Monday, September 15, 2008

बदलाव कैसे आता है # 1 - उस काली औरत ने बस के पीछे वाली सीट पर बैठने से इंकार कर दिया

rosa किसी वर्ग को पूरी तरह दबाने के लिये जरूरी है उसका आत्मसम्मान खत्म कर देना. जब अपने लिये खुद के दिल में ही सम्मान न हो तो बहुत मुश्किल है किसी दूसरे के हाथों अपना अपमान रोकना.

ऐसे माहौल में बदलाव की उम्मीद भी महंगी जान पड़ती है. लोग सोचते हैं बदलाव के लिये भीड़ इकट्ठी करनी पड़ेगी, भाषण देने होंगे, जुलूस निकालने होंगे. लेकिन बदलाव के बीज तो इस सबसे बहुत पहले बोये जाते हैं. जिस तरह रोसा पार्क्स ने बोये.

अमेरिका में रंगभेद के दौर में रोसा का जन्म हुआ. जब उत्तर में तो काले व्यक्तियों को उनके कुछ हक मिलने लगे थे, लेकिन दक्षिण के कुछ प्रांत अब भी काले व्यक्तियों को बराबर का इन्सान मानने को तैयार न थे.

दिसंबर 1, 1955 की सुबह अलबामा में बस से सफर करते हुये रोसा ने बस के आगे वाली सीट एक गोरे के लिये खाली कर पीछे की तरफ बैठने से इंकार कर दिया जो कि कानून के अनुसार काले व्यक्तियों के लिये जरूरी था.

इस पोलीसि को अमेरिका के दक्षिणी प्रांतो में नाम दिया गया था "बराबरी, लेकिन अलग". याद करिये ओर्वैल की एनिमल फार्म - "All animals are equal, but some animals are more equal than others."

यह घातक वार था दक्षिण की अलगवादी नीति पर, और इस घटना के बाद बसों का बायकाट का आंदोलन शुरु हुआ. वह संघर्ष पूरे एक साल चला. बाद में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि काले व्यक्तियों को बस के पीछे वाली सीटों पर बैठने को विवश करना गलत है.

इस तरह रोसा और काले लोगों ने जीता बस के आगे की तरफ बैठने का अधिकार.

जाद:-ए-हुब्बे-वतन (देशप्रेम) में पेंचो-खम का खून क्या
चलने वाला चाहिये, यह राह कुछ मुश्किल नहीं

(सुखदेव प्रसाद)

2 comments:

  1. अत्यन्त प्रेरणास्पद !
    सही है कि किसी समुदाय को पूर्णतः गुलाम बनाने के लिये जरूरी है उनके आत्मसम्मान को पूरी तरह से ध्वस्त कर देना!!

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा प्रसंग है...इसीलिए अपने आत्म सम्मान को बचाए रखना विपरीत परिस्थितियों में भी ज़रूरी है!

    ReplyDelete

इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें.