जो एक चिंगारी से जल उठता था अब राख बन चुका. सिर्फ एक मूक गवाह बचा हूं, जो देखता है सब चुपचाप लेकिन बस देख ही सकता है.
मेरी दिल्ली में आग भड़क रही है आज.
कल के आबाद घरों में बर्बादी का मातम है, और जो कसूरवार हैं इस बर्बादी के, वो छिपे हैं कहीं अपने अड्डों में, और मना रहे हैं जश्न कामयाबी का.
ऐसा पिछली बार जब देखा तो खून खौला था मेरा. लेकिन आज सिर्फ अवसाद है. पिछली बार जो आंखें लाल हो उठीं थी रोष से, आज उनमें ताब नहीं निगाह मिलाने कि इन तस्वीरों से.
कहीं खुद को ही दोषी समझ रहा हूं कुछ. मेरी भी थोड़ी भागीदारी रही होगी इस सब में. क्योंकि चुप तो मैं भी था.
चुप हूं अब भी, और ये चुप्पी आसान है पिछली बार से भी. जब-जब यह मंजर दोहरायेगा खुद को, तब-तब और भी आसान होती जायेगी चुप्पी.
पर बढ़ेगा अपराध बोध.
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जहर पीने की तो आदत है जमाने वालों
अब कोई और दवा दो, कि मैं जिंदा हूं अभी
(मेरा नहीं है)
हुआ गुस्से में यूं बेबस की बेहिस हो गया
मुझे शर्मिन्दा बना दो, कि मैं जिंदा हूं अभी
(विश्व)
ऐसा पिछली बार जब देखा तो खून खौला था मेरा. लेकिन आज सिर्फ अवसाद है. पिछली बार जो आंखें लाल हो उठीं थी रोष से, आज उनमें ताब नहीं निगाह मिलाने कि इन तस्वीरों से.
ReplyDeletesahi kaha hai apne....je manjar hi essa hai....bam visfot per maine bhi kuch likha hai....dekhe use bhi
अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय घटना!!
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