Monday, September 22, 2008

जब सब कुछ साफ-साफ दिखे, तो अंधेरे में तीर चलाने की जिद क्यों?

terrorist

जब बात देश से जुड़े मुद्दों की आती है, तो कुछ लोग क्रियटेविटी (रचनाशीलता) की हर हद पार कर जाते हैं. अपने पूर्वाग्रह और छुपे एजेंडे को सही साबित करने के लिये वो किसी भी सच को झूठ बना सकते हैं.

सच बड़ा delicate होता है. एक खरोंच भी उसकी खूबसूरती नष्ट कर देती है. बहुत आसान है सच को नुक्सान पहुंचाना, बस थोड़े विश्वसनीय से सुनाई देने वाले बेवकूफी के प्रश्न उठा दिये जायें. साथ ही एकाध जुमला जोड़ दिया जाये मानवहित, या ऐसे ही किसी उंचे आदर्श का. बेशक आप उस आदर्श से कोसों दूर हों.

ऐसी कुत्सित बातें किसी की शहादत को भी धूमिल कर देती हैं.

जैसे मोहन चन्द्र शर्मा के साथ किया जा रहा है. जिन लोगों के गले आतंकवाद का सच नहीं उतर रहा, वो लगे हैं अपना कलुषित एजेंडा लागू करने. इसलिये मोहन चन्द्र शर्मा के लिये कहा जा रहा है कि उनकी हत्या आतंकवादियों ने नहीं, उन्हीं के साथियों ने की. इसलिये नहीं कि मोहन चन्द्र शर्मा को इन्साफ दिलाना है, बल्कि इसलिये की वो कैसे भी करके उन आतंकियों कि घिनौनेपन को भोलेपन की चादर से ढांप सकें.

इसलिये दरकिनार कर दिया जाता है उस गवाही को जिसके दम पर हत्यारे सैफ का स्केच बना. इन अंधो को वो असला, वो शूटिंग नहीं दिखी जो उस दिन वहां घटित हुई, उन्हें दिखे आतंकियों के मां-बाप जो कसमें ले रहे थे कि उनके बच्चे तो बछड़े थे, जो सिर्फ घास को ही नुक्सान पहुंचा सकते थे.

क्यों ये घृणित एजेंडे वाले घृ्णित लोग मानव व्यवहार के बारे में ऐसी नासमझी दिखाते हैं? कौन से ऐसे मां-बाप हैं जो कहेंगे कि हां, हमने भरा अपने बच्चों के दिल में धार्मिक पूर्वाग्रह, हमने बताया हर मोड़ पर उन्हें की दूसरे धर्म वालों से हम नफरत करते हैं, डरते हैं उनसे, और उनकी संस्कृति हेय लगती है हमें.

और अगर आपको लगता है कि मां-बाप ऐसा नहीं करते, तो आप मूढ़ होने का नाटक कर रहे हैं. क्योंकि कोई भी इतना मूढ़ नहीं हो सकता.

अगर इसी तरह हर शाहादत पर शक पैदा किया जाता रहा, आतंकवाद के खिलाफ हर कदम को धर्म से जोड़ा जाता रहा, और मजहब के नाम पर आतंकवादियों को शह देनें की कोशिश की जाती रही तो आतंकवाद इस समाज के ऐसे दो फाड़ करेगा जो आपस में कभी नहीं मिलेंगे, ठीक नदी के दो किनारों की तरह.

आप जो तीर अंधेरे में चला रहे हैं... आपको नहीं दिखता, लेकिन निशाने पर आप ही का सीना है.

1 comment:

  1. झूठ को पकड़ कर कब तक ये कड़े रह सकते ऐं?

    इसी तरह की झूठ की नींव पर सोवियत संघ भी खड़ा किया गया था। प्रोपेगैण्डा के सहारे उसे 'सुपर स्वस्थ' दिखाया जा रहा था। लेकिन वह अन्दर से जर्जर हो चुका था। उसका जो हाल हुआ सबके सामने है..

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