हिन्दू धर्म की रक्षा हेतू निकल पड़े हैं तेजोमय वीर. ओत-प्रोत है वो भग्वद-भक्ती के भाव में. माने बैठें है खुद को श्रीकृष्णावतार जो संकल्पित है धर्म की ग्लानी और अधर्म के अभ्युत्थान को रोकने के लिये. निकल पड़े है ले-ले लट्ठ, पेट्रोल, तमंचा, चाकू धर्मांतरण के खिलाफ.
बांके वीर, जिनकी छवि देखते ही बने.
धर्मांतरण के खिलाफ इस हिंसक घटनाओं को सिर्फ हालिया घटनाओं का प्रतिफल समझ लेना गलती होगी. यह परिणाम है धर्म के ठेकेदारों की लंबी मुहिम का जिसमें बेकार बैठें हुये नौजवानों को brain-wash करके इस्तेमाल किया जा रहा है. (यही कुछ मौलवी भी कर रहे हैं, और पादरी भी). क्रिस्तानी नक्सलियों द्वारा हिंदू साधू का कत्ल तो बहाना मात्र था इस योजना पर अमली जामा पहनाने का.
बहुत सही खेल है यह. हर धर्म का ठेकेदार जुटा है इसमें कि कहीं लोग धार्मिक रूढ़ियां तोड़ कर आजाद न हो जायें.
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किस भी व्यक्ति को अगवा करना गलत है. उसे अपनी मर्जी के बिना आचरण के लिये मजबूर करना गलत है. यह सरकारी नहीं, इन्सानी कानून की बात है. तो फिर किस बिना पर किसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म छोड़ कर दूसरा धर्म अपनाने से रोका जा सकता है?
ये बांके वीर जो धर्मांतरण के खिलाफ चर्च फूंकने में लगे है, क्या आपके उसी परम-पिता परमेश्वर के आदेश पर ऐसा कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि वह हर मानव का कल्याण चाहता है?
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किसी भी चर्च को जलाने से पहले.
किसी भी नव-क्रिस्तानी को सताने से पहले.
किसी भी किस्तानी पादरी को धार्मिक प्रचार से रोकने से पहले.
हम ये क्यों नहीं सोचते कि क्यों धर्म परिवर्तन करते हैं लोग.
क्या देते हैं यह पादरी उस परिवार को जो चला जाता है 'येसू मसीह' की शरण में?
क्यों धुंधले पड़ जाते है आपके पीढ़ीयों के संस्कार?
क्यों लोग छोड़ने को तैयार हो जाते हैं अपने उस समाज, और परिवार को जिसमें से निकाला जाना बहुत बड़ी सजा है?
जवाब है -
एक बेहतर कल.
इस देश में सारी प्रशासनिक सेवाओं, व्यापार, व नौकरियों में हिन्दू ही भरे हैं. देश के बड़े अमीरों में भी अधिसंख्य हिन्दू हैं. फिर भी हिन्दुओं को 'पैसे, और शिक्षा' के द्वारा अपने धर्म के प्रसार करने वाले क्रिस्तानी संगठनों से खतरा महसूस होता है?
क्या हिन्दू धार्मिक संगठन सिर्फ मंदिर और मूर्ति ही बना सकते हैं?
क्या पुजारी-पंडे सिर्फ भजन, श्लोक और दक्षिणा ही जानते हैं?
जिन्हें चर्च के स्कूलों से डर लगता है, उन्होंने गुरुकुलों को क्यों नष्ट होने दिया?
क्या इस्तेमाल होता है उन करोंड़ो अरबों रुपयों का जो हर साल छोटे बड़े मंदिरों में दान के स्वरूप आते हैं?
क्या यह रकम चर्च के हिन्दुस्तान के सलाना बजट से कम है?
तो फिर क्यों चर्च के स्कूल ज्यादा हैं?
क्यों उनकी कल्याणकारी संस्थान ज्यादा हैं?
क्यों वो बेहतर तरीके से खुद को प्रचारित प्रसारित कर पाते हैं?
जो हिंदू 200 करोड़ का मंदिर बनवा कर गौरवान्वित महसूस करते हैं, वो देखें की उसके बगल में दो कमरों का स्कूल भी नहीं. लेकिन हर दो-कमरे के चर्च के साथ दस कमरों का स्कूल बनाया जाता है.
कैसे करेंगे आप उनसे मुकाबला?
***
धार्मिक कदाचारी वह नहीं हैं जो धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं, या वह जो कर रहे हैं.
धार्मिक कदाचारी वह हैं जो अपने धर्म की कमजोरियों (जो नींव है इस समस्या का) की जगह सतही समाधान में जुटे हैं.
ये अपने मकसद में तो क्या सफल होंगे, बस इस देश के देशवासियों को थोड़ा और अलग-थलग कर देंगे.
Friday, September 26, 2008
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हिंदू धर्म को किसी रक्षक की जरूरत नहीं है. यह तो सनातन धर्म है. इसका न आदि है न अंत. यह तो तब भी था जब ईसाई धर्म नहीं था, इस्लाम नहीं था, और बहुत से धर्म नहीं थे. ईसाइयों ने कितने समय तक इस देश पर राज्य किया, पर सारे हिन्दुओं का धर्म नहीं बदल पाये. मुसलमानों ने भी लंबे समय तक इस देश पर राज्य किया, पर सारे हिन्दुओं का धर्म नहीं बदल पाये.
ReplyDeleteकिसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म छोड़ कर दूसरा धर्म अपनाने से नहीं रोका जा सकता, पर उसे धमका कर या प्रलोभन देकर इस के लिए तैयार करना ग़लत है. अगर किसी को सहायता चाहिए तो क्या उसे यह कहना चाहिए कि हम तुम्हारी सहायता करेंगे, पर उस के लिए तुम्हें अपना धर्म बदलना होगा और हमारा धर्म अपनाना होगा. हमारा धर्म तुम्हारे धर्म से अच्छा है, हमारा ईश्वर तुम्हारे ईश्वर से अच्छा है, इस विचारधारा का आप समर्थन करते हैं. मेरे विचार में यह एक प्रकार का आतंकवाद है. इस का समर्थन नहीं, इस का विरोध किया जाना चाहिए.
किसी धामिक स्थान पर हमला करना ग़लत है. चर्चों पर हो रहे हमले ग़लत हैं. पर सिर्फ़ इसी की निंदा करना भी ग़लत है. ईसाई जो कर रहे हैं उस की भी निंदा की जानी चाहिए. आपका यह पक्षपात रवैया भी निंदा के योग्य है. यह बात भी मत भूलिए कि जब इस देश पर ईसाई और मुसलमान राज्य कर रहे थे तब कितने ही मन्दिर लूटे गए, ध्वस्त कर दिए गए. यह आज भी हो रहा है. हर हिंदू का मन एक मन्दिर है, उस से उस हिन्दू के भगवान् की मूर्ती हटा कर अपने ईश्वर की मूर्ती स्थापित करना, मन्दिर पर हमला है. इस की निंदा कीजिए. जिन ईसाइयों की बात आप कर रहे हैं उन से कहिये कि इस देश में उन्हें अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की पूरी आजादी है, पर यह आजादी हिंदू धर्म में अतिक्रमण करने के लिए नहीं है. हिंदू शांतिप्रिय हैं, इस का मतलब यह नहीं है कि वह सब कुछ बर्दाश्त कर लेंगे. कारण की निंदा कीजिए. केवल परिणाम की निंदा करने से समस्या हल नहीं होगी. ईसाई इस देश का हिस्सा हैं. मिलजुल कर रहें. हिंदू धर्म में अतिक्रमण करना बंद कर दें.
धर्म अप्रासंगिक हो चुका है,
ReplyDeleteतेल रीत चुका है,
अब बाती जल रही है,
उस के बाद?
सुरेश जी,
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छे सवाल उठाये हैं. जो आपने कहा उसका analysis भी बहुत जरूरी है, शायद उसके बिना ये चर्चा अधूरी है.
तो इस चर्चा को आगे बढ़ाऊंगा, आपने जो कहा है उस पर मनन के लिये समय चाहिये. इसलिये एक-दो दिन के विराम के बाद.
आपने यह संवाद इतने शालीन तरीके से आगे ले जा रहे हैं, इसके लिये धन्यवाद.
बहुत अच्छी बहस. आपकी कुछ बातों से इत्तफाक रखता हूँ, सुरेश जी का भी कहना सही है.
ReplyDeleteये देखना भी बड़ा रोचक है की अभी अभी गणपति जी पर पूरी लेख श्रृंख्ला लिखने वाले दिनेशराय जी कह रहे हैं की धर्म अप्रासंगिक हो चुका है.
धर्मान्तरण के मुद्दे पर सार्थक बहस छेड़ने के लिए आपको बधाई। मेरी समझ से यह समस्या धार्मिक नहीं बल्कि राजनैतिक है। राजनीति के स्वार्थ को पूरा करने के लिए धर्म का दुरुपयोग। धर्मप्राण देश के निष्कलुष भारतीयों के भावनात्मक शोषण का प्रयास है यह, जो हिन्सा के विकराल रूप में हमारे सामने है।
ReplyDeleteआपकी यह बात जायज है कि ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा के महत्व को समझा है। इन्होंने बड़े भव्य स्कूल खोल रखे हैं। उसमें अपने ब्च्चों को पढ़ाकर हम गौरवान्वित महसूस करते हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि हिन्दूवादी (भारतीय राष्ट्रवादी) संगठन शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम नहीं कर रहे हैं। विद्या भारती अपने सरस्वती शिशु मन्दिरों की श्रृंखला के माध्यम से भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर आधारित मूल्यपरक शिक्षा दे रही है। लेकिन हम प्रगतिशीलता के भ्रम में विदेशी भाषा और संस्कारों वाले कान्वेन्ट स्कूलों में जाकर धन्य हो रहे हैं। यहाँ के बच्चों को prayer रटा हुआ है लेकिन इन्हें सरस्वती वन्दना, भारतीय ऋषि परम्परा की प्रार्थना, और भोजन मन्त्र का पता नहीं है। ईसाई त्यौहारों पर स्कूल में celebrate करते हैं लेकिन भारतीय पर्व व त्यौहार से अन्जान हैं।
हम तथाकथित आधुनिक बुद्धिजीवी विदेशी के नाम पर मुग्ध हुए जा रहे हैं। प्राचीन भारतीय परम्पराओं को समझे बिना उनकी आलोचना करना आजकल का फैशन बन गया है।
पश्चिम का अन्धानुकरण करना ही विकास और प्रगति का मानक हो गया है। यह तो मानना ही होगा कि धूर्तता, चालाकी और मक्कारी में हम उनका मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteनहीं समस्या धर्म जगत में, उपदेशक है जड उलझन की।
ReplyDeleteधर्म तो है कर्तव्य आज का, पर गाते वे राग पुराने।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
Samyik vishaya chuna hai, vakai gunj door tak jaayegi.(Abhishek)
ReplyDeleteसार्थक सटीक और शानदार आलेख आपका हिन्दी चिठ्ठा जगत में हार्दिक स्वागत है . मेरी नई पोस्ट पढने आप मेरे ब्लॉग "हिन्दी काव्य मंच " पर सादर आमंत्रित हैं
ReplyDeleteapne bahed sanjeeda sawal uthaya hai..
ReplyDeleteblog mai lagi picture achhi hai