Sunday, May 3, 2009

वो एक कमजोर कौम थी…

हिन्दू और यहूदी धर्म में वैसे तो कोइ समानता नहीं, लेकिन फिर भी आज दोनों धर्म समान धरातल पर खड़े दिखते हैं. यहूदी धर्म से जहां इस्लाम और इसाइयत दोनों का ही उद्भव हुआ, वहां हिन्दू धर्म तो खुद ही बहुत सारे धर्मों का समागम है, और भी कई दूसरे धर्मों का जन्म उससे हुआ.

दोनों ही धर्म पुराने हैं लेकिन जहां यहूदी धर्म अब धरातल से लगभग मिट चुका है (इसके सिर्फ 1 करोड़ बीस लाख मानने वाले ही दुनिया में हैं) वहां हिन्दू धर्म अब भी प्रबल रूप से जीवित है (लगभग 85 करोड़ मानने वाले). दोनों ही धर्म अब मुख्य रूप से एक राष्ट्र में सिमट चुके हैं और दोनों पर ही अब्रामिक धर्म (इस्लाम और इसाइयत) की टेढ़ी नजर है.

दोनों ही धर्मों का जोर प्रसार और लोगों को अपने धर्म में शामिल करने पर नहीं है.

किसी जमाने में यहूदी बेहद कमजोर कौम हुआ करती थी. यह कौम पूरे युरोप में बिखरी हुई थी और अमेरिका में अपना प्रभाव बनाना शुरु ही किया था. संख्या में कम, लेकिन आर्थिक रूप से संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों की यह कौम बहुत से इसाइयों की आंखों में खटकती थी. पूर्वाग्रह की हद क्या होगी यह इससे ही समझ सकते हैं कि शेक्सपीयर तक ने अपने नाटक मर्चेन्ट आफ वेनिस में यहूदी व्यापारीयों को खुल कर कोसा था. याद है आपको शाइलॉक? ये भी याद करिये कि जोर उसके उस खास वर्ग के होने पर बहुत था.

असल में इसाइयत का यहूदियों से पुराना बैर था, उनके नबी (जीसस) को भी आकर यहूदियों के कहने पर ही कत्ल किया गया था. बहुत दिनों तक इसाई यहूदियों द्वारा दमित भी रहे, लेकिन रोमन राजा के इसाई धर्म अपनाने के बाद इसाईयत का जोर युरोप में जो हुआ वह अब तक चालू है. धीरे-धीरे यहूदी और युरोप के बाकी धर्म हाशिये पर चले गये. यहूदी भी इस नई व्यवस्था में मिल गये. अब वह न शासक रहे न शोषक, वर्ण व्यवस्था में भी उनका स्थान दोयम था, लेकिन अपनी मेहनत लगन और अक्ल से वह समाज में आगे रहे.

लेकिन उनके पास न सामरिक शक्ति थी, ना राजनैतिक, और यह बात उन्हें बहुत महंगी पड़ी. द्वितीय विश्वयुद्ध में 30 लाख यहूदियों को हिटलर और दूसरे यहूदी विरोधियों ने मार दिया और यहूदी कुछ नहीं कर पाये. वह एक कमजोर कौम थी जिसपर जो चाहे, जैसा चाहे अत्याचार कर सकता था. हिटलर ने यह्युदियों को शहर से दूर अलग इलाकों में रहने पर मजबूर किया, और हर यहूदी को अपनी पहचान के लिये खास मार्क पहनना होता था (स्टार) जिस तरह आज तालिबानी पाकिस्तानी में इस्लाम को न मानने वालों को पहनना होता है.

यहूदियों ने बुरे दिन पहले भी देखे थे, लेकिन हर बार वो आगे बढ़ गये और पुराने दुख भूलते गये. लेकिन जिन्हें यह यहूदियों कि कमजोरी लगी, उन्होंने इसे कायरता सामझा. उस समाज में यह बात प्रचलित थी कि यहूदी में हिम्मत नहीं होती. वह डरपोक होता है. जबर मुस्लिम और इसाई दोनों ही इस कमजोर कौम को दबा-कुचल कर खुश थे.


यह मौसम्बी/संतरे नहीं यहूदियों को मारना चाहता है,
बेशक हिज्जे न आते हों, नफरत आती है


  1. यहूदियों ने एक भी युद्ध नहीं लड़ा.
  2. उनकी कोई सेना नहीं थी.
  3. वो सब के सब गैर सैनिक नागरिक थे जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में पकड़-पकड़ कर मारा गया, उनके साथ कैम्पों में अमानवीय व्यवहार किया गया और गैस चैम्बरों में भर दिया गया.
बिना युद्ध लड़े एक कौम के 30 लाख लोगों की हत्या?
जो उस समय कुल यहूदी जनसंख्या की आधी थी!
मतलब एक कौम को आधा साफ कर दिया गया!

जिन कमजोर और बेबस यहूदियों को इतनी आसानी से मौत दी गई आज वह कहा हैं?
  • उनका प्रभुत्व अमेरिका की राजनीति पर है.
  • दुनिया का हर रैडिकल यहूदियों के नाम से कांप उठता है.
  • यहूदी लड़ाके दुनिया में सबसे ज्यादा खतरनाक हैं.
  • यहूदीयों के अस्त्र-शस्त्र बहुत उन्नत हैं.
आज यहूदी ऐसी जगह रहते हैं जहां वो हर तरफ से दुश्मनों से घिरे हैं. फिर भी उनका वजूद प्रबल है. उनका हर दुश्मन उनसे घबराता है और उनके आगे पानी मांगता है.

क्यों?
क्योंकि 30 लाख लोगों को खोने के बाद यहूदियों ने फैसला किया –

Never again!

दोबारा कभी नहीं.

यही उनकी जीवनशैली है – दोबारा कभी नहीं!
आज के यहूदियों में मुझे कल के हिन्दुओं का चेहरा दिखाई देता है.
क्योंकि दुनिया में यह भी इतने ही अकेले हैं जितने की यहूदी. रैडिकल इस्लाम और इसाइयत का जितना दबाव हिन्दुओं पर पढ़ रहा है उसकी वजह से हिन्दू धर्म ने जो राह पकड़ी है वह शायद उसी मोड़ पर रुकेगी जिस पर आज यहूदी हैं.

9 comments:

  1. आज से ही....संकल्प हम नहीं मिटेंगे....

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  2. जानकारीयुक्त सुन्दर लेख! हिन्दुओं के लिये एक बहुत बड़ी सीख।

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  3. आज से ही....संकल्प हम नहीं मिटेंगे.... इतना और जोडिये हमे इटाने की सोच रखने वाले को ही मिटा देंगे , तभी हम रह पायेगे वरना मिट जायेगे . और ये कार्य हमे खुद अपने ही हाथ मे लेना होगा . दूसरे के मरे कभी किसी ने स्वर्ग नही देखा आज तक . ये हमे सोचना है कि हम अपनी अगली पीढी को क्या देकर जायेगे इन लिजलिजे बिना रीढ की हड्डी वाले सेकुलरो से निर्मित एक हर पल जीवन को खो देने के डर के साथ . या फ़िर एक सम्मान जनक जीवन ?

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  4. हिन्दू न मिटेंगे कभी भी दुनिया से। न वे मिटाए जा सकते हैं। हिन्दू मिटेंगे तो दुनिया मिट जाएगी।

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  5. jis din hindu sansar se mit gaya yeh duniya hi mit jaayagi. kyonki hindu hi duniya ma eak dhram hai jo dayalu hai. huma es duniya se nahi mitna hai. kyonki hindu nahi mit sakta hai.

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  6. इकबाल - कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी||

    हिंदुत्व कभी कमजोर जरूर हो सकता है लेकिन उसकी विराटता का कोई उत्तर नहीं| वह जल की तरह सर्वव्यापी और सर्वविलायक है ||

    उत्तम लेख|

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  7. कहना आसान है। पर exactly क्या करेंगे हम?

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  8. कहना आसान है। पर exactly क्या करेंगे हम?

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  9. हिन्दू जब कट्टर होते हैं तो विभाजित होते हैं .
    हिन्दुओं का आपने में कट्टर होना , कमजोर होना है .
    मजबूत होने के लिए हमें जातिविहीन होना होगा .
    अपनी परंपरागत भेदभाव की निति त्यागना होगी .
    जो कि एक कठिन काम है .

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