshit
यह क्यों  चाहतीं हैं कि दिल्ली वाले अपना पेट काटकर बिजली कंपनियों का घड़ा भरते रहें? 
 

9 comments:

  1. बिजली निति ही भ्रष्टाचार पर आधारित है ,उपभोक्ताओं को लूटा जा रहा है और पूरी की पूरी सरकार सोयी हुई है ,विश्वास न हो तो अपने बिल में फिक्स शुल्क को देखिये जो प्रति किलोवाट हर उपभोक्ता से उसूला जाता है हर बिल में ,क्या प्रधानमंत्री तक यह बताने का कष्ट करेंगे की जब हर बिल में बिजली टेक्स भी होता है तो ये फिक्स शुल्क किस लिए है ,कहीं ये भ्रष्ट नेताओं को कमीशन देने के लिए तो नहीं है ?

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  2. ये सवाल तो उनसे पूछिये जिन्होंने शीला आंटी को फ़िर से जितवाया है… उन्हीं की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है।

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  3. Everybody in politics is A Raja. Everyone wants to get money, money and money.

    Shila Aunt is also A Raja.

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  4. वैसे ये आश्चर्यजनक नहीं है कि (माननीय)शीला(जी) बार-बार कैसे कांग्रेस को जितवा रही है या क्यों और किन भ्रमो में जनता इस मिश्रण को झेल रही है......



    कुंवर जी,

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  5. हमारे लिये ये नई खबर है. समाचार पत्रों से पढकर तो एसा जान पड़ता था कि विद्युत कम्पनियां घाटे में हैं और शीला सरकार इन्हें डूबने से बचाना चाहती है, जबकि मामला एकदम उलट है

    अभी पिछले सप्ताह शीला दी़खित का बयान पढ़ा था जिसमें उन्होने कहा था कि दिल्ली के निवासियों के पास बहुत पैसा है...

    शायद ये उन्होने अपने पुत्र और विद्युत कंपनियों को देखकर कहा होगा...

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  6. Aapne bahut sahi likha hai. Par jimmedaari to ham logon par bhi hai ki aisi Sheila Aunty ko kyon jitatae hain. Ham Log jab Vote daalne jate hainto yah sab batain bhool jate hain aur ek bar fir janta ko lootne wale dal ko vote de dete hain.

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  7. इन कम्पनियों में किनके शेयर हैं इसकी जांच पड़ताल होना चाहिये... ऐसे ही नेताओं, अफसरों के निकलेंगे देख लीजियेगा

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  8. यह सारी कंपनियां बड़े निजी व्यवसायिक घरानों जैसे रिलायंस और टाटा समूह द्वारा खड़ी की गई हैं. लेकिन इनके शेयरधारकों में और भी लोग शामिल हैं और उनमें राजनेताओं और उनके रिश्तेधारों की बड़ी हिस्सेदारी होना लाज़मी है वरना इन्हें कोई कान्ट्रेक्ट मिलना संभव नहीं होता.

    भारतीय नागरिक का कहना सही है कि इनके हिस्सेदारों की सूची देखनी चाहिये.

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  9. शीला दीक्षित की पॉल तो उसी समय खुल गयी जब ये पता चला की मृत्यु दण्ड की फ़ाइल किसने दबाई थी

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