अपने मनोहारी अतीत के मुगालते में हम उन बुर्जुआ विचारकों की लीद ढो रहे हैं जो बर्बरता से सिर्फ दो सीढ़ी ऊपर थे. उनकी याद में हम जाति, सम्प्रदाय, रंग, धर्म और न जाने किस-किस पर भेद कर लेते हैं.
फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी परेशानी धर्म है. दुनिया भर का हर धार्मिक व्यक्ति को पूरी तरह विश्वास है कि उसका धर्म ही आखिरी सत्य है और विश्व के बाकी 500-करोड़ बाशिंदे सीधे दोजख/नर्क/Hell/Your version में जाने वाले हैं.
सभी को विश्चास है कि दुनिया को परमात्मा के उनके संस्करण ने बनाया, और सभी मनुष्यों का रचेयता वो शक्तिशाली खुदा सभी मनुष्यों का फैसला करेगा.
लेकिन कोई धर्म हो, दुनिया के अधिसंख्य लोग उसके विधर्मी होंगे. फिर क्या मजाक है वह परमात्मा जिसपर दुनिया के ज्यादातर लोगों को यकीन नहीं?
कोई साधारण बुद्धी रखने वाला मनुष्य भी थोड़ा सोच-विचार कर इस असलियत को समझ सकता है. फिर क्या कारण है इस अंध-विश्वास का?
1. हम हैं खुदा की भेड़ें/गैयां
हर धर्म का जोर है निश्शंक भरोसे (unquestioning faith) पर. आपको आदेश है ईश्वर की भेड़े बनने का, जिन्हें जहां मर्जी हो धर्म के ठेकेदार हांक ले जायें. जहां आपने सवाल किया आप काफिर, हेरेटिक, धर्मच्युत, और न जाने क्या-क्या हो जायेंगे. जब-जब सवाल पैदा होता है, तब-तब धार्मिक ठेकेदार धर्मांध मूढ़ों द्वारा दमन करवाते हैं (आगे के लेखों में जानेंगे इसके उदाहरण).
सबसे पहले तो धर्म पर शंका करो, खुदा पर शंका करो, पूज्य किताबों पर शंका करो.
2. बचपन से ब्रेनवाश
हर बच्चा खुला (या खाली) दिमाग लेकर पैदा होता है. उसमें आप जो रंग भर दें वही खिल उठेगा. किसी को यीशू पर यकीन दिलाया, तो किसी को मुहम्मद पर, बाकी जो बचे राम, कृष्ण, शिव और न जाने कितनों में बंट गये. सबको बचपन से सिखाया कि खुदा है, बैठा है आपके सरों पर, इनसे डर के रहना! तो सब ने कर लिया विश्वास. बड़े होकर अपने बच्चों के सामने भी दोहरा दिया.
बचपन से चूहा दिखाकर किसी को कहा जाये कि बेटा यह हाथी है, तो वह बच्चा उसे हाथी ही कहेगा, चूहा नहीं. और जब बड़ा होकर कोई अनजाना उसे कहेगा कि ये तो चूहा है तो बच्चा चौंक उठेगा, सहसा विश्वास नहीं करेगा. जब 10-15 लोग यही बात दोहरायेंगे तब समझेगा कि परिवार वालों ने उसका पप्पु बना दिया.
यही हाल धर्म का है. फर्क इतना है कि आस-पास के सभी लोगों का पप्पु बन चुका है, और कोई यह बताने वाला नहीं कि जिसे तुम हाथी समझे बैठे हो, वह तो चूहा है. एकाध जो आवाजें उठतीं हैं वो 'हाथी! हाथी!' चिल्लाने वालों में दब जातीं हैं.
पप्पा ने बताया इसलिये पप्पु मत बनो. शक करो, क्योंकि वो भी इन्सान हैं, उनसे गलती हो सकती है.
क्रमश : (आगे कि किश्त में जारी)
अति सही विचारा है आपने। आगे भी लिखिये।
ReplyDeleteMubarak ho, zara mere blog ki taraf aayein. mujhe to lagataa hai hum donon bichhde hue bhai hain.
ReplyDeleteबहुत अर्थ पूर्ण लिखा है आपने...सही बात असर दार ढंग से कही गई है. मेरे ब्लॉग पर मरयम गजाला साहिबा का एक शेर पढिये उन्होंने कहा है की:
ReplyDeleteकटे न जब तलक कपट न मैल मन का ही धुले
अजान भी फरेब है फरेब है भजन भजन
नीरज
बहुत बढ़िया..आगे इन्तजार है.
ReplyDeleteआप से शतप्रतिशत सहमत हैं। दुनियाँ का कोई कर्ता ईश्वर नहीं है।
ReplyDeleteमैं सिर्फ इतना जानता हूँ इंसान ही आखरी सत्य है सिर्फ अपने पर ही विशवास करना एक बहुत ही टेडा काम है मगर असंभव नहीं लेख काब्लेतारिफ है मैं ४८ साल अनजाने में जीता रहा मगर आखिर में अपने आपको जब जान लिया तो सारे डर खत्म हो गए आज अपने पर इतना भरोसा है की अच्छे से अच्छे रूढी ढोने वाले को आसानी से बचाव का रास्ता नहीं दूंगा मेरी बीवी और परिवार शुध्ध सत्संगी है वो मुझे सत्संग में ले जाने से घबराते है और ना ही मैं जाता हूँ अंत में एक सच जो हमें नास्तिक कहते है ये समझ ले की हमसे बड़ा कोई आस्तिक हो ही नहीं सकता क्यूंकि हम दिनरात चिंतन में लगे रहते है की कैसे औरों को इस अन्ध्व्श्वास की दल-दल से बाहर निकाले
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