क्या इन्सान के जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपने मजहब को मौलवीयों और पंडो के बनाये हुये standards पर चला कर दिखाने की है? नहीं, बिला शक नहीं. किसी भी मानव की सबसे बड़ी जिम्मेदारी खुद को, अपने परिवार को, और अपने देश के प्रति है. उसकी जिम्मेदारी है खुद को अपने परिवार को, और देश को इज्जत की existence देना. उनके लिये बेहतर भविष्य का निर्माण करना.
लेकिन आज के समाज में धर्म को इतना ऊंचा दर्जा दे दिया गया है कि इस पर सब कुछ कुर्बान है. ऐसे समाज में जब धर्मांतरण का मुद्दा उठता है तो कुछ लोगों का खून खौल उठता है, और वो सब होने लगता है जिसकी इजाजत किसी धर्म में नहीं.
आइये, इस बाबत कुछ सवाल पूछें जायें.
1 - कोई भी व्यक्ति धर्म न बदले यह उसका चुनाव है. इसी तरह जो व्यक्ति धर्म बदले वह उसका चुनाव है, तो उसे किस बिना पर रोका जाये?
2 - उसे रोकने से पहले इस बात की खोज क्यों न की जाये की धर्मांतरण क्यों चुना?
3 - जो लोग प्रलोभन के चलते धर्म बदलने को तैयार हो, निश्चित ही उन्हें अपने खुदा पर यकीन नहीं. तो ऐसे लोगों कि इस धर्म को क्या जरुरत है?
4 - क्या उस धर्म में ऐसा कुछ होगा जिसकी वजह से किसी व्यक्ति को लगे की धर्म बदल लेना चाहिये?
हां, चौथा सवाल सबसे सामयिक है. क्या है उस धर्म की कमजोरियां जिनकी वजह से कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन चुनेगा.
अ. अगर उस धर्म में जाती प्रथा हो जिसकी वजह से किसी तबके को लगातार हेय समझा जाये तो क्या वह तबका धर्म नहीं छोड़ना चाहेगा?
आ. अगर वह धर्म व्यक्ति को वह सब न दे जिसकी उसे जरुरत है (शिक्षा, अच्छी जिन्दगी, संतोष), और सिर्फ ढकोसले में ही डूबा रहे तो क्यों वह धर्म नहीं बदले?
इ. अगर उस धर्म में अतंर्कलह हो, जो उस धर्म को कमजोर करे, तो कैसे रोका जाये धर्मांतरण?
जब कभी धर्मांतरण होता दिखे तो क्यों न हम दूसरे तरीके से सोचें -- क्यों न हम सोचें की ऐसा क्या था जो उस व्यक्ति को हमारा या आपका धर्म खराब दिखा जो वह दूसरे धर्म में गया. क्यों न हम सोचें की हम धर्म में जनकल्याण कैसे सम्मिलित करें जिससे दूसरे धर्मों के व्यक्तियों को लगे कि इस धर्म में जाना है?
अगर इस धर्म के लोगों को धर्मांतरण रोकना है तो पहले कुछ संकल्प करें
-- जाती छोड़िये (यह जाती प्रथा में विश्वास न करने से बड़ा कदम है)
-- धर्म का उद्देश्य पंडा-मौलवी कल्य़ाण नहीं, जन कल्याण को बनाइये
-- हर धार्मिक स्थल के साथ स्कूल का निर्माण करिये
-- यह अपेक्षा न करिये की जिनका आपका समाज शोषण कर रहा है, वह आपका साथ दे.
-- धर्म को जीवन का लक्ष्य नहीं, हिस्सा बनाइये.
या इससे भी अच्छा रहेगा:
इन्सान बनें, धार्मिक नहीं. धर्म छोड़िये.
इन्सान बनें, धार्मिक नहीं-सही कहा आपने!!
ReplyDeleteआप तो दुकाने बन्द करवाने पर उतारू हो गए :)
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