Tuesday, September 30, 2008

अरे! ये महान वाम-पथ के चैंपियन

कम्युनिस्टों की बातें सुनकर एक अजीब सी उत्तेजना होती है. हां, वो दुनिया भी क्या होगी जहां सब बराबर हों. न कोई अमीर हो, न गरीब, हर साधन पर हर व्यक्ति का समान हक हो. कितनी प्यारी होगी वह दुनिया? और किसकी जिम्मेदारी है ऐसी दुनिया बनाना? आइये उनसे मिलें:

Fidel Castro1

1. फिडेल कास्ट्रो
अमेरिकी छाती पर 1959 से मूंग दल रहे हैं यह. अमेरिकी जमीन से कुछ ही दूर इनका देश है क्यूबा, जहां हर बच्चे को पैदा होते ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से नफरत, और अपने नेता फिडेल कास्ट्रो से प्यार सिखाया जाता है.

आये तो थे जिन्दगी पर सभी को बराबर का हक दिलाने. लेकिन 1959 से कुर्सी पर ऐसे बैठे कि उठने का मन फिर नहीं बना. महंगे सिगार पीते हुये सोचते रहे कि किस तरह गरीबों को उनका हक दिलाया जाये. समाधान ढूढंते-ढुंढ़ते बुढ़ा गये तो सत्ता अपने छोटे भाई को दे दी. बिल्कुल लालू यादव की तरह आखिर और कौन होगा उनके जितना जिम्मेदार?

अब शायद कुछ साल इनके भाई रॉल ये कठिन जिम्मेदारी संभालें. जब थक जायेंगे तो यकीनन उनके बाल-बेटे होंगे जिसे यह कठिन जिम्मेदारी वो सौंप पायें.

Robert Mugabe

2. रॉबर्ट मुगाबे
वो महान नेता जिसने गोरों के खिलाफ जिम्बाब्वे में हल्ला बोलकर तहलका मचा दिया, गोरों को खदेड़ दिया तो खुशी के मारे जनता ने इन्हें राष्ट्रपति बना दिया. काम इनको पसंद आ गया. 1980 से शौक फर्मा रहे हैं. बीच में तीन-चार बार नाम के चुनाव भी करवा चुके हैं. अपने दुश्मनों पर बहुत मेहरबान रहे हैं, कहते हैं कि कइयों को उनके बनाने वालों से मिलवा चुके हैं.

अब ये भी बूढ़े हो गये, आखिर बहुत सालों तक जनता को साम्यवाद बांटा है, थक भी गये. पुराने दोस्त अब उतारू हैं कि साहब को आराम करायें, और आगे समानता का अलख खुद जगायें.

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3. ह्यूगो चावेज
बड़े मुखर वक्ता है. पूंजीवाद की हर बुराई का भरपूर ज्ञान है जिसे वक्त-बेवक्त बांटते रहते हैं. 1998 से वेनेजुयेला के राष्ट्रपति हैं. 1992 में सशस्त्र सत्ता-पलट में असफल रहे थे. पार्टी बनाकर चुनावी पलटी मार दी. साम्यवाद पर इतना भरोसा है कि मजदूर युनियनों के चुनाव भी राज्य के देख-रेख में कराते रहे हैं.

अभी जवान हैं, सिर्फ 10 साल हुये हैं सत्ता में. आगे इनमें बहुत संभावनायें हैं, कम-से-कम 30-35 साल और सत्ता में रहकर पूरी दुनिया के मजदूरों को एक करेंगे.

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4. माओ जेडोंग
वाम मार्गियों के लिये परम-पिता परमेश्वर से थोड़ा ही उपर रहे. इन्होंने चीन जैसे बड़े देश से पूंजीवाद का इस कदर नाश किया कि बाद में चीन अमेरिका के लिये most preferred investment destination बन गया. इन्होंने गांव के लोगों को गांव में, और शहर के लोगों को शहर में ही रखने का फरमान जारी किया. सभी की भलाई चाहते थे, इसलिये पूछने की जरुरत भी नहीं समझी कि कौन कहां रहना चाहता है.

बाद में इन्होंनें अपने देश को 'बड़ी ऊंची छलांग' (Great Leap Forward) लगवाई, जिसमें लोगों को अपनी खेती-बाड़ी छोड़कर सरकारी बेगार के लिये मजबूर करके पूंजीवादियों द्वारा मजबूर होने से बचा लिया. आज भी आधुनिक चीन तक में उनके सिखाये पाठ पढ़े चीनी नेता मजदूरों को खुद शोषित करके साम्राज्यवादियों द्वारा शोषित होने से बचाते हैं.

4 comments:

  1. अच्छी पोस्ट, सच्चा चेहरा साम्यवादियों का

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  2. बेहतरीन पोस्ट. यही है सच्चा चेहरा इन वामपंथियों का.

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  3. एक और शीर्षक होना चाहिये था:

    भारतीय कम्युनिस्ट:

    १) १९४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन में अंग्रेजों का साथ दिया।

    २) नेताजी जैसे देश प्रेमी को 'कुत्ता' कहा।

    ३) १९६२ के चीनी आक्रमण को 'भारत द्वारा आक्रमण' बता दिया।

    ४) ३ करोड़ बांग्लादेशियों को भारत में घुसाने और उन्हें यहाँ बसने की पूरी व्यवस्ता की। आजकल वे भारत के विरुद्ध 'जेहाद' में लगे हैं।

    ५) आजादी के समय पश्चिम बंगाल देश में सबसे अग्रणी और औद्योगिक रूप से विकसित प्रदेश था। आज उसे पिछड़े प्रदेशों में सम्मलित कर लिया गया है।

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  4. सही लेख लाये हो. बहुत खूब.

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